Friday, November 23, 2018

Review : Four Stories Of Love Hope and Desire By Mahesh Sowani

Introduction:

This is a collection of four stories written by Mahesh Sowani. The format of the book is Kindle and it's available on Amazon.in for Rs. 49/- only. Stories have been selected from incidents happening around us in daily life and narrated in an interesting manner.

The Stories:

The very first story, Incomplete Lives, revolves around the life of a boy Kunal who's depressed because of his impending divorce with his wife. Despite it he's a bit upset with the hussle bussle of his official work also. His friend, Bhavna, who had been one year senior to him in college, now working abroad comes to meet him. What transpires between them and how she takes him out of that situation is the gist of the story and one must read such stories to know the importance of trivial things in our lives. Bhavna says to him, "We are not Gods, neither are all things in our control." Again she says,"Life is like a river....ever changing..." Beautiful!

The second story, Two Women, takes you to the lives of a labour class man Vishnu, his wife Meena and his paramour Lakshmi. The writer has very smoothly sailed through the intricacies of this triangular relationship. The story takes a sudden turn when Vishnu dies due to heavy drinking leaving the deed of a plot he bought for Lakshmi. Meena too stakes her claim over the plot. How the tussle between them is solved, just read the story. the climax is surprising - not easy to believe.

The third story, The Only Alternative, too is taken directly from lower class family. I found this story very different, very intense and baring the ugly games people play ignoring and even disrespecting the dignity of mutual relations that they can go to any extent to fulfill their sex drive. This shows the other side of the coin called society. A must read.

The last story entitled as Some Stories takes you to the lives of  retired persons who pass their time by forming a senior citizens club comprising men and women both. They communicate and share jokes with each other. Apart from it they want to make their club a different one. One of them Lily suggests about telling stories which everyone has deep in their hearts buried since years. And the drama begins...and a few interesting and intriguing stories tumble out from their personal diaries. A unique story indeed!


My Take :

In my view, Mahesh Sowani  has successfully carved out beautiful stories out of day-to-day life. The stories are inspiring, and the characters are having  love, hope, sympathy, mutual respect and concerned for each other. The language is simple, smooth like a fluid and easily graspable for one and all. The subject matter of the stories is also relatable for all age groups, genders and classes.
There're areas of improvement which demand attention. The first one is the manuscript needs re-editing as there're a few typos and grammatical errors. It can be done easily as this is Kindle edition and can be replaced instantly. The other is its title. Of course these four stories depict love, hope and desire, the book needs a compelling title.

I see a big potential in the writer and expect more books from his desk and congratulate him for penning these wonderful stories.

All the best!!

Rajeev Pundir
23/11/2018

Tuesday, October 16, 2018

साक्षात्कार : गरिमा मिश्र 'तोष'

एक नवोदित लेखिका और गायिका से आज शाम की गयी एक विशिष्ट मुलाक़ात :

गरिमा जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दें।
मेरा नाम गरिमा मिश्र है और मैं 'तोष' उपनाम से पहचाना जाना पसंद करती हूँ।
मैंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम फिल किया है और क्यूंकी मेरी रुचि संगीत में भी बहुत है इसलिए गायन में संगीत विशारद भी किया । आजकल एक एन जी ओ जुड़कर सामाजिक कार्य भी कर रही हूँ।


आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया?
जी, चूंकि बचपन से घर का वातावरण लेखन पाठन का देखा, मां और नानाजी सिद्धहस्त लेखक और रचनाकार  पास रहे ...उनकी प्रेरणा से लिखना शुरू किया मेरी पहली कविता 'ऐ धरा' स्कूल के वार्षिक अंक में छपी और सराही गई,फिर तेरह वर्ष की वयस से जो लेखन साधना आरंभ की वह सतत अबाध गति से जारी है आज भी।

आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी या कविता आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
मेरे लिये कविता बारिश की बूंदों सी है अचानक घुमड़ कर बरस जाती है। कहानी भवसागर का अथाह नीर संग्रह ...अतः जब कुछ आत्मिक कहना होता है तो शब्दों को कविता मिल जाती है और जब कुछ सघन कहना होता है तो कहानी आकार ले लेती है...मुझे दोनों ही माध्यम प्रिय है ।

आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं?
मेरा मानना है कि हम रचनाकार भावुक और संवेदनशील होते हैं।  स्वयं के और आस पास के वातावरण से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते...तो आप कह सकते हैं कि मेरी रचनाएं दैनिंदिन घटनाओं का प्रतिबिंब ही होती हैं ।

अधिकतर देखने में आया है सभी लेखक लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने खुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं ,क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिबिंब  हैं?
हम्म्जी... बहुत बढिया प्रश्न है..जैसा कि मैने पूर्व में कहा है किसी भी रचनाकार का जब तक यथार्थ से भावानुबंध नहीं होता तब तक ...सार्थक रचना को व्यक्त करना उसके वश की बात नहीं होती। फिर वो चाहे स्वयं की भोगी कोई भी अवस्था हो या किसी अपने कि या किसी अपरिचित की सुखद दुखद स्मृति..अतः मेरी रचनाएं भी उन्हीं अनुभवों को आधार बना कर पाठकों से मिलती हैं और विभिन्न सामाजिक मानसिक अवगु्ंठनों को सहजता से खोल देती हैं।



आजकल फेस बुक आदि मंचों पर अधिक लेखक और लेखिकाएं देखनेको मिल रहीं हैं क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं, अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिये?
जी किसी हद तक यह मंच सरल माध्यम होता है कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचने का..परंतु सुरक्षित तो कतई नहीं  है..यहां बहुधा अपनी रचनाओं का चोरी होने का अंदेशा होता है...और वैसे भी पुस्तक का अपना अलग स्थान है जिसको एसे मंच विस्थापित नहीं  कर सकते हैं।

आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे- सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों ?

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं और शायद हंसते भी हैं कि इस तकनीकी युग में तुम पुराने पड़ते पन्ने और धूसर पड़ती स्याही को क्यों सहेजा करती हो और मेरा जवाब वही होता है मैं शब्दों को भावनाओं की अंजुली से समेटती हूं और किताबों के पन्नों में बिखेर देती हूं ताकि जो पढे वह खुद को उन पन्नों  की नई सी खुशबू से लिपटा पाए और कहीं अपनी यादों को पढे हुए खुद के मोड़े हुए पन्नों में पा जाए..या कहीं किसी सफ्हे पर दबे सूखे फूल सा मुस्कुराए..माने मैं अपनी कृति को हार्ड काॅपी में देखना ज्यादा पसंद करूंगी ।

आपके जीवन में पैसा अधिक मह्त्वपू्र्ण है या प्रसिद्धि?

पेचीदा प्रश्न है..मेरे लिये दोनों ही महत्पूर्ण नहीं  है लेखन स्वांतः सुखाय बहुजन हिताय ही है...पर हां तत्कालीन परिस्थितियों में अर्थ के साथ साथ प्रसिद्धी की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता ।

एक लेखक के लिये क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार उसकी शैक्षणिक योग्यता या फिर कुछ और?
मेरे अनुभव और भावविचार से रचनाशीलता किसी भी व्यक्ति की संवेदनशीलता, प्रबोधिता, संश्लेतात्मकता, विचारशीलता, सहजता सरलता ही तय करती है..एक सच्चे रचनाकार को शिक्षा का परिमार्जन न भी मिले तो भी उसका मात्र सहज और सरल होना ही उसको और उसकी कृति को उत्कृष्ट और अनूठा कर जाता है।

आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
लेखन तो जारी है..दो उपन्यास तैयार हैं..और एक अंतर्राषट्रीय व्यक्तित्व पर बायोग्राफी का कम चल रहा है..जल्द ही आप सब के सामने आएंगे।

नए उभरते कवियों और लेखकों के लिये आपका क्या संदेश है जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
जी जरुर, मेरा यही संदेश है कि साहित्य वही कहाता है जो हितार्थी हो..चार पंक्तियों से अपनी बात पर विराम दूंगी:
ऐ कलमगर रख इतना जमाल अपने हुनर पर
कि पुश्त दर पुश्त संवर जाए
पढ़े जो तिरा लिखा, फरिश्ते क्या शैतान भी इल्मे नजर पाए ।
आप सब को नवरात्रि और दशहरे की अग्रिम अशेष शुभकामनाएं।


