Wednesday, January 13, 2021

तोष : कविता संग्रह : लेखिका गरिमा मिश्रा

 लेखिका गरिमा मिश्रा से परिचय तब हुआ था जब वो मेरे द्वारा संपादित कहानी संग्रह "ज़िंदगी : कभी धूप कभी छांव" की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जुड़ी। उसमें उनकी एक कहानी और कुछ कवितायें थीं जिनको पढ़कर हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। लेकिन उनका ये कविता संग्रह जो अभी "तोष" के नाम से आया है पढ़ने वालों को उनकी कविताओं से नहीं उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और कविता लेखन में उनकी पकड़ से रु-ब-रु कराने में सौ प्रतिशत कामयाब हो गया है। 

तोष की कवितायें गंभीर और सार गर्भित हैं। यदि आप उनसे तत्परता से गुजरना चाहेंगे तो आप न उन्हें पूर्ण रुपेण ग्रहण कर पाएंगे  और न ही पढ़ने का आनंद ले पाएंगे। इसलिए धीरता के साथ तन्मय होकर पढ़ें। तोष की कवितायें गंभीर होते भी एक शांत धीमी धीमी शीतल हवा के झोंके की तरह आपके मन को छूती हैं, कभी गुदगुदाती हैं, कभी आपको भाव विभोर कर आपकी आँखें नम कर देती हैं, कभी लगता है की आप तपते सूरज के नीचे खड़े झुलस रहे हैं और कभी आपको एहसास होता है कि आपके ऊपर ठंडी चाँदनी बादलों के बीच से छन छन कर बरस रही है : 

1 मनाई है कितनी ही ईद राहे महताब, ये और बात है कि मेरे ही सहन नहीं उतरा कभी वो...

2 एक रिश्ता है साँसों में बसी खुशबू सा, रगों में ढली बोली सा, कुछ खट्टा कुछ मीठा सा, एक रिश्ता है गरम नरम हथेली सा, कच्ची पक्की हवेली सा, एक रिश्ता है संग यादें हैं, वो है दूर किसी पहेली सा....

एक अद्भुत शेर है:

एक रूहानी सी मासूमियत उतार आती है, हर कत्ल के पहले क़ातिल पे,

कत्ल ए तहज़ीब निभाई इस तरह...

दूसरा है :

अक्सर जिस्मों के दायरे से, निकलकर सुख़न तेरे पैरहन मिली, तू भी क्या चीज़ है ज़िंदगी, जब मिली उलझन में मिली।

लेखिका का खुद का दर्द अनेकों शेरों में झलकता है। लगता है किसी ने उन्हें बेपनाह दर्द भी दिया है क्योंकि इतनी भावुक और दर्द भरी शायरी शायद वो ही लिख सकता है जो उस दर्द के समंदर से खुद डूब कर गुज़रा हो. हालांकि ये नयी बात भी नहीं है क्योंकि सभी लेखकों के साथ कमोबेश ये होता है कि लिखते समय उनके दर्द उनके अल्फ़ाज़ों में ढल जाते हैं। 

  एक बानगी : 

मेरा वजूद, मेरा वक़्त सब उसका, मैं अपने ही हिस्से की न रही। वो गैरों से यूं मिलवाता है मुझको, जैसे कोई बीता हुआ लम्हा कोई। मैं उसकी यादों में बीतती, अपने ही लिखे किस्से की न रही...


दोस्तों बहुत ही उम्दा कवितायें हैं, प्रेम, विरह, यादें और न जाने कितने भावों से परिपूर्ण ये कविताएं निश्चित रूप से संग्रह के योग्य हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हिन्दी-उर्दू साहित्य को समृद्ध करने की शक्ति रखतीं हैं। 

अपने नाम के अनुसार ये किताब "तोष" पाठकों को संतुष्टि से लबालब  भर देगी। साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए अद्भुत काव्य संग्रह है। अमेज़न पर उपलब्ध है जिसे एविन्स पब्लिशर ने छापा है। 

मैं, एक लेखिका, विशेष रूप से एक कवियित्री के रूप में गरिमा मिश्रा के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए अपनी शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ। 


राजीव पुंडीर

13 जनवरी 2021

Saturday, December 5, 2020

Review : It All Happened In A School : Novel by Gaurav Sharma

 Gaurav Sharma is an accomplished writer and I still admire and remember many anecdotes from his first book Love @ Airforce. Later Rape Scars & Dawn at Dusk came and hailed by readers. His latest is "It All Happened In A School" published by Petal Publishers. 

