Thursday, August 25, 2022

हाशिये पर जाती ज़िंदगी... : समीक्षा उपन्यास - लेखिका रंजना प्रकाश

 प्रस्तावना : प्रतिष्ठित लेखिका रंजना प्रकाश का नया उपन्यास "हाशिये पर जाती ज़िंदगी..." आपके सामने प्रस्तुत है जिसका प्रकाशन Evincepub Publishing बिलासपुर छत्तीसगढ़ ने किया है। ये उपन्यास अमेज़न पर उपलब्ध है । प्रथम दृष्टया उपन्यास रंजना जी की कलम से निकली चिर परिचित लेखन शैली से सराबोर है और हमेशा की तरह विभिन्न भावों के रंगों से ओत प्रोत है । 


समीक्षा : मुख्यतः ये उपन्यास सुगंधा नाम की एक अधेड़ स्त्री की कहानी है जिसके पति को गुज़रे कई साल बीत चुके हैं । दो बच्चे हैं एक लड़का एक लड़की और दोनों ही शादी के बाद अपने अपने काम में व्यस्त हैं । इसी कारण उसको अकेला रहना पड़ता है । धीरे धीरे ये अकेलापन उसको खलने लगता है और उसे लगता है कि उसकी ज़िंदगी अब हाशिये की ओर खिसकने लगी है । जब किसी को ज़िंदगी अर्थहीन और इस कदर सिमटी हुई लगे तो कोई भी व्यक्ति इसे अधिक दिनों तक सहन नहीं कर सकता और धीरे धीरे मानसिक रूप से कमज़ोर और अंत में अवसाद से ग्रस्त हो जाता है । सुगंधा भी किसी हद तक इस स्थिति का शिकार हो चली थी कि अचानक किसी बहाने से अपनी दोस्त और पड़ोसन रमोला, जो स्वयं लगभग उसी स्थिति से गुज़र रही है क्यूंकि शादी के बहुत दिनों बाद भी उसकी गोद सूनी है, उसके घर जाती है और परिस्थिति कुछ ऐसी बन जाती है कि दोनों स्त्रियाँ एक दूसरे का संबल बन जाती हैं, एक दूसरे को अवसाद से बाहर निकालती हैं, एक दूसरे का साहस बढ़ाती हैं और रमोला के गुरूजी जो बाद में सुगंधा के भी गुरु बन कर उसके भीतर छिपे गुण और कला को पहचान कर उसके अंदर एक उत्साह भर देते हैं और एक पिता की तरह उसकी उंगली पकड़ उसको ज़िंदगी के हाशिये से उठाकर मुखपृष्ठ की ओर ले जाते हैं - फलस्वरूप सुगंधा की ज़िंदगी सुगंध से भर जाती है और वो अपना वर्षों पुराना सपना पूरा कर लेती है । ये सब कुछ किस प्रकार से होता है ये जानने के लिए पढ़िए उपन्यास - हाशिये पे जाती ज़िंदगी ।



हमेशा की तरह रंजना प्रकाश का ये उपन्यास भी भावों का सागर नहीं महासागर है जिसकी गिरती उठती लहरें पाठक को सराबोर कर देती हैं । रंजना जी की उत्तम भाषा शैली जिसमें प्रकृति के सभी रंग, सभी छटाएं, कहीं पीली मखमली धूप, कहीं कुहू कुहू करती कोयल, हरे भरे पेड़, उगते  और छिपते सूरज की सुन्दरता, विशाल पहाड़ और उनकी चोटियों पर बर्फ़ का धवल मुकुट, गुनगुनाती हुई हवा और न जाने किन किन अलंकारों से ये उपन्यास सजा हुआ है कि पाठक मंत्रमुग्ध होकर एक के बाद एक पृष्ठ पलटने पर स्वयं को बाध्य कर देता है । 



पुस्तक का मुखपृष्ठ और बढ़िया और कलात्मक हो सकता था जिसको गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । बाक़ी पुस्तक की टाइपिंग प्रिंटिंग सब बहुत बढ़िया है और कोई शाब्दिक या व्याकरण की त्रुटी भी नहीं है ।

