मित्रों,
कुछ दिन पहले फेसबुक के माध्यम से एक प्रखर कवियित्री श्रीमती रंजना प्रकाश से मुलाक़ात हुई I मैंने उनकी कवितायें उनके पृष्ठ निनाद पर पढ़ी जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुआ I
एक प्रश्न के ज़वाब में रंजना जी कहती हैं कि आदिकाल से पुरुष का दंभ उसकी सोच पर हावी रहा है जिससे बड़े - बड़े लेखकों और कवियों ने स्त्री को कभी अबला तो कभी गवांर कह दिया जो कि ठीक नहीं है I मैं भी उनसे इत्तिफ़ाक रखता हूँ I
उनके विषय में अधिक जानने के लिए पढ़िए मेरे द्वारा लिया गया उनका विशेष साक्षात्कार:
कुछ दिन पहले फेसबुक के माध्यम से एक प्रखर कवियित्री श्रीमती रंजना प्रकाश से मुलाक़ात हुई I मैंने उनकी कवितायें उनके पृष्ठ निनाद पर पढ़ी जिनसे मैं बहुत प्रभावित हुआ I
एक प्रश्न के ज़वाब में रंजना जी कहती हैं कि आदिकाल से पुरुष का दंभ उसकी सोच पर हावी रहा है जिससे बड़े - बड़े लेखकों और कवियों ने स्त्री को कभी अबला तो कभी गवांर कह दिया जो कि ठीक नहीं है I मैं भी उनसे इत्तिफ़ाक रखता हूँ I
उनके विषय में अधिक जानने के लिए पढ़िए मेरे द्वारा लिया गया उनका विशेष साक्षात्कार:
- पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिए ।
मेरा नाम रंजना प्रकाश है I मेरा जन्म कानपुर उत्तर
प्रदेश में हुआ और मैंने एम .ए. हिन्दी
साहित्य तक शिक्षा प्राप्त
की है मेरी कविताएं और कहानियां विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं । दूरदर्शन ,
आकाशवाणी से सुगम संगीत का गायन और रचनाओं का प्रसारण होता रहा है । पिछले दिनों कार्य संग्रह "तुम्हारी
यादें” प्रकाशित हुआ है जो फ़्लिप कार्ट में उपलब्ध है । अभी मैं बिलासपुर छत्तीसगढ़ में रहती हूँ I
- आपने सबसे पहले कब जाना कि आपके अंदर एक कवि
मौजूद है?
जब से समझ आई, बहुत
छोटी थी तब से ही चांद, सूरज, धरती, नदियां, झरने देख कर मन स्वयं से ही बतियाने लगता था । प्रकृति आकृष्ट करती थी और
न जाने कब मैं तुकबंदी करने लगी । उसे तुकबंदी ही कहूंगी I
- आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कविता ही क्यों है
?
नहीं राजीव जी ये
सच नहीं है । मैं लेख, कहानियां और उपन्यास भी लिखती हूं I दो
उपन्यास पूरे हो चुके हैं, तीसरे की तैयारी चल रही है । चूंकि मेरा गद्य किन्हीं कारणों से प्रकाशित
हो नहीं पाया है इसलिए लोग अनभिज्ञ हैं मेरे गद्य लेखन से । परन्तु ये भी सच है कि
लेखन की शुरुआत कविता से ही हुई थी और अब भी काव्य लेखन रुचिकर लगता है मुझे। शायद इसीलिए क्योंकि मैं सर्वप्रथम गायिका हूं संगीत मेरा पहला प्यार है। गीत गाते गाते जाने कब मैं गीतों की संरचना करने लगी मुझे पता ही नहीं चला ।
कविता मेरे लिए
छोटे से कैनवस पे चित्रित खूबसूरत चित्र की तरह ही है ।कम शब्दों में, कम समय में लेखक की बात पाठकों की हृद-तंत्रिका को झंकृत
करने में सक्षम होती है । इसीलिए कविता मेरी प्रिय विधा है ।
- आप जीवन के हर पहलू पर कविता लिख लेती हैं, ऐसा किस प्रकार करती हैं ?
अच्छा सवाल है
राजीव जी । मैं जीवन को पूरी शिद्दत से जीती हूं, महसूस करती हूं। जीवन का हर पहलू
मुझे प्रभावित करता है । आप जब जब, जिससे प्रभावित होते हैं वो
स्वत: आपकी रचनाओं के विषय बन जाते हैं । इसीलिए ज़िंदगी का हर भाव, हर रंग आप मेरी कविताओं में पाएंगे। ये नहीं पता कैसे
पर बड़ी ही सहजता से हो जाता है ।
- जीवन में आप किस चीज से या किसी घटना से
अत्यधिक प्रभावित होती हैं ?