The Story:

The pivot of the story is a School named God & Guru Convent School run by a joint management committee of two religious organisations pertaining to Sikh and Christian communities. Half of the book keeps you entertaining by the usual conversation among the staff members the undercurrent of which is mostly sex oriented happening in any given office. Perhaps the writer wants to keep the reader in a lighter vein creating a jovial atmosphere before he takes you to the next half where something grave happens. However in between he introduces the style of functioning of a private school like their highhandedness, monopoly and an exploitation of the staff, mainly teachers by the management through fringe events.To know what grave happens in the later half - read the book. 



Review:

The book has been written in non-sequential manner as the subplots come to light one by one nowhere related one another. The interview for selecting a teacher, a classroom prank, a murder and in the last a rape all happen independently keeping the reader guessing all the time. The main protagonist of the story is an honest teacher Saubhagya but most of the chapters have been titled after another fellow teacher Harjeet Singh which I found a bit surprising. The cover page of the book is so-so and could have been designed in more expressive manner synchronising with the story. However the writer has successfully portrayed all the incidents which happened or may happen in any given school so that the parents become attentive and aware about the safety of their wards.

The real take away from this book are few compelling quotes - strong enough to stir the readers' conscience:

"I want to breathe life. I've had enough of the desert. I want my share of oasis now."

"Women are always sure about two things : When do they look more beautiful and what does the man staring at her wants."

"Mathematics is a flattery loving muse. She expects that you spend lots of time with her, she will make you a king. If you ignore her, she will make you miserable."

"Truth is a blade. You shouldn't keep it between your lips."

"We teachers change the world everyday. Teachers are the heart and students are the blood of a school."

An error is to be corrected when the head of the police team asks to show him the spot where the raped girl was found but with a wrong name. 

My Take:

This book is an eyeopener for the parents and perhaps has been written to make them aware about the safety of their children as similar incidents have been and are being reported more often than not. I wish all the best to Gaurav Sharma for the success of the book. 


Rajeev Pundir

06/12/2020 

Monday, November 23, 2020

एक प्याला कॉफी : कविता संग्रह : लेखिका : रंजना प्रकाश

इश्क़ में अल्फ़ाज़ों की 

ज़रूरत क्या है,

बात बनती ही तब है 

जब कही ना जाये ........

ये पंक्तियाँ रंजना जी के नए कविता संग्रह से उद्दृत कर रहा हूँ...जो नितांत सत्य है और  स्त्री और पुरुष के आदि काल से चले आ रहे संबंध के बीच ये मौन गंगा की तरह पावन ही सतत बह रहा है। कहते भी हैं कि सत्य का स्वरूप सिर्फ मौन में ही समझा जा सकता है - क्योंकि जैसे ही हम सत्य को शब्दों का परिवेश देने लगते हैं वैसे ही असत्य अपने पैर पसारने लगता है। 

इश्क़ में यादों की

 मंज़िल तो बता दो यारों,

खबर तो हो के सफर 

और कितना बाकी है...

मित्रों आपको भी पता है कि इश्क़ एक मदहोशी का नाम है। जो इसमें पड़ जाता है उसे दीन दुनिया का कोई ध्यान नहीं रहता। परंतु लोग कह नहीं पाते कि आखिर ये मदहोशी इश्क़ के कारण ही है या कोई और नशा है...लेकिन एक सिद्दहस्त लेखिका ने कितनी आसानी से कितनी गहरी बात को उजागर कर दिया है... 




प्यार में रूबरू न हुए,

तो कोई बात नहीं, 

सिर्फ अहसास ही काफी है,

सांस लेने के लिए...

