Sunday, March 24, 2019

The Day Before I Died (Matroyshka) : By Ashi Kalim

Introduction :
Some stories, specially from our recent past aka modern history are so mysterious and intriguing that they compel us to find the truth and to go deep into them. This is a natural human nature. Perhaps, driven by the same, Ashi Kalim, the writer has tried to look into the life of a mysterious character of the daughter of Stalin named Svetlana through this novel. This book is published by Notion Press and available at Amazon.in

The Story:
Kunvar Brajesh Kumar Singh, a young man from India, fascinated by communism, goes to Russia to learn the tenets of communism under Stalin, the dictator of Russia. There he happens to meet his daughter Svetlana who Stalin calls his doll, also an active member of communist party. Attracted by his grand personality, Svetlana is attracted to him and eventually they fall for each other - perhaps in love, as both of them were not sure what they felt for each other in initial days.The story travels from Russia to India and finally concludes in USA in getting asylum for Svetlana. To know more about the fate of their love and all this maze like story, go through this interesting book.


Review:

Ashi Kalim, the author, took a challenge by choosing a story based on the love an Indian boy who is rather innocent in comparison of his love interest Svetlana; the daughter of a dictator known for his cruelty. In this endeavour the author did meticulous research, visited the related places, interviewed the people connected and gathered enough material and evidence. Keeping in view of the potential of the author, and the material she collected, this story could have been expanded more spreading it on at least 190 pages instead of only 90 pages. A novel is reduced to a novella. Perhaps, the author got so excited to publish a book on this subject that she penned it in haste as the story, in spite of running in a smooth flow, takes a tumultuous jumping route and ends up quickly missing many links, crossing gaps and overflowing at other places. The writer should work more on story and plot development of a novel of which she has an acumen but not applied.
The other compartment of improvement is its editing because if a reader finds a blunder in the very first line of any novel or a story, it puts a question mark on his/her ability to write. So without discounting the ability of writer, I sincerely advise the author, not only to re-edit it but to re-write the whole lot of manuscript filling all the gaps and joining all the missing links to make it a compelling read. Right now it is taken just as an extended story.

The writer Ash Kalim has a big potential of penning more books and I wish all the best for her future projects.

Ratings : 2.5/5

Rajeev Pundir
25/03/2019

Thursday, January 31, 2019

समीक्षा : अनावरण उपन्यास लेखिका रंजना प्रकाश

प्रस्तावना :

लेखिका रंजना प्रकाश से मैं जब से जुड़ा हूँ, उनकी लेखन शैली ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया है। फेसबुक पर अक्सर उनकी कविताओं का लोग बहुत आनंद  उठाते हैं जिनमें से एक मैं भी हूँ। उनके साथ "ज़िंदगी : कभी धूप, कभी छांव" कविता कहानी संग्रह में भी मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला और मैंने उनके लेखन और व्यक्तित्व की गहराई को जाना और समझा। इसके बाद उन्होंने मुझे अपने उपन्यास "अनावरण" के बारे में बताया और मुझसे आग्रह किया कि मैं उसका सम्पादन करूँ। पहले मुझे काफ़ी झिझक हुई, परंतु ये सोचकर कि इस बहाने उनसे कुछ सीखने को मिलेगा, मैं सहर्ष तैयार हो गया। अब उपन्यास आपके सामने है । पढ़िये और कहानी और भाषा का आनंद उठाईये। इस उपन्यास को आथर्स इंक इंडिया ने रोहतक से प्रकाशित किया है।

कहानी :
पूरा उपन्यास एक प्रेम कहानी है जो दो मुख्य पात्रों - तपन और शुभी के चारों और घूमती है। कहानी के दोनों पात्र अंतर्मुखी हैं जिसके कारण दोनों अपने भावों को एक दूसरे को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। और यही असमर्थता उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन कर उनके आड़े आती रहती है। इसी की वजह से उनके जीवन में एक ऐसी उथल पुथल होती है कि दोनों ही मृत्यु के कगार तक पहुँच जाते हैं। बाद में यही कमजोरी उन दोनों की ताकत बनकर उनका हथियार बन जाती है और उनके जीवन को परिणीति तक पहुंचाती है।
कहानी बहुत सुंदर बन पड़ी है। पूरी कहानी को जानने के लिए पढ़ें - अनावरण