Saturday, July 28, 2018

समीक्षा : "अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" लेखिका विजयश्री तनवीर

प्रस्तावना :

लेखिका विजयश्री तनवीर का पहला कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' जो अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है, मैंने पढ़ा और जो कुछ भी मैं इस संग्रह से ग्रहण कर पाया हूँ, आप सब के सामने प्रस्तुत करता हूँ । इसे प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म प्रकाशन ने । कुल 120 पन्नों की ये किताब अपनी नौ कहानियों में कई रोचक किरदार, कई राज़ और बहुत सी भाव - भंगिमाएं समाये हुए है जिन्हें पढ़ते हुए आप ख़ुद भाव -विभोर हो उठेंगे ।

कहानियां :
पहली कहानी 'पहले प्यार की दूसरी पारी' एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने पहले प्यार से आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिलता है और जो बातें उन दोनों के बीच होती हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि उन दोनों ने ही अपनी-अपनी स्थिति को स्वीकार तो कर लिया है मगर कहीं-न-कहीं उस प्यार की कसक बाक़ी तो है - जब औरत कहती है, "मैं तो तुम्हारी मजबूरियों और प्राथमिकताओं को याद करती हूँ ।" क्या उसने ये बात अपनी ख़ुशी से कही थी या ये एक व्यंग था, पढ़ने पर मालूम हो जाएगा ।
दूसरी कहानी 'भेड़िया' एक आदमी के अपराधबोध पर आधारित है जो उसके मन में इस क़दर समा गया है कि उसे हर तरफ़ एक खूंखार भेड़िया दिखाई देता है जो उसे खा जाने पर उतारू है । "मौत वो सबसे बुरी चीज़ नहीं जो हमारे साथ हो सकती है, बिना मौत भी हम कई बार मरते हैं ।" ये वाक्य कहानी की धुरी है ।
अब आपकी मुलाक़ात होती है अनुपमा से जिसके किरदार की तर्ज़ पर इस संग्रह और तीसरी कहानी का नाम  'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' रखा गया है । ये कहानी  एक औरत को एक व्यक्ति के नैसर्गिक रूप में प्रस्तुत करती है । अपनी कमसिन उम्र से लेकर अब तक उसके मन में कितने लोगों ने प्रेम की चिंगारी लगाई, इसको उसी के माध्यम से लेखिका ने उघाड़ कर आपके सामने रख दिया है । लोकल ट्रेन में यात्रा के माध्यम से उसके जीवन में कितने संघर्ष और कष्ट हैं उनसे भी रु-ब-रु होते हुए आप कहानी के अंत तक की रोमांचक यात्रा करते हैं । "कैसे अचानक ही हमारे प्रेम का विस्थापन किसी दूसरे पर हो जाता है," यही इस गुदगुदाने वाली कहानी का केंद्र बिंदु और फलसफ़ा है ।
अगली कहानी सुकेश प्रधान और शैफाली की है - 'समंदर से लौटती नदी' सुकेश एक आर्टिस्ट है और शैफाली उसकी फैन जो उसकी पड़ोसन के रूप में उसके जीवन में जबरन घुस आती है और फिर हालत उनको वो सबकुछ करने का मौका देते हैं जो 'शायद' नहीं होने चाहिए । ये एक ऐसी कहानी है जो क़दम क़दम पर आपको सावधान भी करती है क्योंकि जो सुकेश के साथ हुआ वो किसी भी पुरुष के साथ कभी भी हो सकता है । "सचमुच उन्हें शैफाली चाहिए थी । उनके कैनवास को, उनके कलाकार मन को, उनके अंदर के चिर अतृप्त पुरुष  को ।" क्या पुरुष वाकई अतृप्त होते हैं ? क्या किसी की आसक्ति को प्रेम कह सकते हैं ? इन सवालों के उत्तर ढूंढती एक कहानी I
आइये पांचवीं कहानी में चलते हैं । कहानी का नाम है 'एक उदास शाम के अंत में' । किस प्रकार से एक औरत अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक व्यक्ति की भावनाओं से खेलती है, इस कहानी में लेखिका ने बखूबी दर्शाया है । "मिरेकल्स हैपन धीर, आई गाट द वर्ल्ड !" क्या था वो 'वर्ल्ड' ये जानने के लिए पढ़िए इस किस्से  को जो आपको भी उदासी से भर देगा ।
आगे मेरी मुलाक़ात हुई एक 'खिड़की' से जो अपने में कई सारे राज़ समेटे हुए है जिनको जानने के लिए अँधेरी घुप्प रात में आपको इस खिड़की पर खड़े रह कर कुछ देर तक अपना समय ज़ाया करना होगा । जैसे जैसे राज़ खुलते जायेंगे वैसे वैसे आपके मन में एक अनचाहा डर घर करता जाएगा । हमारे समाज में लुका छिपी चलने वाले खेल आपको सोचने पर मज़बूर कर देंगे । "फोर्टी क्रॉस्ड, डेडली अमेजिंग I" जब आपकी बीस साल की लड़की ये कहे तो आप भी चौंक पड़ते हैं । रियली अमेजिंग स्टोरी !
"ये वाहियात औरतें जाने कैसे किसी भी खाँचें में अपने -आपको फिट कर लेतीं हैं ।" आखिर वो ऐसा सोचने पर क्यूँ मजबूर हुई ? क्या हुआ था उसकी ज़िन्दगी में कि औरतों से उसे एक प्रकार की चिढ़ होने लगी थी । क्यों उसको अपने पति से कहना पड़ा - "मैं आपकी कहानी का कोई किरदार नहीं !" एक व्यक्ति के व्यक्तित्व (शायद दोहरे) को खंगालती ये एक अदभुत कहानी है - "खजुराहो" ।
पन्ना पलटते ही आपकी मुलाक़ात एक डॉक्टर की क्लिनिक पर बैठी दो औरतों से होती है जिनके वार्तालाप में आप भी दिलचस्पी लेने लगते हैं जब पहले वाली दूसरी से कहती है - "भरोसा करना अच्छा है, न करना और भी अच्छा ।" किसी को अथाह प्रेम करने के बावजूद भी हम क्यूँ किसी पर भरोसा नहीं कर पाते और कुछ तो है कि हमें अपने फैसले ही नहीं अपने रिश्ते भी बदलने पड़ते हैं - ये कहानी 'चिड़िया उड़' आपको सोचने पर मजबूर कर देगी ।
आगे के कुछ पन्ने 'विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ' में कुछ खट्टी कुछ मीठी लघु कहानियों  को समेटे हुए हैं, जिनमें से कुछ निहायत ही सुंदर बन पड़ी हैं । आप महसूस कर सकते हैं उस खूबसूरत अहसास को जब एक लड़का अपनी प्रेमिका से कहता है कि अगले जन्म में वो उसका बेटा बनना चाहेगा । मेरे ख्याल से इससे बेहतरीन ख्याल नहीं हो सकता !