मुझे इन पंक्तियों में एक प्रेमी दिखा, एक प्रेमिका दिखी और एक तरफा प्रेम दिखा जिसको एक दार्शनिक की पोशाक पहनाकर रंजना जी ने आपके कानों में  सहजता से गुनगुना दिया...बहुत ही उम्दा और खूबसूरती के साथ। 


शाख से गिरते सूखे,

पत्तों से बचकर चलना, 

पाँव न रखना लोगों,

यहीं कहीं इस टूटे दिल के 

कतरे गिरे थे कभी...

इन पंक्तियों में अद्भुत दर्द का एहसास है। वो दर्द जो अपने किसी विशेष का दिया होता है। जब कोई इस प्रकार से दिल तोड़ता है कि चूर चूर होकर बिखर जाता है...

पूरी किताब जिसका शीर्षक भी बहुत अनोखा है "एक प्याला कॉफी" इसी तरह की अनुभूतियों, उद्गारों, अहसासों, और भावनाओं से सराबोर है जो आपको भी अपनी धीमी धीमी फुहारों से पाठक को भिगोने लगती है। पाठक कभी दर्द से भर जाता है और गमगीन हो जाता है, कभी पढ़ते पढ़ते उसके होठों पर एक मखमली मुस्कान तैर जाती है, कभी उसका अस्तित्व गंभीरता से भर उठता है तो कभी आँख बंद कर वो अपने प्रेमी के साथ बिताए खुशनुमा क्षणों को याद करके उनमें डूब जाता है...क्योंकि ये पुस्तक पुरुष और प्रकृति के प्रेम, बिछोह, वेदना, तड़प, टीस, और बहुत से रंगों से परिपूर्ण है।



रंजना जी एक अद्भुत रचनाकार और कलमकार हैं...जिनके भीतर का संगीत उनकी लेखनी से प्रवाहित होता रहता है कभी लघु कथाओं में, कभी उपन्यास के रूप में और अधिकतर उनकी कविताओं में। उनकी लेखन शैली बहुत ही सुंदर, सभी अलंकारों से युक्त, प्रकृति से तालमेल बढ़ते हुए आगे बढ़ती है जो पाठक के लिए आसानी से समझी जाने वाली और रोमांचक है...वो अपनी कृतियों में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए धारदार वाक्यों को गढ़ने में माहिर हैं। "एक प्याला कॉफी" उनकी नयी कविताओं की पुस्तक है जिसका मुखपृष्ठ बहुत सुंदर और आकर्षक है। पुस्तक में जो भी शब्दों की त्रुटियाँ हैं मेरी प्रार्थना है उनको अगले संस्करण में दूर किया जाना चाहिए...जिससे पाठन का आनंद दुगना हो जाएगा।

मैं रंजना प्रकाश जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी हिन्दी साहित्य को इसी प्रकार सींचती हुए आगे बढ़ती रहे। 