भाषा:
एक कवियित्री होने के कारण रंजना जी ने इस उपन्यास में भी उसी काव्यात्मक लय, ताल, और निर्मलता को बरकरार रखा है। उपन्यास की भाषा बहुत ही अलंकृत, सरल, तरल और मानव के ह्रदय में पनपने वाले भावों से युक्त है। एकदम स्वच्छ भाषा शैली में कही गयी ये कहानी पाठक के मन को मोह लेने में पूर्णतया सक्षम है। रंजना जी ने यथा योग्य अलंकारों और विशेषणों के प्रयोग से इस कहानी को, जो कभी कभी उदासी से भर देती है, एक खुशनुमा संजीदगी से भर दिया है। दूसरे कहानी का स्थान रुद्र प्रयाग है जहां ऊंचे हिमाच्छादित पर्वत हैं, इधर-उधर विचरते दूधिया सफ़ेद बादलों के टुकड़े हैं, शीतल हवा के झोंके हैं, सुंदर पक्षियों का कलरव है, घने वृक्षों की छाँव है, स्वामी जी का आश्रम है और कलकल बहती गंगा माँ है जो आपको हमेशा तरोताज़ा बनाए रखते हैं।


समीक्षा :
ये समीक्षा मैं एक सामान्य पाठक की प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, न कि संपादक की नज़र से।
कहानी दो प्रेमियों की है जो खुलकर प्रेम का इज़हार नहीं कर पाते। पढ़ते पढ़ते लगता है कि कोई पुराने जमाने की फिल्म देख रहे हों। इस उपन्यास का इस समय आना लगता है कुछ देरी से हुआ क्योंकि ये ज़माना तुरत-फुरत प्रेम के इज़हार का है, परिणीति चाहे कुछ भी हो। इसलिए ये उपन्यास आज की नई पीढ़ी को कुछ अटपटा सा लग सकता है। वैसे आज भी पुराने ज़माने के पाठकों की कोई कमी नहीं है और मुझे लगता है कि ये उपन्यास सभी लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा चाहे जिस भी उम्र के हों क्योंकि एक उपन्यास की सफलता सिर्फ उसकी उसकी कहानी ही नहीं परंतु एक उत्तम भाषा शैली और कहानी कहने के अंदाज़ पर भी निर्भर करता है जो यहाँ लाजवाब बन पड़ा है। दूसरे, मेरे विचार से इस कहानी को और विस्तार दिया जा सकता था जिसकी कमी पाठक को महसूस होती है। किसी भी कहानी में पाठक की रोचकता बनाए रखने के लिए उसमें कुछ अंतराल के बाद नई घटनाएँ और थोड़े चकित करने वाले मोड़ अपेक्षित होते हैं जिनकी इस उपन्यास में थोड़ी कमी है। लेकिन कहानी की अस्मिता को ध्यान में न रखते हुए उसमें ज़बरदस्ती ठेले गए वृतांत भी पूरे कथानक को कृत्रिमता की ओर धकेल देते हैं, जो कि रंजना जी ने बिलकुल नहीं होने दिया और कहानी को शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर दिया है। इसके लिए मैं रंजना जी को साधुवाद देना चाहूँगा।

मैं रंजना प्रकाश को इस बेहतरीन उपन्यास के लिए ह्रदय से बधाई देता हूँ और उनसे इसी प्रकार लिखते रहने की आशा करता हूँ। उनके आगे आने वाले उपन्यासों की प्रतीक्षा रहेगी।
अनावरण को प्राप्त करने के लिए लिंक :
https://www.amazon.in/Anawaran-Ranjana-Prakash/dp/9385137875/ref=sr_1_fkmr0_1?ie=UTF8&qid=1548939636&sr=8-1-fkmr0&keywords=anavaran+by+ranjana+prakash