समीक्षा :
एक समीक्षक के लिए इससे मुश्किल कोई काम नहीं कि किसी लेखक के लिखे हुए पर कोई टिपण्णी करे । बचपन से ही मैं कहानियां पढ़ता आया हूँ, और तभी से आदमी और औरत के बीच के सम्बन्ध मेरे लिए आकर्षण का विषय रहे हैं । शायद पुरुष के लिए एक स्त्री और एक स्त्री के लिए पुरुष एक सनातन रहस्य है जिसको खोजते खोजते लेखिका विजयश्री तनवीर भी 'अनुपमा गांगुली के चौथे प्यार' तक पहुँच गयी हैं । और इस खोज भरी  यात्रा में जो कुछ मिला उसे अपनी कहानियों में समेट कर आपके सामने एक संग्रह के रूप में प्रस्तुत कर दिया है ।
मित्रों, इस किताब में कुछ ख़ास है वो ये कि जो दूसरी किताबों नहीं मिलेगा और वो है कहानी लिखने का अनोखा अंदाज़ । कहानी लिखने की दो प्रमुख विधाएं हैं । एक है प्रत्यक्ष - जिसमें किरदार सीधे संवाद करते हैं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं । दूसरा है अप्रत्यक्ष - इसमें कोई एक किरदार अपने को तीसरे व्यक्ति के रूप में ढाल कर अपनी ही ज़िन्दगी में होने वाली उथल-पुथल, उसमें आने वाले लोग और उन लोगों ने कैसे उसके जीवन को प्रभावित किया इसकी विवेचना करता है । इस पूरी प्रक्रिया में उसके  मन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है जो उसकी विवेचना के धरातल का काम करता है। इसीलिए लेखिका ने इन कहानियों को मन की कहानियां कहा है ।