राजीव पुंडीर

24 Nov 2020

Thursday, February 20, 2020

सिंदूर खेला : कहानी संग्रह - रंजना प्रकाश

परिचय:
श्रीमती रंजना प्रकाश की ये चौथी पुस्तक है। इससे पहले यादें (कविता संग्रह) अनावरण, प्रारब्ध और प्रेम ( उपन्यास ) प्रकाशित हो चुकी हैं जिनको पाठकों ने बहुत सराहा और पसंद किया। एविन्सपब पब्लिकेशन, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा इस पुस्तक को प्रकाशित किया गया है। मुझे उम्मीद है कि इस पुस्तक को भी पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा।
समीक्षा :
कहानियों का सृजन करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन उससे भी कठिन है उन्हें पढ़कर उन पर अपनी प्रतिक्रिया देना। फिर भी लेखक कितना भी सिद्धहस्त हो, जैसे कि रंजना जी हैं, सबको इस बात को जानने की उत्सुकता रहती है कि उसके पाठकों की उसकी नयी रचना के प्रति क्या प्रतिक्रिया रही, क्या लोगों के मन को कहीं छू पायी, क्या जो बात लेखक पाठकों तक अपनी लेखनी के माध्यम से कहना चाहता है वो कह पाया या नहीं और कहीं कोई उसके लेखन में कमी तो नहीं रह गयी ताकि आगे सुधार कर सके। इस कहानी संग्रह में कुल 15 कहानियाँ है और पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूँ कि रंजना जी अपने उद्देश्य में सफल रही हैं ।
पहली कहानी 'वापसी' है जो नई पीढ़ी को एक स्पष्ट संदेश देती है कि वर्षों से चली आ रही परम्पराएँ भी तोड़ी जा सकती हैं यदि उनसे लाभ के बदले हानि हो रही हो। दूसरी कहानी 'दूसरी औरत' सब कुछ सह कर भी उन्हीं परम्पराओं को निभाने की शिक्षा देती है जो कि पहली कहानी के एकदम विपरीत है। लेकिन कहानी पढ़कर आपको दोनों कहानियों के सन्दर्भ में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि अपनी जगह दोनों सही हैं। तीसरी कहानी 'माज़ी' है जो बताती है कि सच्चा प्रेम करने वाले ज़रूरी तो नहीं कि जीवन में शादी कर पाएँ। इस कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है जब पूर्व में रही प्रेमिका का सामना अपने प्रेमी और उसकी पत्नी से हो जाता है और उसका ये कहना कि आज से वो उसे अपनी ननद समझे, पाठक को हतप्रभ कर देता है। किसी चरित्र में अचानक ये बदलाव रंजना जी ही कर सकती हैं। जहां पाठकों को ये कुछ अटपटा लगेगा, वहीं अगर दूसरे कोण से देखें तो अपने और अपने प्रेमी के परिवार की खुशी के  लिए उस लड़की के द्वारा ये रूपान्तरण एक साहसिक कदम है। अब आगे बढ़ते हैं तो चौथी कहानी 'तूफान' से सामना होता है जो एक ऐसे तूफान से रूबरू कराती है जो कभी न कभी हम सबकी ज़िंदगी मे आता है और अगर हम चौकन्ने न हों तो ये हमारे घर को, हमारे रिश्तों को बर्बाद भी कर सकता है। पांचवी कहानी फिर से हमें हमेशा चौकन्ने रहने की सीख दे जाती है कि यदि कोई अचानक हम पर मेहरबान हो जाता है तो उसका बहुत बड़ा स्वार्थ है और वो हमारा ग़लत फायदा भी उठा सकता है।
"मेरे हृदय की धीमी-धीमी राख़ में दबी हुई आग जो विकराल रूप धारण कर चुकी है इससे किसी और को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः मेरी अंतर ज्वाला ताउम्र आखिरी सांस तक मुझे तपाती रहेगी।" ये पंक्तियां छठी कहानी के अंत से ली गईं हैं जिसका नाम है 'अनावृत मन'। किस प्रकार से पहला प्रेम दुखदाई हो कर पूरे जीवन को सालता रहता है और वो टीस दिल ही दिल में हमेशा चुभती रहती है इसका वर्णन लेखिका ने बखूबी कर दिया है। अगली कहानी 'फॅमिली फ्रेंड' भी बढ़िया कहानी है जब पुराने प्रेमी जीवन को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं जैसे वो आता है - बिना किसी विरोध के। 'प्रिटी लेडी' आठवें नंबर पर है। इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने एक स्त्री के मन की गहरी परतों को परत दर परत खोला है - कि किसी भी उम्र में उसके सोये हुए अरमानों को जगाया जा सकता है - बशर्ते कि जगाने वाला हुनरमंद हो । मुझे ये कहानी बहुत सुंदर लगी। कमोबेश अगली कहानी 'मसखरा' भी उसी तरह की कहानी है की जो हंसोड़ और मज़ाकिया लगता है उसके  व्यक्तित्व में भी एक गहराई होती है जिसे हम समझ नहीं पाते। दसवीं कहानी 'सिंदूर खेला' है जो इस कहानी संग्रह का टाइटिल भी है। दुखों से लड़ते लड़ते व्यक्ति किस प्रकार से एक साहसी व्यक्ति में परवर्तित होकर अत्यंत संवेदनशील हो जाता है और अंजाने लोगों की मदद करके उनको गहरे अवसाद से उबार कर जीवन जीने की कला सिखा देता है। इसी बहाव मे अगली कहानी 'प्रतुल स्टिल आई लव यू' है जिसका आधार भी वही मानवीय संवेदनाएं हैं जो अपने दुख से उपजती हैं और हमें अंजान लोगों की सहायता करने पर मजबूर कर देती हैं और जब हम उसमें सफल हो जाते हैं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। एक माँ के वात्सल्य को समझना हो तो इस कहानी को पढ़ना होगा - 'और दीप जल उठे'। इसी कड़ी में अगली कहानी है 'अम्मा' जो हमारे समाज द्वारा प्रताड़ित एक स्त्री की दिल को छू लेने वाली कहानी है। एक भाभी अपने देवर को कितना प्यार दे सकती है वो भी एक माँ के रूप में, इसको अपने खूबसूरत शब्दों में लेखिका ने सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है 'खुशबू का रेगिस्तान' में। अंतिम कहानी 'प्रतिशोध' एक स्त्री के द्वारा लिए गए साहसिक निर्णय की गाथा है जो अद्भुत है।