निःसंदेह संगीत से
राजीव जी ।मधुर संगीत मेरी भूख, प्यास, नींद सब हर लेता है । मैंने कहा न, संगीत मेरा पहला प्यार है । आज एक सच मैं कहना चाहूंगी – मैं बचपन से सिंगर बनने के ख़्वाब देखा करती थी पर
उस ज़माने में पैरेंट्स से मन की बात कहने का रिवाज़
नहीं था सो मन की मन में रह गई । ये बात तय है मैं
अच्छी गायिका बन सकती थी लेकिन मैं संतुष्ट हूं मैंने बहुत गाया स्वान्त:सुखाय के
लिए ही सही। आज भी तानपुरे पर रियाज़ करती हूं । संगीत
मेरी ताकत भी है और कमज़ोरी भी ।
- क्या आपको कभी किसी प्रकाशक ने आपकी पुस्तक
छापने से मना किया है? यदि हां तो आपने उसको कैसे लिया ?
नहीं, ऐसा अनुभव अब
तक तो नहीं हुआ । यदि कभी ऐसा हुआ भी तो मुझे बुरा नहीं लगेगा । पसंद अपनी अपनी ,ख़याल अपना अपना । ये ज़रूरी तो नही
कि सब मेरा लेखन पसंद ही करें ।
- आज कल बहुत लोग कविताएं लिख रहे हैं मगर बहुत कम ही छाप
छोड़ रहे हैं, ऐसा क्यों ?
ये सच है इन दोनों
खूब लिख रहे हैं लोग I ये सुखद है । नये बच्चे बढ़िया लिख रहे
हैं । छाप न छोड़ पाने का कारण शायद जल्दबाजी और शार्टकट
के भाव की प्रबलता लगती है मुझे। पठन-पाठन का अभाव भी एक
वजह हो सकती है। उत्तम गद्य और पद्य पढ़ना आवश्यक है । इससे शब्द-भंडार और शैली का विकास होता है । राजीव जी आप तो स्वयं ही श्रेष्ठ
साहित्यकार हैं, मेरा आशय समझ सकते हैं।
- धन्यवाद I अच्छा ये
बताइये आप किस समय
लिखना पसंद करती हैं और क्यों ?
यदि कोई सोशल विजिट
न हो, या गेस्ट न आए तो शाम ४ से ८ तो निश्चित ही लिखती हूं I इसके अलावा कभी भी, किसी भी समय, देर रात तक भी । शायद कोई यकीन न करे कई बार नींद में लिख लेती हूं, सुबह उठते ही डायरी
में नोट कर लेती हूं। सुबह नहीं लिख सकती क्योंकि जल्दी उठना मेरे
बस की बात नहीं । कालेज के समय से ये आदत है I
- बहुत अच्छा I यदि आपको स्वयं को एक शब्द में परिभाषित करने
को कहा जाय तो वो शब्द क्या होगा ?
प्रेम – ये
मेरे जीवन का अनंत और स्थाई भाव है । मैं किसी से नफ़रत या घृणा कर ही नहीं सकती भले
ही मुंह से बड़बड़ा लूं पर...जाने क्यूं पर राजीव जी मैं बस ऐसी ही हूं ।
- आपके जीवन में पैसा अधिक महत्त्वपूर्ण है या
प्रसिद्धि ?
सच कहूं तो दोनों
ही नहीं I मेरा काम सबसे महत्वपूर्ण है मेरे लिए । पैसा इतना
हो कि काम चल जाए याचक न बनना पड़े । प्रसिद्धि बुरी किसे लगेगी पर मैं उसके लिए
पागल नहीं हूं - मिले तो ठीक, न मिले रंज नहीं
ये सब ईश्वर देता है समय के साथ, परन्तु कर्म मुझे करना है ये मेरा नितांत
व्यक्तिगत हेतु है अतः मुझे कर्म प्रिय है ।ये मेरी निजता है, मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा है ।
- बहुत ख़ूब I अब एक कठिन
सवाल I हमारे कुछ
लोगों ने नारी को कभी अबला तो कभी गंवार की श्रेणी में रख दिया है I क्या वो लोग नारी के प्रति किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित थे या फिर नारी की
शक्तियों से अनभिज्ञ । इस बारे में
आपका मंतव्य क्या है ?