ये कहानियाँ आदमी और औरत के प्राकृतिक भाव, संवेदनाएं, गुण और दोष जैसे प्रेम, आकर्षण, आसक्ति, स्वार्थ, तृप्ति, अतृप्ति, शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएं आदि पर केन्द्रित हैं जिनका सही और गलत होने का अनुमान और अंतिम निर्णय करने की ज़िम्मेदारी को पाठक के ऊपर छोड़ दिया गया है । इन कहानियों में लेखिका ने पुरुष और स्त्री दोनों को सामान रूप से कटघरे में खड़ा कर दिया है - किसी एक कहानी में अगर पुरुष स्वार्थी दिखाई पड़ता है तो दूसरी कहानी में स्त्री । प्रेम का आवरण ओढ़कर कहीं अगर पुरुष अपनी हवस को तृप्त करता है, तो अगली कहानी में स्त्री भी वही सबकुछ करती दिखाई पड़ती है । इस प्रकार निष्पक्ष रूप से किरदारों को गढ़ने के लिए मैं लेखिका को बधाई देता हूँ क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुरुषों को कामी , कठोर, भाव शून्य और स्वार्थी माना जाता है जबकि स्त्री अभी भी अबला ही है । हांलांकि ऐसा बिलकुल नहीं है, ज़माना बदल चुका है  - स्त्री भी उतनी ही कामी, कठोर और स्वार्थी हो चली है जितना के पुरुष । इन सब चीज़ों को लेखिका ने अपनी कहानियों और किरदारों के माध्यम से बखूबी अपनी लच्छेदार भाषा में आपके सामने पेश कर दिया है I

हिचकियाँ :

इस कहानी संग्रह की तमाम कहानियां स्त्री और पुरुष के विवाहेतर संबंधों के इर्दगिर्द घूमती हैं । एक ही विषय पर लिखी गयी और एक ही संग्रह में पिरोहित कहानियां कहीं न कहीं एकरसता उत्पन्न करती हैं और पाठक, जो हर कहानी में कुछ नया ढूँढता है, उसको निराश कर सकती हैं । मेरे हिसाब से एक कहानी संग्रह में भिन्न भिन्न विषयों पर कहानी का चयन होना चाहिए क्योंकि एक ही  विषय के ऊपर सिर्फ कहानी की रूपरेखा बदल जाने से कहानियों में नयापन उस हिसाब से नहीं आता जो एक पाठक चाहता है । दूसरे, आदमी और औरत के कुछ अन्तरंग क्षणों को लिखते हुए भाषा और शब्दों का चयन कुछ ऐसा हो गया है जिसे कुछ लोग अश्लील की श्रेणी में रख सकते हैं । मेरे विचार से इस पर नियंत्रण किया जा सकता था ।

पुन:अवलोकन :

निष्पक्ष भाव से अगर कहूँ तो लेखिका विजयश्री  तनवीर के अंदर चरित्रों के मन के भीतर घुस कर उनके भावों और संवेदनाओं को बाहर लाने की और अपनी लेखनी से कागज़ पर उतारने की ग़ज़ब की प्रतिभा है । वो एक विशिष्ट भाषा शैली और अप्रत्यक्ष लेखन की मल्लिका हैं । उनकी इस प्रतिभा को देखकर मैं कह सकता हूँ कि वो वर्तमान की नहीं वरन भविष्य की लेखिका हैं । मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ । ये कहानी संग्रह उनकी साहित्यिक यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा और उनकी आगे यात्रा, जो बहुत लम्बी है, उसको सुगम बनाएगा । उसके लिए शुभकामनाएं ।

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर
29 July 2018










Wednesday, July 25, 2018

समीक्षा - छंटते हुए चावल - कहानी संग्रह - लेखिका नीतू सुदीप्ति 'नित्या'