रंजना प्रकाश की कहानियां, कविताएं और उपन्यास मानव मन की भावनाओं, प्रेम, कष्टों, और संवेदनाओं का सागर होते हैं जिसमें रह रह कर कभी प्रेम की, कभी दुख की, कभी किसी पात्र की ईर्ष्या, कभी क्रोध तो कभी हार्दिक सहानुभूति की लहरें उठती रहती हैं। इनका लेखन प्रेम और प्रकृति की धुरी के चारों ओर नृत्य करता प्रतीत होता है। लेखन में भारतीय संस्कृति, भाषा में एक सुंदर प्रवाह और शालीनता हमेशा बनी रहती है जो समाज को एक दिशा और संदेश देते हैं। इनको पढ़कर आने वाली नयी पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है। देखने में आ रहा है कि आजकल नई हिन्दी के नाम पर नए लेखक हर तरह की असभ्य भाषा को पाठकों के सामने परोस रहे हैं। ऐसे में रंजना जी की लेखनी में मुझे हिन्दी के साहित्य को सहेजने सवाँरने के लिए एक आशा कि किरण दिखाई देती है। मेरी सभी से प्रार्थना है कि ये अद्भुत कहानी संग्रह ज़रूर पढ़ें।

किताब का मुखपृष्ठ उसके शीर्षक से मेल नहीं खाता है। प्रथम दृष्ट्या लगता है कि ये कोई धार्मिक या फिर दर्शन शास्त्र की किताब है। लगता है कि प्रकाशक ने इस किताब को बिना पढ़े ही इसका कवर डिजाइन करवा दिया है। ऐसे में प्रकाशकों को चाहिए कि लेखक की सलाह ज़रूर लें। दूसरे, किताब में टाइपिंग करते समय कुछ शब्दों की अशुद्धियाँ रह गयी हैं, आशा है अगले संस्करण में इनको दूर कर दिया जाएगा। कहानियों में कुछ पत्रों के नाम बार-बार दोहराते हैं, जो पाठक के मन में उलझन जैसा कुछ पैदा करते हैं। हांलांकी लेखिका ने पहले ही इस तरफ इशारा तो किया है कि कुछ नाम उनको बेहद पसंद हैं लेकिन पाठक को एक कहानी से दूसरी कहानी पर जाते समय उलझन न हो, इस बात का ख्याल भी करना चाहिए।

कुल मिलाकर कहानियाँ बहुत सुंदर और किताब बहुत बढ़िया है। मैं रंजना जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस समीक्षा को यहीं विराम देता हूँ।

राजीव पुंडीर
20/02/2020

Friday, November 22, 2019

The Eight Fbian Hearts : A Novel by Harsha Shastry

INTRODUCTION:

I received this book from my facebook friend Harsha Shastry who's written numerous short stories and screenplays for kids' shows like Chhota Bheem, Motu Patlu etc. That way I can say that he's an acclaimed writer. This novel "The Eight Fbian Hearts" is published by Tingle Books, Hapur, Meerut. On reading the book what I can say is that this is a book based on a unique concept - Imperfection - and if you want to know more about it you'll have to go through it and I assure you that it will not disappoint you.