इस पुस्तक के लिए मैं रंजना प्रकाश को हृदय से बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि हमें भविष्य में भी उनकी कलम से इसी प्रकार के उत्तम हिंदी साहित्य पढ़ने को मिलते रहेंगे ।


राजीव पुंडीर 

25 / 08 / 2022

Wednesday, May 25, 2022

वहीदा : कहानी संग्रह - लेखक गौरव शर्मा

 गौरव शर्मा, गणित के आचार्य और एक जाने माने लेखक हैं । मैं इनके द्वारा लिखित सभी  उपन्यास ;  Love at Airforce, Rape Scars, Dawn at Dusk and It all Happened in a School, पढ़ चुका हूँ जिनमें Love at Airforce ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया । मैं फेसबुक के माध्यम से उनसे जुड़ा हुआ हूँ और सतत रूप से उनके द्वारा लिखी छोटी बड़ी कवितायें, मुक्तक और शायरी पढ़ता रहता हूँ लेकिन एक कविता संग्रह के रूप में 'वहीदा' शीर्षक से पहली किताब आई है जिसे Petals Publishers लुधियाना ने प्रकाशित किया है और Amazon.in पर उपलब्ध है ।


किताब के शीर्षक और मुख पृष्ठ पर छपे फिल्म अदाकारा वहीदा रहमान के चित्र से आपको अनुमान हो जाता है कि सभी कवितायें वहीदा के ऊपर ही लिखी गईं हैं और उन्हीं को समर्पित हैं । हिंदी साहित्य में सामान्य रूप से किसी एक व्यक्ति के ऊपर इतनी कवितायें किसी ने लिखी हों मुझे इसका ज्ञान नहीं है इसलिए ये किताब, एक असाधारण काव्य रचना का उदाहरण है और एक नया प्रयोग भी ।



हम सब इस बात से भलीभांति अवगत हैं कि वहीदा रहमान हिंदी सिनेमा की एक उत्कृष्ट अदाकारा रही हैं लेकिन कोई व्यक्ति उनकी अदाकारी, उनके व्यक्तित्व, उनकी ख़ूबसूरती, उनकी सादगी, से इतना प्रभावित हो जाएगा कि उनके ऊपर ढेर सारी कवितायें लिख देगा ये अपने आप में एक अनोखा कार्य है जो बिना उस विषय का गहन अध्ययन किये, बिना गहराई में उतरे नहीं हो सकता । मुझे ये कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि गौरव शर्मा ने पूर्ण तन्मयता से इस कार्य को निष्पादित किया है । इसके लिए मैं उन्हें बहुत बहुत बधाई देता हूँ ।

 इन कविताओं का जन्म वहीदा रहमान के द्वारा निभाए गए भिन्न भिन्न चरित्रों की मिट्टी से होता है जो फिल्म काला बाज़ार से शुरू होकर चौदवीं का चाँद  तक आते आते एक अमलतास के वृक्ष की भाँति पीले खूबसूरत फूलों से सराबोर बड़ा हो जाता है जिसे देखकर या कहें कि पढ़कर आप आनंदित हुए बिना नहीं रह सकते । लेखक की कल्पना बहुत सुंदर है जैसे :

 मधुशाला की दीवार की इंटों के बीच से, तुलसी का एक पौधा उग आया हो जैसे, 

या फिर, सूने आसमान पर चिट्टे बादलों के फूल बिखर गए हों जैसे, 

या मैं तुम्हें मीता पुकारूंगी, कौन होता जो उस आवाज़ से ये सुनकर बह न जाता, लोहा भी होता तो पिघल कर चरणामृत हो जाता,

देखा ना होगा कभी किसी ने, रूह की आँख से बहता पानी,

आंसू से गुंथी मिट्टी का बोझ लिए, चाक अनमना चल रहा हो, सांझ की नीली ओस पीकर मन में दिया बस जल रहा हो 

ओ बूँद, क्या सोचती थी तुम, जब बादलों से चली थी ? मन में सपनों की गुदगुदी थी, या चिंताओं की खलबली थी ?