राजीव पुंडीर
30 Jan 2019

Tuesday, January 22, 2019

समीक्षा : नीली आंखें : लेखक राकेश शंकर भारती

मित्रों,
पिछले दिनों हिन्दी की कई किताबें पढ़ीं। बहुत निराशा हुई । तभी राकेश शंकर भारती से फेसबुक पर मुलाक़ात हुई और उन्होंने मुझे उनके द्वारा लिखी गयी किताब "नीली आँखें" पढ़ने का आग्रह किया। पहली नज़र में मुझे ये किताब भी वैसी ही लगी जिन्हें पढ़कर मैं ऊब चुका हूँ जिनमें नई हिन्दी के नाम पर सिर्फ गंदा सेक्स ( काम नहीं ) गंदी भाषा में  ही पाठकों को परोसा जा रहा है । इसलिए मैंने उनको मना कर दिया । लेकिन उन्होंने मुझे इसकी कहानियों की भूमिका बताई कि ये कहानियाँ यूक्रेन के समाज की कहानियाँ हैं क्योंकि वो वहीं पर रहते हैं। एक जिज्ञासु होने के कारण मुझे यूक्रेन के समाज में पनपने वाली कहानियों ने आकर्षित किया और मैं इस किताब को पढ़ने के लिए तैयार हो गया । मैंने ये किताब वर्ल्ड बुक फ़ेयर नई दिल्ली से ख़रीद ली। पढ़ने के बाद मेरी सोच  इस किताब के प्रति काफी बदल गयी। इस किताब को नवयुग प्रकाशन ने दिल्ली से प्रकाशित किया है।

इस किताब में कुल मिलाकर दस कहानियाँ हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं - पहली ये कि जिस व्यक्ति के अंदर लेखक विद्यमान होता है, जगह, देश, काल, भाषा, पहनावा, संस्कृति उसके लिए कोई मायने नहीं रखते और वो अपने लिए लिखने का मसाला खोज ही लेता है। उसके अंदर का लेखक बेचैन रहता है कुछ नया पाने के लिए, कुछ नया सूंघने के लिए, कुछ नया लिखने के लिए। राकेश शंकर भारती बधाई के पात्र हैं कि उनहोंने यूक्रेन के समाज कि विशेषताओं और विषमताओं दोनों को बखूबी समझा और कहानियाँ लिख डालीं। दूसरे, ये कि समाज कोई भी हो, धर्म कोई भी हो, देश कोई भी हो, भाषा कोई भी हो, आदमी और औरत की नैसर्गिक प्रकृति वही है, प्रवृत्ति वही है, एक दूसरे को पाने की, प्रेम करने की चाह वही है। न आदमी बदला है, न औरत।



इन कहानियों में प्रेम है, फ़रेब है, उनसे उपजे सुख और दुख हैं। ये कहानियाँ आपको पात्रों के प्रति संवेदना से भर देती हैं और कभी कभी इतना आश्चर्यचकित कर देती हैं कि आप भाव विभोर हो उठते हैं। कैसा लगा होगा जब एक लड़की को उसका बाप मिलता है जब वो अपनी आखिरी सांस ले रहा होता है, जिसने उसकी माँ को एक दूसरी औरत के लिए तभी छोड़ दिया था जब वो बिना शादी किए ही गर्भवती हो गयी थी। और कैसा लगा होगा एक पत्नी को जब वो और उस आदमी की प्रेमिका दोनों एक ही दिन एक ही हॉस्पिटल में प्रसव के लिए आती हैं, दोस्त भी बन जाती हैं और एक ही कमरे में एड्मिट हो जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी में एक औरत को उसका बहुत पुराना प्रेमी एक ट्रेन में मिल जाता है। और भी कहानियाँ हैं जिन्हें पढ़कर आपको एक अलग समाज की नाड़ी किस प्रकार से चलती है उसका आभास हो जाएगा।