प्रस्तावना :
ये कहानी संग्रह मुझे नीतू जी ने पी डी एफ के रूप में मेल से भेजा है। इसको प्रकाशित किया है शब्द प्रकाशन ने । जिस प्रकार से लेखिका ने लिखा है कि लेखन उनके जीने का साधन है, उसी प्रकार से किसी भी किताब को, विषेशरूप से कहानी संग्रह को पढ़ना मेरा भी जीने का एक साधन है। जो कुछ भी इस कहानी संग्रह से मैं ग्रहण कर पाया हूँ आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ।

कहानियाँ : 
पहली कहानी 'छँटते हुए चावल' ही है जो इस संग्रह का शीर्षक भी है। मेरे लिए ये एक नया मुहावरा ही है जिसका सही अर्थ मुझे कहानी पढ़ने के बाद ही ज्ञात हुआ। किसी व्यक्ति के बारे में बिना ठीक से जाने ही लोग क्या-क्या बोलने लगते हैं ये कहानी का सार है। इस कहानी कि एक पंक्ति ने मुस्कुराने के लिए मजबूर कर दिया - "रोटियाँ सिकतीं गईं और दिमाग़ पकता गया।" दूसरी कहानी 'खोईंछा' भी कुछ कुछ वैसे ही विषय पर आधारित है जिसमें एक स्त्री को बिना उसका पक्ष जाने ही उसकी अपनी बेटी की मृत्यु का दोषी मान लिया जाता है। धीरे-धीरे जब सच की परतें खुलती हैं तो पाठक भी हतप्रभ हो जाता है। कहानी कई मोड़ों से गुजरते हुए समाप्त होती है जो कहानी को काफ़ी दिलचस्प और पठनीय बनाते हैं। तीसरी कहानी 'शीतल छांव' आपकी मुलाक़ात ईशिता और नरेन से होती है जिनकी ज़िंदगी में लाखों ग़म हैं। समाज के कुछ महा स्वार्थी नियम किस प्रकार एक लड़की के जीवन से खेलते हैं, पढ़ने योग्य हैं जो अंत मे आपकी आँखों को नम कर जाती है। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एक काम वाली बिमली से जो कहती है, "का करूँ दीदी, हमार छत तो हमार मरद ही है न। तुम्हारे समाज में औरत लोग जल्दी ही तलाक ले लेती हैं, पर हम गरीब औरत पति के लात-जूता खाके बस सहती हैं,” फिर क्या हुआ ? ये सोचने का विषय है। थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक बलात्कार का शिकार हुई लड़की से लेखिका आपको काला अध्याय में रु-ब-रु करवाती है और उसकी मन:स्तिथि, जो खंडित हो चुकी है, उसको अपनी शादी के समय कुछ ऐसा करने पर मज़बूर कर देती है जिसको पढ़कर आप भी चकित हुए बिना न रह सकेंगे। हम बोझ नहीं एक प्रेरणादायक कथा है जो हर हाल में जीवन जीने और संघर्ष करने के लिए कहती है। अब आती है एक कहानी डे नाइट। क्या क्या नहीं बीता होगा उस लड़की के ऊपर जब उसे उस परिवार की असलीयत पता लग जाती है जिसमें वो ब्याह कर आई है और ऊपर से ये सुनने को मिले कि शादी में थोड़ा बहुत झूठ तो चलता ही है। आस भरा इंतज़ार एक ग़रीब मज़दूर परिवार की कहानी है जहां एक स्त्री कितना मज़बूर हो जाती है कि वो नए साल पर अपने बच्चों को खीर तक नहीं खिला सकती, पढ़कर आपकी आँखें भी भीग जाएंगी। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एंद्री से जिसके व्यक्तित्व को जानकर आपको अच्छा लगेगा कि इस खुल गयी आँखें नामक कहानी का ये नाम क्यूँ रखा गया है। माफ़ करना एक ऐसी कहानी है जिसे पढ़कर आपको थोड़ा नायक के प्रति और फिर नायिका के प्रति क्रोध ज़रूर आएगा। लेकिन जैसे जैसे कहानी की परतें उघड़ती हैं आपको दोनों के प्रति सहानुभूति होने लगती है। जब आगे आप एक कथा ऐसी भी में प्रवेश करते हैं तो उदासी शुरू से ही आपके ऊपर हावी हो जाती है मगर धीरे धीरे लेखिका जब कहानी को बढ़ाती है, आपको अच्छा लगने लगता है। ये एक लड़की के दर्द भरे जीवन की बेहतरीन कहानी है। माँ न बन पाने का दर्द क्या होता है ये पढ़ें रिश्तों का ताना बाना में – और कैसे इस स्थिति से निबटा गया सिर्फ़ एक आदमी की सूझ-बूझ से। काम मुश्किल था मगर रास्ते मिलते गए और सब ठीक हो गया। कभी-कभी हम सब ऐसी विकट स्थिति में पड़ जाते हैं कि कोई रास्ता नहीं मिलता और गांधी जी के बंदर की तरह आँखें बंद करनी पड़तीं हैं – पढ़ें ये दिलचस्प कहानी – बंद आँखों का बंदर। आगे आती है एक ऐसी कहानी जिसका नाम है –चीर हरण जिसमें एक लड़की और उसकी माँ को अपने मासिक धर्म से निबटने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है विशेषकर जब ख़ुद उनके परिवार के लोग ही उनकी परेशानी को समझने को तैयार न हों। बढ़िया प्रस्तुति है।
उनके दूसरे कहानी संग्रह हमसफ़र में भी इसी प्रकार की कहानियाँ हैं कुछ छोटी तो कुछ बड़ी जो पढ़ने पर आपको अच्छी लगेगीं।