और पूरी किताब ऐसे अहसासों से सराबोर है जिनमें वहीदा के चरित्रों के दुःख हैं, प्रसन्नता है, मजबूरी है, अल्हड़ता है, प्रेम है और वो सब कुछ है जो उन पात्रों ने वहीदा के माध्यम से जिया है । अगर देखा जाये तो वहीदा जी को अपने सम्पूर्ण फ़िल्मी जीवन में न जाने कितने पुरस्कार मिले होंगे लेकिन उनके बारे में इतनी सुंदर दिल को छूने वाली कवितायें शायद किसी न लिखी हों और किसी कलाकार के लिए इससे बड़ा पुरस्कार शायद नहीं हो सकता । 

लेकिन, वहीदा रहमान के व्यक्तित्व और अदाकारी ने लेखक गौरव शर्मा, जो मेरे मित्र भी हैं, को इस हद तक प्रभावित किया कि उनके द्वारा निभाए गए चरित्रों को जिन लेखकों ने लिखा उनका भी आभार करना चाहिए था, जो छूट गया और मैं समझता हूँ कि ये एक स्वाभाविक भूल है । मेरा विनम्र निवेदन है कि अगले संस्करण में उन लेखकों का नाम भी जोड़ा जाए और उनके प्रति आभार भी क्योंकि एक लेखक ही दूसरे लेखक के योगदान को समझ सकता है, उसे उसका यथोचित सम्मान दे सकता है।


अंत में बस कहना चाहूँगा कि किताब बहुत बढ़िया कविताओं से भरी हुई है । ये किताब और कवितायें उन युवा लेखकों के लिए एक मार्गदर्शक की तरह है जो लिखना चाहते हैं लेकिन लेखन में कितना श्रम करना चाहिये उससे अभी अनभिग्य हैं । मैं गौरव शर्मा के लिए ह्रदय से शुभकामनाएं देता हूँ और आशा करता हूँ कि वो ऐसे ही लिखते रहें और हम उनकी किताबों से अपने मनोरंजन के साथ साथ कुछ न कुछ सीखते भी रहें ।


राजीव पुंडीर 

25 May 2022

  

Monday, March 7, 2022

समीक्षा : ट्रम्प कार्ड : कहानी संग्रह - लेखिका राजवंत राज

 एक परिचय :

राजवंत राज जी से मेरा बहुत पुराना, लगभग चार - पांच साल पुराना नाता है। वैसे हम फेसबुक वाले मित्र हैं और शायद हम दोनों ही एक दूसरे के बारे में बस इतना ही जानते हैं कि राजवंत जी एक बढ़िया चित्रकार हैं और मैं एक लेखक। हाल ही में उनके कहानी संग्रह "ट्रम्प कार्ड" के बारे में फेसबुक के माध्यम से पता चला तो मन में एक उत्सुकता, एक जिज्ञासा हुई कि जो व्यक्ति इतनी सुंदर चित्रकारी करता है, वो लिखता भी बहुत सुंदर होगा। और जैसे ही मैंने इस किताब को पढ़ने की इच्छा व्यक्त की, तुरंत उनकी तरफ़ से आश्वासन मिल गया कि वो स्वयं मुझे इस किताब को भेज देंगी। और तीन चार दिन में ये पुस्तक "ट्रम्प कार्ड" मेरे आगोश में आ गई। इस किताब का प्रकाशन  सृजन लोक प्रकाशन, नई दिल्ली ने किया है। किताब में कुल ग्यारह कहानियां हैं जो 95 पृष्ठों में समाई हुई हैं। 

समीक्षा :