वाह राजीव जी, ख़ूब छांट के सवाल लाए हैं आप । ये तो मेरा पसंदीदा
विषय है। नारी के विषय में बुरा तो मैं सुन ही नहीं
सकती । नारी की शक्तियों से पुरुष कभी भी अनभिज्ञ हो नहीं सकता , खूब
जानता है वो नारी शक्ति को । उसका मिथ्या दंभ ये
करवाता है उससे । पुरुष भूल जाता है उसकी मां जिससे वो जन्मा उसके
जीवन की प्रथम नारी है I नारी का अपमान करने वाला घृणित कापुरुष
होता है, पुरुष नहीं । तुलसी दास जी ने
भी एक स्थान पर नारी की निंदा की है पर उन्हें इतना उच्च स्थान दिलाने का श्रेय
उनकी पत्नी को जाता है, इस बात से वो भिज्ञ भी थे ।
- बात तो आपकी ठीक लगती
है, मगर लोग इसे शायद मंज़ूर नहीं करते I अच्छा, नये उभरते कवियों
और लेखकों के लिए आपका क्या संदेश है, जिससे वो साहित्य में ठीक से योगदान कर
सकें ।
काफ़ी बेहतर लिख
रहे हैं लोग ।मशवरा यही दूंगी कि शार्टकट से बचें, मेहनत करें, श्रेष्ठ साहित्य पढ़ें । साहित्य से मानसिक दशा विकसित होगी तो
दिशा स्वत: ही मिल जाएगी । स+हित -- साहित्य अर्थात जो हितकर है वहीं
साहित्य है । श्रेष्ठ लिखना है तो श्रेष्ठ पढ़ें ।
साहित्य सृजन तभी संभव है । बिना पढ़े मैं आज जो हूँ वो हो नहीं पाती ।
- साहित्य में आजकल मीडिया का बहुत बोलबाला है। इससे क्या लाभ है और क्या नुकसान ? कृपया अपने पाठकों को अवगत कराएं ।
ये सच है, इन दिनों हर क्षेत्र में मीडिया सक्रिय हैं तो साहित्य में क्यों नहीं । पर इसमें बुरा क्या है ।सृजन के नये आयाम, नयी दिशाएं खुल
रहीं हैं । भरपूर अवसर मिल रहे
हैं । बस रातों रात प्रसिद्धि के चक्कर में पड़ कर दिग्भ्रमित न हों । लगन से लक्ष्य
निर्धारण करते रहें। यही उचित है ।
- एक लेखक के लिए क्या जरूरी है उसके अंदर का
कलाकार, उसकी
योग्यताएं, उसकी उच्च
शिक्षा या फिर कुछ और ?
देखिये, ये सारी बातें तो
आवश्यक हैं ही I सबसे आवश्यक है लगन और कर्मठता । लिखना कोई
आसान काम तो नहीं है राजीव जी, आपको भी अनुभव है इस बात का, घंटों बैठकर ऊर्जा
लगानी पड़ती है, उंगलियां थकती जाती हैं, हाथ पैर सुन्न हो जाते हैं, कमर अकड़ जाती है
अब तो फिर भी एक लगन होती है जो लिखवा लेती है ।मेरा यही विचार है लगन नहीं तो
लक्ष्य नहीं I
- सही I आपका आगे क्या क्या लिखने का इरादा है ?
अभी तीसरे उपन्यास
की मानसिक तैयारी चल रही है ,शुरु करना है । कोई कथा मन में पूर्णतः पक जाती है तब
लिखने बैठती हूं । मेरा यही तरीका है रफ़्तार वर्क नहीं करती
मैं । कहानियां , कविताएं तो सतत चलती रहती हैं
। मैं लिखे बिना और गाए बिना जीवित नहीं रह सकती । कुछ पौराणिक लेख
लिख रही हूं । मैं राम, कृष्ण, शिव की परम भक्त हूं, मैंने इन्हें मानवीय दृष्टिकोण से भी देखने
की कोशिश की है। आशा है मेरे पाठक कविताओं की तरह मेरे
गद्य को भी स्वीकारेंगे । शीघ्र ही पुस्तकें पाठकों तक पहुंचेगी । अन्तिम सांस तक
लिखने की मंशा है । आगे ईश्वर की इच्छा ।अंत में एक बात और
राजीव जी आपकी लघु कथाओं से प्रभावित हो लघु कथा लिखने की कोशिश कर रही हूं आप
बताइएगा कैसी लिखीं हैं।
ज़रूर, मेरा क़द आपसे उम्र और साहित्य दोनों में छोटा
है फिर भी जितना मुझसे हो सकेगा मैं करूँगा I हिंदी साहित्य में मुझे भी आपसे बहुत
कुछ सीखना है – ध्यान रखियेगा I अपना कीमती समय और आज के लेखकों को अपने बहुमूल्य
सुझाव देने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद I
राजीव पुंडीर
28/11/2017