THE STORY:

The story is woven around eight persons who use Facebook, a social media platform, to make new friends and to communicate with and a few search their love interest also knowing fully well that people from both sexes may be deceptive by hiding their true identities, original physical appearances, fake economic statuses and unrealistic positions in profession they claim to. This all revolves around the main theme of this novel that we the people are Imperfect and neither ready to accept those imperfections for ourselves nor of the others - like a few are obese where some are black in complexion, where some may have skin disease like leucoderma, the other may be bald, which lead them either to hide these things from others or create a fear of rejection in them, force them to lie ultimately leading them into depression. The writer has very beautifully put this problem, a social one, in a very interesting manner and tried to counsel them to face the realities of life, not to be deceptive ever in communicating with others; specially when they're seeking their life partner through social media platforms like Facebook etc.



REVIEW:

In this book the writer has taken a novel concept of imperfections occurring in human body and the fear of acceptance and rejection both create a kind of inferiority complex and feeling of insecurity in them. But when we come across the fact that almost each and every person has some kind of lacking, that feeling of negativity is overtaken by positivity and life looks beautiful. The language of the book is simple and the flow is smooth. Nowhere I found the plot as stretched and the story sumps up quickly on positive notes making the reader happy. The best point of the book is that it doesn't preach anything but says everything silently and indirectly.

MY TAKE:

In today's life when everything depends on social media, social status, social stigmas, and professional commitments and day to day stresses we go through, I strongly suggest the younger generation to go through this wonderful book. I would like to suggest the writer to edit the draft meticulously and remove certain typos and spelling mistakes before it goes for second edition. The cover of the book is fine.
My best wishes to Harsha Shastry for his next literary endeavour.

RATING: 

As Harsha has rightly dealt the subject of imperfection and justified it, the same I would like to say about this book as I cannot term it a perfect book which is natural and there's a scope of tremendous improvement. So being extremely careful and truthful my honest rating is 3/5.

Rajeev Pundir
22 Nov. 2019

Monday, March 25, 2019

साक्षात्कार श्रीमती रंजना प्रकाश



1॰ रंजना जी, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिए । 


मैं केवल हाउस मेकर, गर्व से कह सकती हूं एक सुगृहणी हूं। मैने परिवार के सभी उत्तरदायित्व पूर्ण समर्पण और निष्ठा से निभाए। पहले काम काज करते हुए लिखती थी, पढ़ती थी
अब बस लिखती और पढ़ती हूं यही छोटा सा परिचय है मेरा ।

2॰ आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?

शायद  होश संभालते ही। पहले चोरीछुपे  तुकबन्दी, फिर जाने कब लेखन में तब्दील हो गया । कैसे का क्या जवाब दूं...चूंकि एक सिंगर होने के नाते, बालपन से गीत, ग़ज़ल से अटूट नाता हो गया तो गाते गाते गीतों की रचना करने लगी ।

3॰ आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देती है ?

निश्चित ही कविताएं मुझे ज्यादा रुचिकर लगती हैं। वैसे तो किसी भी विधा का लेखन अभिव्यक्ति का माध्यम ही है, परन्तु  मेरे लेखकीय जीवन में कविता का सर्वप्रथम आगमन हुआ, इसलिए कविता मेरी प्रिय विधा है।

4॰ अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक, लेखिकाएं  अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं। क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिंबिंब  हैं? 

हूं ,,,,ये थोड़ा जटिल प्रश्न है ,,,,पर मैं ईमानदारी से जवाब दूंगी । ये सच है लेखक अपने बारे में लिखता है, मैं भी लिखती हूं ,,,पर ये अधूरा सच है । मैं केवल अपने बारे में नहीं लिखती । जहां तक गद्य का सवाल है उसमें मैं कम मेरे अपने ज्यादा हैं ,, हां  ,,कविताएं अधिकतर मेरी नितांत अपनी  गाथा कहती नज़र आएंगी ।यद्यपि उसमेँ भी समाज, आसपास की समस्याएं मिलेगी पर कहने में संकोच नहीं है कि मेरी कविताओं में मैं , वो और ईश्वर  विद्यमान है । आप मेरी कविताओं में स्पष्ट  छाप छायावाद की पाएंगे । मैं महादेवी वर्मा जी से  शुरू से ही प्रभावित रही हूं,,,,तो कुछ असर उनका तो है मेरे लेखन में ऐसा कई लोगों ने कहा है , हालाकि मैं उनकी चरण रज भी नहीं हूं ।

5॰ आजकल फेसबुक आदि मंचो पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहे हैं । क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आप को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए ?