पुस्तक का मुख पृष्ठ लेखिका के द्वारा बनाये गए चित्र से ही आपको आकर्षित करने लगता है। चित्र एक स्त्री का है जिससे ये अनुमान तो हो ही जाता है कि इस पुस्तक की कहानियाँ स्त्री चरित्र - प्रधान हैं। कहानी संग्रह की सभी कहानियों की नायिकाएं, चाहे वो एक विधवा है, चाहे एक विवाहिता है, या फिर एक परितक्यता  है, एक प्रेमिका है, पति के शुक्राणु विहीन होने के कारण  संतान-विहीन है, या फिर हॉस्टल की एक वार्डन, चाहे एक लेखिका, या फिर एक अल्हड़ छोटी बहन, चाहे एक सिख युवक से प्रेम करने वाली एक मुस्लिम लड़की, सभी मानसिक रूप से शक्तिशाली हैं जो समाज में व्यापित स्त्रियों के प्रति अन्याय, दुराचार और भेदभाव का शिकार होने से इंकार कर विद्रोह करती दिखाई देती हैं। वो स्त्रियाँ भले ही अनपढ़ और गरीब हों, या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त आज की नारी हो, सभी समाज की परवाह न करते हुए अपने अधिकार, स्वयं के व्यक्तित्व को एक स्वतंत्र और अपने खोये हुए आत्म सम्मान को समाज में पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्ष करती हैं और उस कठिन संघर्ष में सफल भी होती हैं। ये कहानी संग्रह सभी आयु की महिलाओं, विशेषरूप से लड़कियों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य करने में, उन्हें यथोचित मानसिक बल और सही दिशा प्रदान करने में पूर्णतया समर्थ है - इसलिए इसका पढ़ना उनके लिए अति आवश्यक है।


अगर इस कहानी संग्रह को हम साहित्य की दृष्टि से देखें तो मुझे लगता है कि साहित्य के सभी मानदंडों पर ये सोने की तरह खरा, सूर्य की तरह प्रकाशवान, चंद्रमा की शीतल चांदनी से ओतप्रोत, वायु के नरम गरम झोंकों की तरह सुहानी थपकियाँ देता, और कभी अग्नि के ताप जैसा तो कभी वर्षा की ठंडी बौछारों जैसा अनुभव कराने में अपने में विशेषज्ञता समेटे हुए है। कहानियों की भाषा शैली स्वच्छ जल की तरह कलकल बहते झरने की सी है जो पाठक को एक सुखद अनुभव का अहसास कराती हुई उसे और आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करती है और निरंतर उत्सुकता बनाए रखने में सफल हैं। उदाहरण के लिए : 

"उस तूफानी रात में अमरीक सिंह के डर और बेइंतहा दर्द को बर्दास्त करने की गरज से उसी दो हरे नोटों से दारु की बोतल आई और ब्याहता बेटी की इज्ज़त और मौत दोनों को घूँट - घूँट गले से नीचे उतार...बेटी के अस्तित्व को ही बीते माह के कलेंडर के पन्ने की तरह फाड़ कर फेंक दिया।" ( सिगेरां वाली,  पेज नं 26)

"सच ! मर्द औरत के लिए ज़मीन और आसमाँ सब बन सकता है बशर्ते उसने औरत का दिल पढ़ लिया हो...लेकिन जहाँ ग़लतफहमी और बेएतबारी का कीड़ा लग जाता है वहां आसमान धुंधला और धरती बंजर हो जाती है।" (जूड़े वाला क्लिप,  पेज नं 35)

"क्लिष्ट शब्दों में छिपे गूढ़ अर्थों से परे वो एक ऐसी कविता लगती जिसमें कहीं कोई उतार - चढ़ाव नज़र नहीं आता । बस एक सीधी खिंची लकीर सी।" (नताशा पेज नं 38)

"मतलब बिलकुल साफ़ है आशु ! अगर तुमने मुझे कहीं ये कह दिया होता कि मैं तुम्हारे पूरे नौ महीने का माँ बनने का सफ़र देखना चाहता हूँ...तुम्हारे गर्भ में कान लगाकर उसके दिल की धड़कन सुनना चाहता हूँ...वो सारी फीलिंग महसूस करना चाहता हूँ जो एक पिता महसूसता है तो विश्वास मानो...हो सकता था कि मैं अपनी सोच से परे होकर तुम्हारी बात मान लेती..." (ट्रम्प कार्ड पेज नं 49.)