ये कहानियाँ हिन्दी में लिखी गयी हैं जिनमें उर्दू भाषा के शब्दों का काफ़ी प्रयोग हुआ है, और कहीं कहीं थोड़ा अश्लील भी हो गयी हैं मगर इनमें गंदा और भोंडापन नहीं है। जो भी है तर्कसंगत है। हाँ, राकेश जी को अपनी भाषा पर ध्यान देना होगा क्योंकि कहीं कहीं भाषा में कमी अखरती है क्योंकि विदेश में रहने के कारण शायद भाषा में उतनी परिपक्वता नहीं आई है जितनी मूलरूप से आवश्यक है,  और हर कहानी में अलग परिपेक्ष्य को अपनाना होगा ताकि कहानियों में नयापन झलक सके।

मैं राकेश शंकर भारती जी को इस कहानी संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ। और इच्छा करता हूँ कि आप ऐसे ही लिखते रहें। सभी से अनुरोध है कि एकबार इस कहानी संग्रह को अवश्य पढ़ें।

राजीव पुंडीर
जनवरी 22, 20192 

Review : Tacit Stories By Jasmin Thaker

Long back a book hit the market titled Fifty Shades Of Grey. It became such a hit that I couldn't resist myself and jumped on to it to read. But to my astonishment, I found it absolute crap as it's neither a love story nor an erotica. And I could not go beyond a few pages.
Just by chance, I came to know about Jasmin and his penchant for writing. Tacit Stories is his first book and to my surprise it's an erotica. Erotica is very difficult genre and needs special talent, technical know-how and of course a command over the language used to write an erotica. I can say that Jasmin has all the above expertise and written these stories with perfection. I can say that no Indian author has penned such a wonderful book ever except Jasmin in this genre which is considered dirty, untouchable, inarticulable, and restricted in our society. Jasmin has taken a courageous step for writing this erotica book in true letter and spirit. After reading the book, people would wonder that an Indian writer can write such a book in such an amazing language which may titillate, excite and compel them to understand love and sex in pure form devoid of lust.

In the stories, there's love, passion, emotions, natural urge of having sex and getting physical pleasure in a tender and happy manner from both the partners.
The effect of the language, narration, sexual acts and the whole scenario is so profound that the reader is filled with love and sexual excitement in true sense.

I have found most erotica books dirty. But Jasmin has kept the language absolutely refined, neat and clean. And I would say that the book has a potential to surprise and mesmerise the reader.
I recommend the book to one and all, girls and boys, ladies and gentlemen, and even above sixty years of age to enjoy, to learn, to refresh and to rejuvenate their sex life.
I would suggest the author to divide this book into three parts as it seems to be too big comprising more than 300 hundred pages.
Congratulations Jasmin for writing such a wonderful book.
All the best for this book and for future!!

Rajeev Pundir
22/Jan/2019

Wednesday, January 9, 2019

एक शाम, एक ख़ास मुलाक़ात : लेखिका मंजु सिंह से।

साक्षात्कार :
पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिये I
मुझे लोग मंजु सिंह के नाम से जानते हैं । मैं अध्यापन के क्षेत्र से जुड़ी रही हूँ। मैने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद बी एड भी किया । लेखन मुझे आत्म संतुष्टि देता है। समाज में फैला किसी भी प्रकार का प्रदूषण मुझे जब विचलित करता है तब मैं अपनी भावनाओं को शब्द दे ही देती हूं अक्सर । लेख, कविता, कहानी, लघु नाटिका, समीक्षा, आलोचना, संस्मरण आदि लिखती रही हूं। मेरी रचनाएँ विभिन्न सोशल मीडिया के विभिन्न पोर्टलों पर प्रकाशित होती रही हैं। साहित्य कुँज , अनुभव पत्रिका, दा रायटर, प्रतिलिपि, मातृभाषा, हिंदी लेखक डॉट कॉम आदि पर रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मोम्स्प्रेस्सो के लिए ब्लॉग भी लिखती रही हूँ। हाल ही में पहली बार मेरी रचनाएँ “जिंदगी :कभी धूप कभी छांव”  नामक साझा कविता-कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई हैं। यही संक्षिप्त सा परिचय है मेरा।

2. आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?
लेखन यूँ तो विद्यार्थी जीवन में ही आरंभ हो गया था। उन दिनों भी दो चार कविताएं एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं। मैं तब शायद नवीं कक्षा में थी। उसके बाद बस डायरी में लिखना जारी रहा। विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों और नौकरी के चलते समयाभाव रहा और लेखन लगभग बन्द ही हो गया। जब मैं 14 वर्ष की थी तब मेरी दो कविताएँ एक पत्रिका में छपी थीं जिसका अब नाम भी याद नहीं है। तब न जाने कितनी कविताएँ लिखीं लेकिन संग्रह नहीं किया । लिख तो तभी से रही हूँ लेकिन प्रकाशन के लिये कहीं भेजीं नहीं कभी।

3. आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
जब कलम के मन में जो भी आ जाए वही लिखती है वह । कहानी , कविता , लेख , संस्मरण , नाटिका , समीक्षा सभी कुछ लिखती हूं।


4. आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज़ से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं ?
अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक-लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कवितायें लिखते हैं I क्या आपकी रचनाएँ भी आपके जीवन का प्रतिबिम्ब हैं ?
मेरी कविता आसपास के माहौल से अथवा घटनाओं के प्रभाव से ही प्रस्फुटित होती है । जब मन अधिक खिन्न या प्रसन्न होता है या यूँ कहें कि भावनाओं का अतिरेक ही कविता को जन्म देता है। जी लेखक भी समाज का अंग है और समाज में घटित घटनाएँ उसे प्रभावित करती ही हैं। कहानियाँ समाज से ही निकलती हैं अधिकतर । कभी व्यक्तिगत अनुभव पर भी आधारित होती हैं और कभी देखी सुनी घटनाओं से प्रेरित। कभी इतिहास की घटनाएँ भी कहानी या कविता का आधार बन जाती हैं।

5. आजकल फेसबुक आदि मंचों पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहीं हैं I क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए?
बात सही है कि आजकल सोशल मीडिया के रूप में एक सुलभ मंच सभी के लिये उपलब्ध है। मैं मानती हूं कि बहुत से लेखकों को ख्याति प्राप्त हुई है इसके माध्यम से जो कि पहले इतना सरल नहीं था। अब पुस्तक के रूप में अपनी रचनाओं के प्रकाशन के अवसर भी इसी मंच के माध्यम से बहुत सुलभ हो गए हैं। पहचान बनाने और स्वयं को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए आंशिक रूप से मददगार अवश्य है यह माध्यम।

6. आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे – सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों?

मैं निश्चय ही हार्ड कॉपी के रूप में अधिक पसंद करूँगी क्योंकि उसकी उम्र और महत्व दोनों ही अधिक हैं।


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि?
आज के समय में पैसे के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यश की भूख भी बढ़ ही रही है लेकिन सच कहूँ तो मैं दोनों में से किसी के लिये नहीं लिखती केवल आत्मसन्तुष्टि ही मेरे लिए बड़ी चीज़ है। समाज में यदि एक व्यक्ति के विचारों में भी मेरे लेखन से कोई सकारात्मक परिवर्तन आ जाए तो लेखन सफल हो जाएगा ।

  8. एक लेखक के लिए क्या ज़रूरी है – उसके अन्दर का कलाकार, उसकी शैक्षिक योग्यताएं, या फिर  कुछ और ?
एक लेखक के लिए उसकी भावनाएँ और उसके विचार सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। उसके भीतर का कलाकार ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिसके माध्यम से वह समाज को अपने विचार संप्रेषित करता है

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
इरादा करके अभी तक तो कुछ लिखा नहीं कभी । हां परिस्थितियाँ जो भी लिखने की प्रेरणा देंगी, वह अवश्य लिखूंगी।  उपन्यास लिखने की इच्छा है। कोशिश ज़रूर करूंगी।

10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है, जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
नए लेखकों से केवल यही कहना चाहूँगी कि कलम की शक्ति का महत्व समझें और वही लिखने का प्रयास करें जिससे समाज को एक दिशा मिल सके, एक सकारामक परिवर्तन की दिशा ।

                                                                             ****


Friday, November 23, 2018

Review : Four Stories Of Love Hope and Desire By Mahesh Sowani

Introduction:

This is a collection of four stories written by Mahesh Sowani. The format of the book is Kindle and it's available on Amazon.in for Rs. 49/- only. Stories have been selected from incidents happening around us in daily life and narrated in an interesting manner.