हां ,,,,देख रही हूं, इन दिनों जैसे बाढ़ आ गई है लेखकों की । ठीक है सशक्त माध्यम है एक अच्छा प्लेटफार्म भी है फ़ेसबुक ,,,पर ये ही काफी नहीं है ,,ये प्रथम सोपान हो सकता है लेकिन ये मंजिल नहीं है। सफ़र इससे आगे और जटिल है । लेखन का आगाज़ ये हो सकता है अंजाम नहीं ,,, मेरा सभी से विनम्र निवेदन है कि इसे ही लक्ष्य न बनाएं :
ये रास्ता है हम है राही
मुकाम तो ये है नहीं
दूर तलक जाना है ,,,,





6॰ आप किस रूप में  अपनी किताब को देखना पसंद करेंगी सॉफ्ट कॉपी या हार्ड कॉपी  और क्यों ?

निश्चित ही पुस्तक  हार्ड कॉपी में ही भाती है मुझे । दुनिया कितनी भी आगे हो जाए, ये ई-बुक  नहीं पढ़ सकती मैं क्योंकि नई ताजा पुस्तक के प्रथम पृष्ठ को  स्पर्श करते ही जो सुखानुभूती होती है वो अकथनीय है । मुझे यूं लगता है जैसे किसी नवजात  शिशु की कोमल उंगलियों का प्रथम स्पर्श, नवल विकसित पुष्प का प्रथम दर्शन, जैसे किसी नन्ही नवेली उषा की उजली प्रथम किरण का स्पंदन ,,,क्या कहूं जवाब लंबा हो जाएगा ,, हां ये तय हो गया इस पर भी कविता लिखूंगी ,,अभी अभी विचार आने लगे है ,जल्द ही एक नई कविता की आहट सुन पा रही हूं ।सुंदर सवाल लाए हैं आप।
पिछले दिनों ही चार लाइन लिखी है  फ़ेसबुक में पोस्ट की थी ,,,
    काग़ज़ पे लिखना
    काग़ज़ को पढ़ना
    इससे बेहतर ,,,,
    कुछ  भी नहीं ,,
एक कतरा भी काग़ज़ का मै बरबाद नहीं कर सकती ,,,


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि ?

ये सवाल आपने मुझसे पिछले  साक्षात्कार में भी पूछा था । मेरा जवाब आज भी वही है ।फिर दोहराती हूं, दोनों ही नहीं । मुझे लेखन से जो तुष्टि और राहत मिलती है वो  सुख मेरे लिए सर्वोपरि है । प्रसिद्धि ,पैसा जब आना होगा तो आयेगा इनके पाने से पूर्व को संतोष रूपी धन प्राप्त हो जाता है, मैं मालामाल हो जाती हूं । दूसरी  सम्पदा है मेरे लिए मेरे पाठकों की प्रतिक्रिया ,,ये अनमोल धन है अक्षय ।

8. एक लेखक के लिए क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार , उसकी शैक्षणिक योग्यता  या फिर कुछ और ? 

निश्चित ही इन दोनों  की आवश्यकता तो होती है, पर इनके होते हुए भी हम कुछ नहीं कर सकते। यदि हम में लेखन के प्रति निष्ठा, लगन और पूर्ण समर्पण न हो । लिखने का जुनून बेहद ज़रूरी है । मैं स्टोर रूम, बॉक्स रूम, भीड़भाड़ में कहीं भी लिख लेती थी, टेबल कुर्सी मिले , न मिले ।आज भी सोते हुए भी कोई ख़्याल आता है तो आधी रात, तत्काल उठ कर लिखती हूं ,तभी नींद आती है । ये बिल्कुल सच है कि ये लगन ही हमें लेखक बनाती है । ऐसा  मेरा मानना है।

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है  ?