लेखिका ने पात्रों के उद्गारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए यथायोग्य अलंकारों का प्रयोग अपने लेखन में किया है जिसने इस कहानी संग्रह को और भी सुंदर तथा रोचक बना दिया है। वैसे राजवंत जी के लेखन में कोई कमी नहीं है लेकिन कहानी संग्रह की समीक्षा पुस्तक के आरम्भ में नहीं अंत में होती तो अच्छा होता क्योंकि समीक्षा पढ़ने के बाद कहानियाँ पढ़ने की उत्सुकता कम हो सकती है। 

राजवंत जी को इसके लिए साधुवाद और भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं देता हूँ। आशा है कि वो ऐसे ही सुंदर कहानियों का सृजन करती रहें और हम ऐसे ही उनकी लिखी कहानियों का आनन्द उठाते रहें।

राजीव पुंडीर 

7 मार्च 2022


Wednesday, August 11, 2021

पुस्तक समीक्षा : विविधा : लेखिका श्रीमती रंजना प्रकाश

 रंजना प्रकाश एक प्रसिद्ध लेखिका हैं और इनकी कई किताबें मैं पढ़ चुका हूँ जिनमें अनावरण, सिन्दूर खेला, प्रारब्ध और प्रेम उपन्यास और एक प्याला कॉफ़ी कविता संग्रह प्रमुख हैं । इनकी सभी किताबें अपने आप में सुंदर लेखन शैली, धाराप्रवाह भाषा, कथानक की विविधता और गहराई से सराबोर होती हैं । इसी कड़ी में हाल ही में एक नई पुस्तक आई है जिसका शीर्षक ही "विविधा - एक सोपान" है जिसे एवींसपब पब्लिशिंग ने प्रकाशित किया है।

आइये इस पुस्तक के बारे में चर्चा करते है :

जब मैंने इस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो मुझे लेशमात्र भी अंदाज़ा नहीं था कि आखिर लेखिका ने इस पुस्तक का नाम विविधा क्यूँ रखा लेकिन धीरे -धीरे जब आगे चला तो एक आश्चर्य का सामना हुआ। शुरू में इस किताब में छोटी-छोटी कहानियां हैं जो लघु तो हैं मगर उनकी शैली ऐसी है कि पाठक के मन पर एक गहरी छाप छोड़ने में सफल हो गई हैं क्योंकि सभी कहानियां जीवन के हर पहलू से बड़ी ही सहजता से उठा कर बहुत ही नफासत के साथ पाठक के सामने परोस दी गई हैं - एक उत्तम स्वादिष्ट भोजन की भाँती जिसमें मीठा, खट्टा और चरपरा एक संतुलित और उचित मात्रा में वो सब कुछ है जो एक अतिथि को विशिष्ट समझ कर बनाया जाता है। वैसे सभी कहानियां सुंदर और असरदार हैं लेकिन इमोशनल फूल, फ़ोकट का डॉक्टर और नियम भंग ने मुझे काफी प्रभावित किया।


आधी किताब चुक जाने के बाद जो विषय लेखिका ने उठाए हैं उन पर लिखना एक दुरूह कार्य है जो एक परिपक्व और गहन समझ रखने वाला लेखक ही कर सकता है। नारी का मानसिक बल और चरित्र हो या फिर कोरोना से होने वाले मानसिक तनाव के कारण बनते - बिगड़ते आपसी सम्बन्ध और कुछ लोगों के द्वारा की गई आत्म हत्या से लेकर पर्यावरण का महत्त्व हो या फिर आयुर्वेद की समाज में उपयोगिता, राम से लेकर कृष्ण और शिव को समझना हो या फिर सुख दुःख की परिभाषा, प्रेम, भक्ति, क्रोध, करुणा, सफलता असफलता जैसे भाव और सबसे बढ़कर ॐ शब्द की व्याख्या और उसका हमारे जीवन में महत्त्व - सब कुछ इतना विविधता से लबालब है कि आपको आश्चर्य होने लगता है कि आखिर लेखिका के ज्ञान की क्या कोई सीमा नहीं और अचानक ही आप उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं । ये सब कोई कुछ दिनों का अनुभव नहीं वरन जीवन भर की तपस्या के बाद ही लिखा जा सकता है और इसके लिए मैं लेखिका रंजना प्रकाश हृदय से नमन करता हूँ और बधाई देता हूँ क्योंकि हिंदी साहित्य में शायद ही किसी ने इस तरह का अद्भुत प्रयोग किया हो जो सभी लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।