The Stories:

The very first story, Incomplete Lives, revolves around the life of a boy Kunal who's depressed because of his impending divorce with his wife. Despite it he's a bit upset with the hussle bussle of his official work also. His friend, Bhavna, who had been one year senior to him in college, now working abroad comes to meet him. What transpires between them and how she takes him out of that situation is the gist of the story and one must read such stories to know the importance of trivial things in our lives. Bhavna says to him, "We are not Gods, neither are all things in our control." Again she says,"Life is like a river....ever changing..." Beautiful!

The second story, Two Women, takes you to the lives of a labour class man Vishnu, his wife Meena and his paramour Lakshmi. The writer has very smoothly sailed through the intricacies of this triangular relationship. The story takes a sudden turn when Vishnu dies due to heavy drinking leaving the deed of a plot he bought for Lakshmi. Meena too stakes her claim over the plot. How the tussle between them is solved, just read the story. the climax is surprising - not easy to believe.

The third story, The Only Alternative, too is taken directly from lower class family. I found this story very different, very intense and baring the ugly games people play ignoring and even disrespecting the dignity of mutual relations that they can go to any extent to fulfill their sex drive. This shows the other side of the coin called society. A must read.

The last story entitled as Some Stories takes you to the lives of  retired persons who pass their time by forming a senior citizens club comprising men and women both. They communicate and share jokes with each other. Apart from it they want to make their club a different one. One of them Lily suggests about telling stories which everyone has deep in their hearts buried since years. And the drama begins...and a few interesting and intriguing stories tumble out from their personal diaries. A unique story indeed!


My Take :

In my view, Mahesh Sowani  has successfully carved out beautiful stories out of day-to-day life. The stories are inspiring, and the characters are having  love, hope, sympathy, mutual respect and concerned for each other. The language is simple, smooth like a fluid and easily graspable for one and all. The subject matter of the stories is also relatable for all age groups, genders and classes.
There're areas of improvement which demand attention. The first one is the manuscript needs re-editing as there're a few typos and grammatical errors. It can be done easily as this is Kindle edition and can be replaced instantly. The other is its title. Of course these four stories depict love, hope and desire, the book needs a compelling title.

I see a big potential in the writer and expect more books from his desk and congratulate him for penning these wonderful stories.

All the best!!

Rajeev Pundir
23/11/2018

Tuesday, October 16, 2018

साक्षात्कार : गरिमा मिश्र 'तोष'

एक नवोदित लेखिका और गायिका से आज शाम की गयी एक विशिष्ट मुलाक़ात :

गरिमा जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दें।
मेरा नाम गरिमा मिश्र है और मैं 'तोष' उपनाम से पहचाना जाना पसंद करती हूँ।
मैंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम फिल किया है और क्यूंकी मेरी रुचि संगीत में भी बहुत है इसलिए गायन में संगीत विशारद भी किया । आजकल एक एन जी ओ जुड़कर सामाजिक कार्य भी कर रही हूँ।


आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया?
जी, चूंकि बचपन से घर का वातावरण लेखन पाठन का देखा, मां और नानाजी सिद्धहस्त लेखक और रचनाकार  पास रहे ...उनकी प्रेरणा से लिखना शुरू किया मेरी पहली कविता 'ऐ धरा' स्कूल के वार्षिक अंक में छपी और सराही गई,फिर तेरह वर्ष की वयस से जो लेखन साधना आरंभ की वह सतत अबाध गति से जारी है आज भी।

आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी या कविता आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
मेरे लिये कविता बारिश की बूंदों सी है अचानक घुमड़ कर बरस जाती है। कहानी भवसागर का अथाह नीर संग्रह ...अतः जब कुछ आत्मिक कहना होता है तो शब्दों को कविता मिल जाती है और जब कुछ सघन कहना होता है तो कहानी आकार ले लेती है...मुझे दोनों ही माध्यम प्रिय है ।

आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं?
मेरा मानना है कि हम रचनाकार भावुक और संवेदनशील होते हैं।  स्वयं के और आस पास के वातावरण से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते...तो आप कह सकते हैं कि मेरी रचनाएं दैनिंदिन घटनाओं का प्रतिबिंब ही होती हैं ।

अधिकतर देखने में आया है सभी लेखक लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने खुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं ,क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिबिंब  हैं?
हम्म्जी... बहुत बढिया प्रश्न है..जैसा कि मैने पूर्व में कहा है किसी भी रचनाकार का जब तक यथार्थ से भावानुबंध नहीं होता तब तक ...सार्थक रचना को व्यक्त करना उसके वश की बात नहीं होती। फिर वो चाहे स्वयं की भोगी कोई भी अवस्था हो या किसी अपने कि या किसी अपरिचित की सुखद दुखद स्मृति..अतः मेरी रचनाएं भी उन्हीं अनुभवों को आधार बना कर पाठकों से मिलती हैं और विभिन्न सामाजिक मानसिक अवगु्ंठनों को सहजता से खोल देती हैं।



आजकल फेस बुक आदि मंचों पर अधिक लेखक और लेखिकाएं देखनेको मिल रहीं हैं क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं, अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिये?
जी किसी हद तक यह मंच सरल माध्यम होता है कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचने का..परंतु सुरक्षित तो कतई नहीं  है..यहां बहुधा अपनी रचनाओं का चोरी होने का अंदेशा होता है...और वैसे भी पुस्तक का अपना अलग स्थान है जिसको एसे मंच विस्थापित नहीं  कर सकते हैं।

आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे- सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों ?

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं और शायद हंसते भी हैं कि इस तकनीकी युग में तुम पुराने पड़ते पन्ने और धूसर पड़ती स्याही को क्यों सहेजा करती हो और मेरा जवाब वही होता है मैं शब्दों को भावनाओं की अंजुली से समेटती हूं और किताबों के पन्नों में बिखेर देती हूं ताकि जो पढे वह खुद को उन पन्नों  की नई सी खुशबू से लिपटा पाए और कहीं अपनी यादों को पढे हुए खुद के मोड़े हुए पन्नों में पा जाए..या कहीं किसी सफ्हे पर दबे सूखे फूल सा मुस्कुराए..माने मैं अपनी कृति को हार्ड काॅपी में देखना ज्यादा पसंद करूंगी ।

आपके जीवन में पैसा अधिक मह्त्वपू्र्ण है या प्रसिद्धि?

पेचीदा प्रश्न है..मेरे लिये दोनों ही महत्पूर्ण नहीं  है लेखन स्वांतः सुखाय बहुजन हिताय ही है...पर हां तत्कालीन परिस्थितियों में अर्थ के साथ साथ प्रसिद्धी की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता ।

एक लेखक के लिये क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार उसकी शैक्षणिक योग्यता या फिर कुछ और?
मेरे अनुभव और भावविचार से रचनाशीलता किसी भी व्यक्ति की संवेदनशीलता, प्रबोधिता, संश्लेतात्मकता, विचारशीलता, सहजता सरलता ही तय करती है..एक सच्चे रचनाकार को शिक्षा का परिमार्जन न भी मिले तो भी उसका मात्र सहज और सरल होना ही उसको और उसकी कृति को उत्कृष्ट और अनूठा कर जाता है।

आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
लेखन तो जारी है..दो उपन्यास तैयार हैं..और एक अंतर्राषट्रीय व्यक्तित्व पर बायोग्राफी का कम चल रहा है..जल्द ही आप सब के सामने आएंगे।

नए उभरते कवियों और लेखकों के लिये आपका क्या संदेश है जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
जी जरुर, मेरा यही संदेश है कि साहित्य वही कहाता है जो हितार्थी हो..चार पंक्तियों से अपनी बात पर विराम दूंगी:
ऐ कलमगर रख इतना जमाल अपने हुनर पर
कि पुश्त दर पुश्त संवर जाए
पढ़े जो तिरा लिखा, फरिश्ते क्या शैतान भी इल्मे नजर पाए ।
आप सब को नवरात्रि और दशहरे की अग्रिम अशेष शुभकामनाएं।