क्या कहूं ,,,,लिखती ही रहती हूं कभी लेख ,, कभी कहानी या फिर गीत या ग़ज़ल । दो उपन्यास पूरे हो चुके हैं,,,दोनों  - अनावरण - और सिंदूरखेला  प्रकाशित हो चुके है. कविता संग्रह यादें है। आज कल बड़ी कठिन प्रक्रिया हो गई है । तीसरे उपन्यास पर अभी काम चल रहा है ।अब तो यही काम है मेरा सो लिखती रहती हूं ।
स + हित = साहित्य कहलाता है । कामना यही है जो हितकर हो वही लिखती रहूं ,जब तक  सामर्थ्य है,,,बाकी तो हर इच्छा भगवान की ।
॰10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है  जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें ?

सामयिक सवाल है आपका ,,लेखकों ,,कवियों की भीड़ है इन दिनों । ये भी सच है कि बहुत लोग अच्छा भी लिख रहे है । परंतु  अधिकतर लोग शार्ट कट अपनाने का प्रयास करते हैं ,, लेखन ही क्या जीवन में ही शार्ट कट से बचना चाहिए ,,जल्दबाजी शतप्रतिशत  रिज़ल्ट नहीं दे सकती । श्रेष्ठता के लिए लंबी राह श्रेयस्कर है । खूब पढें , सुचिंतन , मनन  करें , सूक्षमाविलोकी बनें ,,ध्यान रहे नकल से परहेज़ करें ,,नैसर्गिकता में जो सौंदर्य है वो कहीं नहीं ।
अंत में मेरी ही दो  पंक्तियां  कहना चाहूंगी ।

तमाम लंबी उम्र का अफसाना
चन्द  लमहों  में बताऊं  कैसे ,,,,,

कोई भी साक्षात्कार  कभी  पूर्णता को नहीं प्राप्त हो सकता ।

धन्यवाद ,,,नमस्कार ,,,



***

Sunday, March 24, 2019

The Day Before I Died (Matroyshka) : By Ashi Kalim

Introduction :
Some stories, specially from our recent past aka modern history are so mysterious and intriguing that they compel us to find the truth and to go deep into them. This is a natural human nature. Perhaps, driven by the same, Ashi Kalim, the writer has tried to look into the life of a mysterious character of the daughter of Stalin named Svetlana through this novel. This book is published by Notion Press and available at Amazon.in

The Story:
Kunvar Brajesh Kumar Singh, a young man from India, fascinated by communism, goes to Russia to learn the tenets of communism under Stalin, the dictator of Russia. There he happens to meet his daughter Svetlana who Stalin calls his doll, also an active member of communist party. Attracted by his grand personality, Svetlana is attracted to him and eventually they fall for each other - perhaps in love, as both of them were not sure what they felt for each other in initial days.The story travels from Russia to India and finally concludes in USA in getting asylum for Svetlana. To know more about the fate of their love and all this maze like story, go through this interesting book.


Review:

Ashi Kalim, the author, took a challenge by choosing a story based on the love an Indian boy who is rather innocent in comparison of his love interest Svetlana; the daughter of a dictator known for his cruelty. In this endeavour the author did meticulous research, visited the related places, interviewed the people connected and gathered enough material and evidence. Keeping in view of the potential of the author, and the material she collected, this story could have been expanded more spreading it on at least 190 pages instead of only 90 pages. A novel is reduced to a novella. Perhaps, the author got so excited to publish a book on this subject that she penned it in haste as the story, in spite of running in a smooth flow, takes a tumultuous jumping route and ends up quickly missing many links, crossing gaps and overflowing at other places. The writer should work more on story and plot development of a novel of which she has an acumen but not applied.
The other compartment of improvement is its editing because if a reader finds a blunder in the very first line of any novel or a story, it puts a question mark on his/her ability to write. So without discounting the ability of writer, I sincerely advise the author, not only to re-edit it but to re-write the whole lot of manuscript filling all the gaps and joining all the missing links to make it a compelling read. Right now it is taken just as an extended story.

The writer Ash Kalim has a big potential of penning more books and I wish all the best for her future projects.

Ratings : 2.5/5

Rajeev Pundir
25/03/2019