इस किताब में कुछ शाब्दिक त्रुटियाँ हैं जो शायद टाइप करते हुए आ गई हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। दूसरे किताब का मुखपृष्ठ एकदम भावशून्य है जिसको बदलने की ज़रुरत है। किसी भी किताब का कवर बोलने वाला होना चाहिए जो पाठक को उत्सुकता से भर दे और अंदर की छवि को बाहर प्रकाशित कर दे।

मैं आने वाले समय में रंजना जी की कलम से इसी प्रकार के विविधता से परिपूर्ण साहित्य की रचना की अपेक्षा करता हूँ।

राजीव पुंडीर 

11/08/2021

Wednesday, January 13, 2021

तोष : कविता संग्रह : लेखिका गरिमा मिश्रा

 लेखिका गरिमा मिश्रा से परिचय तब हुआ था जब वो मेरे द्वारा संपादित कहानी संग्रह "ज़िंदगी : कभी धूप कभी छांव" की एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जुड़ी। उसमें उनकी एक कहानी और कुछ कवितायें थीं जिनको पढ़कर हर कोई प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। लेकिन उनका ये कविता संग्रह जो अभी "तोष" के नाम से आया है पढ़ने वालों को उनकी कविताओं से नहीं उनके बहुआयामी व्यक्तित्व और कविता लेखन में उनकी पकड़ से रु-ब-रु कराने में सौ प्रतिशत कामयाब हो गया है। 

तोष की कवितायें गंभीर और सार गर्भित हैं। यदि आप उनसे तत्परता से गुजरना चाहेंगे तो आप न उन्हें पूर्ण रुपेण ग्रहण कर पाएंगे  और न ही पढ़ने का आनंद ले पाएंगे। इसलिए धीरता के साथ तन्मय होकर पढ़ें। तोष की कवितायें गंभीर होते भी एक शांत धीमी धीमी शीतल हवा के झोंके की तरह आपके मन को छूती हैं, कभी गुदगुदाती हैं, कभी आपको भाव विभोर कर आपकी आँखें नम कर देती हैं, कभी लगता है की आप तपते सूरज के नीचे खड़े झुलस रहे हैं और कभी आपको एहसास होता है कि आपके ऊपर ठंडी चाँदनी बादलों के बीच से छन छन कर बरस रही है : 

1 मनाई है कितनी ही ईद राहे महताब, ये और बात है कि मेरे ही सहन नहीं उतरा कभी वो...

2 एक रिश्ता है साँसों में बसी खुशबू सा, रगों में ढली बोली सा, कुछ खट्टा कुछ मीठा सा, एक रिश्ता है गरम नरम हथेली सा, कच्ची पक्की हवेली सा, एक रिश्ता है संग यादें हैं, वो है दूर किसी पहेली सा....

एक अद्भुत शेर है:

एक रूहानी सी मासूमियत उतार आती है, हर कत्ल के पहले क़ातिल पे,

कत्ल ए तहज़ीब निभाई इस तरह...

दूसरा है :

अक्सर जिस्मों के दायरे से, निकलकर सुख़न तेरे पैरहन मिली, तू भी क्या चीज़ है ज़िंदगी, जब मिली उलझन में मिली।

लेखिका का खुद का दर्द अनेकों शेरों में झलकता है। लगता है किसी ने उन्हें बेपनाह दर्द भी दिया है क्योंकि इतनी भावुक और दर्द भरी शायरी शायद वो ही लिख सकता है जो उस दर्द के समंदर से खुद डूब कर गुज़रा हो. हालांकि ये नयी बात भी नहीं है क्योंकि सभी लेखकों के साथ कमोबेश ये होता है कि लिखते समय उनके दर्द उनके अल्फ़ाज़ों में ढल जाते हैं। 

  एक बानगी : 

मेरा वजूद, मेरा वक़्त सब उसका, मैं अपने ही हिस्से की न रही। वो गैरों से यूं मिलवाता है मुझको, जैसे कोई बीता हुआ लम्हा कोई। मैं उसकी यादों में बीतती, अपने ही लिखे किस्से की न रही...


दोस्तों बहुत ही उम्दा कवितायें हैं, प्रेम, विरह, यादें और न जाने कितने भावों से परिपूर्ण ये कविताएं निश्चित रूप से संग्रह के योग्य हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हिन्दी-उर्दू साहित्य को समृद्ध करने की शक्ति रखतीं हैं। 

अपने नाम के अनुसार ये किताब "तोष" पाठकों को संतुष्टि से लबालब  भर देगी। साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए अद्भुत काव्य संग्रह है। अमेज़न पर उपलब्ध है जिसे एविन्स पब्लिशर ने छापा है। 

मैं, एक लेखिका, विशेष रूप से एक कवियित्री के रूप में गरिमा मिश्रा के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए अपनी शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ। 


राजीव पुंडीर

13 जनवरी 2021

Saturday, December 5, 2020

Review : It All Happened In A School : Novel by Gaurav Sharma

 Gaurav Sharma is an accomplished writer and I still admire and remember many anecdotes from his first book Love @ Airforce. Later Rape Scars & Dawn at Dusk came and hailed by readers. His latest is "It All Happened In A School" published by Petal Publishers. 

The Story:

The pivot of the story is a School named God & Guru Convent School run by a joint management committee of two religious organisations pertaining to Sikh and Christian communities. Half of the book keeps you entertaining by the usual conversation among the staff members the undercurrent of which is mostly sex oriented happening in any given office. Perhaps the writer wants to keep the reader in a lighter vein creating a jovial atmosphere before he takes you to the next half where something grave happens. However in between he introduces the style of functioning of a private school like their highhandedness, monopoly and an exploitation of the staff, mainly teachers by the management through fringe events.To know what grave happens in the later half - read the book. 



Review:

The book has been written in non-sequential manner as the subplots come to light one by one nowhere related one another. The interview for selecting a teacher, a classroom prank, a murder and in the last a rape all happen independently keeping the reader guessing all the time. The main protagonist of the story is an honest teacher Saubhagya but most of the chapters have been titled after another fellow teacher Harjeet Singh which I found a bit surprising. The cover page of the book is so-so and could have been designed in more expressive manner synchronising with the story. However the writer has successfully portrayed all the incidents which happened or may happen in any given school so that the parents become attentive and aware about the safety of their wards.

The real take away from this book are few compelling quotes - strong enough to stir the readers' conscience:

"I want to breathe life. I've had enough of the desert. I want my share of oasis now."

"Women are always sure about two things : When do they look more beautiful and what does the man staring at her wants."

"Mathematics is a flattery loving muse. She expects that you spend lots of time with her, she will make you a king. If you ignore her, she will make you miserable."

"Truth is a blade. You shouldn't keep it between your lips."

"We teachers change the world everyday. Teachers are the heart and students are the blood of a school."

An error is to be corrected when the head of the police team asks to show him the spot where the raped girl was found but with a wrong name. 

My Take:

This book is an eyeopener for the parents and perhaps has been written to make them aware about the safety of their children as similar incidents have been and are being reported more often than not. I wish all the best to Gaurav Sharma for the success of the book. 


Rajeev Pundir

06/12/2020 

Monday, November 23, 2020

एक प्याला कॉफी : कविता संग्रह : लेखिका : रंजना प्रकाश

इश्क़ में अल्फ़ाज़ों की 

ज़रूरत क्या है,

बात बनती ही तब है 

जब कही ना जाये ........

ये पंक्तियाँ रंजना जी के नए कविता संग्रह से उद्दृत कर रहा हूँ...जो नितांत सत्य है और  स्त्री और पुरुष के आदि काल से चले आ रहे संबंध के बीच ये मौन गंगा की तरह पावन ही सतत बह रहा है। कहते भी हैं कि सत्य का स्वरूप सिर्फ मौन में ही समझा जा सकता है - क्योंकि जैसे ही हम सत्य को शब्दों का परिवेश देने लगते हैं वैसे ही असत्य अपने पैर पसारने लगता है। 

इश्क़ में यादों की

 मंज़िल तो बता दो यारों,

खबर तो हो के सफर 

और कितना बाकी है...

मित्रों आपको भी पता है कि इश्क़ एक मदहोशी का नाम है। जो इसमें पड़ जाता है उसे दीन दुनिया का कोई ध्यान नहीं रहता। परंतु लोग कह नहीं पाते कि आखिर ये मदहोशी इश्क़ के कारण ही है या कोई और नशा है...लेकिन एक सिद्दहस्त लेखिका ने कितनी आसानी से कितनी गहरी बात को उजागर कर दिया है... 




प्यार में रूबरू न हुए,

तो कोई बात नहीं, 

सिर्फ अहसास ही काफी है,

सांस लेने के लिए...

मुझे इन पंक्तियों में एक प्रेमी दिखा, एक प्रेमिका दिखी और एक तरफा प्रेम दिखा जिसको एक दार्शनिक की पोशाक पहनाकर रंजना जी ने आपके कानों में  सहजता से गुनगुना दिया...बहुत ही उम्दा और खूबसूरती के साथ। 


शाख से गिरते सूखे,

पत्तों से बचकर चलना, 

पाँव न रखना लोगों,

यहीं कहीं इस टूटे दिल के 

कतरे गिरे थे कभी...

इन पंक्तियों में अद्भुत दर्द का एहसास है। वो दर्द जो अपने किसी विशेष का दिया होता है। जब कोई इस प्रकार से दिल तोड़ता है कि चूर चूर होकर बिखर जाता है...

पूरी किताब जिसका शीर्षक भी बहुत अनोखा है "एक प्याला कॉफी" इसी तरह की अनुभूतियों, उद्गारों, अहसासों, और भावनाओं से सराबोर है जो आपको भी अपनी धीमी धीमी फुहारों से पाठक को भिगोने लगती है। पाठक कभी दर्द से भर जाता है और गमगीन हो जाता है, कभी पढ़ते पढ़ते उसके होठों पर एक मखमली मुस्कान तैर जाती है, कभी उसका अस्तित्व गंभीरता से भर उठता है तो कभी आँख बंद कर वो अपने प्रेमी के साथ बिताए खुशनुमा क्षणों को याद करके उनमें डूब जाता है...क्योंकि ये पुस्तक पुरुष और प्रकृति के प्रेम, बिछोह, वेदना, तड़प, टीस, और बहुत से रंगों से परिपूर्ण है।



रंजना जी एक अद्भुत रचनाकार और कलमकार हैं...जिनके भीतर का संगीत उनकी लेखनी से प्रवाहित होता रहता है कभी लघु कथाओं में, कभी उपन्यास के रूप में और अधिकतर उनकी कविताओं में। उनकी लेखन शैली बहुत ही सुंदर, सभी अलंकारों से युक्त, प्रकृति से तालमेल बढ़ते हुए आगे बढ़ती है जो पाठक के लिए आसानी से समझी जाने वाली और रोमांचक है...वो अपनी कृतियों में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए धारदार वाक्यों को गढ़ने में माहिर हैं। "एक प्याला कॉफी" उनकी नयी कविताओं की पुस्तक है जिसका मुखपृष्ठ बहुत सुंदर और आकर्षक है। पुस्तक में जो भी शब्दों की त्रुटियाँ हैं मेरी प्रार्थना है उनको अगले संस्करण में दूर किया जाना चाहिए...जिससे पाठन का आनंद दुगना हो जाएगा।

मैं रंजना प्रकाश जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी हिन्दी साहित्य को इसी प्रकार सींचती हुए आगे बढ़ती रहे। 


राजीव पुंडीर

24 Nov 2020