समीक्षा :

इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ निम्न या फिर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियाँ हैं जो ग्रामीण अंचल से ली गयी हैं। कहानियों के मुख्य विषय समाज में फैली विषमताएं, रूढ़ीवाद, अशिक्षा, प्रेम, विवाहेतर संबंध इत्यादि को बहुत सीधे, सादे, और सटीक तरीके से लेखिका ने समझाने की पुरजोर कोशिश की है जिसमें वो सफल भी रही हैं। कहानियों कि भाषा साधारण परंतु सुंदर है और प्रवाह एक नदी कि तरह है जो कलकल करते हुए अपने गंतव्य की तरफ़ अविरल बढ़ती है और आप उसके किनारे बैठकर आराम से अपने पाँव उसमें डालकर उस प्रवाह का आनंद ले सकते हैं। मित्रों, ऐसी कहानियाँ वो ही लिख सकता है जिसने उस तरह के जीवन को न सिर्फ़ जिया हो बल्कि घूंट-घूंट पिया भी हो। लेखिका के बारे में पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ कि उनके दिल में जन्म से ही विकृति है और वो अक्सर बीमार रहती हैं। पारिवारिक और शारीरिक कारणों से उनकी शिक्षा भी अधिक नहीं हो पायी, निम्न मध्यवर्गीय परिवार से हैं, फिर भी समाज में होने वाले क्रिया कलापों के प्रति इतनी सजग हैं और अपने अनुभवों को अपनी कलम से कहानियों मे उतार देने की गज़ब की प्रतिभा है उनमें। मैं सुदीप्ति नित्या के इस ज़ज़्बे को सलाम भेजता हूँ।
इनके जीवन पर कवि दुष्यंत जी का ये शेर बिलकुल सही बैठता है –
कौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो ज़रा तबीयत से उछालो यारों।
लेखिका के जीवन के संदर्भ में मैं इस शेर को कुछ इस प्रकार से कहना चाहूँगा –
कौन कहता है दिल में छेद हो नहीं सकता, एक शब्द तो तबीयत से उछालो यारों।
मेरा अनुमान है कि नीतू जी ने जब वो माँ के पेट में थीं तभी से शब्दों के साथ खेलना शुरू कर दिया था और कोई शब्द इतनी ज़ोर से उछाला कि वो बाहर आने की बजाए अंतर्मुखी हो गया और उसने इनके दिल में छेद कर दिया।

हिचकियाँ :

किताब में कोई ख़ास कमी देखने को नहीं मिली। चरित्र निर्माण बढ़िया है मगर भाषा को अभी और परिष्कृत करने कि आवश्यकता है ताकि वो साधारण से थोड़ा असाधारण की तरफ़ अग्रसित हो सके।

पुन: अवलोकन :

हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं, विषमताओं, और कुंठाओं को परत – दर – परत उघाड़ती ये साधारण भाषा में कही गयी आपकी, मेरी, हम सबकी कहानियाँ हैं। मैं चाहता हूँ कि अधिक से अधिक पाठक इन्हें पढ़ें और लेखिका नीतू सुदीप्ति का हौसला भी बढ़ाएँ। मैं एक चिकित्सक भी हूँ और जानता हूँ कि किसी के दिल में छेद होना कितना घातक है। मेरी शुभकामनायें नीतू जी के साथ हैं और मैं हृदय से कामना करता हूँ कि वो अपने उपनाम नित्या को चरितार्थ करते हुए दीर्घायु हों, खूब लिखें और धारदार लिखें। मुझे उनकी आने वाली सभी कृतियों का इंतज़ार रहेगा और पढ़ना भी चाहूँगा।

राजीव पुंडीर
25 जुलाई 2018

Tuesday, July 17, 2018

ऐसी वैसी औरत - कहानी संग्रह - लेखिका अंकिता जैन - एक समीक्षा

प्रस्तावना :
फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहाँ अधिकतर कूड़ा और कबाड़ ही भरा रहता है I मगर कभी कभी किस्मत से उस कबाड़ के ठीक बीच से हमें कुछ बेशकीमती मोती भी चुनने को मिल जाते हैं I ऐसा ही एक मोती मुझे मिला फुन्नु सिंह की पोस्ट से जिसका नाम है - ऐसी वैसी औरत I ये एक कहानी संग्रह है जिसको लिखा है अंकिता जैन ने और प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म ने I आप इस कहानी संग्रह को पढ़कर हिंदी की बेहतरीन कहानियों का आनंद ले सकते हैं बशर्ते आप कुछ सम्वेदनशील हों और कुछ मानसिक आघात सहने को तैयार हों I

कहानियाँ :
इस कहानी संग्रह में कुल दस कहानियां हैं जो बहुत ही शानदार भाषा में लिखी गयी हैं I कहानियों के मुख्य पात्र  स्त्रियाँ हैं जो समाज के भिन्न भिन्न वर्गों से आती हैं I शरू में आपकी मुलाक़ात मालिन भौजी से होती है जो एक ग़रीब तबके से है और परितक्यता होने के बावज़ूद एक जुझारू, बिंदास और रंगीन प्रवृति की है I दूसरी औरत रज्जो फिर से एक परितक्यता है मगर भीरु है जिसे अपने प्रेम को त्याग कर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है मगर जब उसका पति उसको छोड़ देता है तो वो घर लौट आती है अपने भाइयों के पास I आगे कुछ प्रत्याशित और कुछ अप्रत्याशित घटता है जो पढ़ने लायक है I आगे आपकी मुलाक़ात समाज में फैली वैश्यावृत्ति और उसके तानेबाने को खोलती बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी से होती है I अगली कहानी में लेखिका ने एक लेस्बियन (सम लैंगिक) लड़की के दर्द को रेखांकित किया है जिसका अहसास आपको भी हो जायेगा I जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं आपको मिलती है मीरा जो बहुत ग़रीब है, जिसका पति एक शराबी है और घरों में काम करती है I उसकी बेलौस मुस्कुराहट के पीछे उसके दर्द छटपटा रहे हैं बाहर निकलने को, जिन्हें वो हरदम दबाये रहती है और एक दिन ऐसा कुछ घटता है जो आप सोच भी सकते हैं और नहीं भी I अब एक ऐसी लड़की का प्रवेश होता है जो झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली है मगर उसकी आँखों में आसमान में उड़ने की ललक है, झिलमिलाते सितारे हैं और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने के सपने हैं I उसकी शादी भी उसके प्रेमी से होती है I मगर नियति उसे कहीं और ही ले जाती है I आगे आप ऐसी स्त्री से रूबरू होते हैं जो अपर मिडिल क्लास से है नाम है काकू I अकेली रहती हैं मगर सब कुछ होते हुए भी उनके पास कुछ नहीं है, सिर्फ़ ग़मों के सिवाए I अगली कहानी एक अपाहिज लड़की ज़ुबीं की है जिसकी 'सम्पूर्ण स्त्री' होने की इच्छा उससे वो करवा देती है जिसकी कल्पना सिर्फ़ लेखक ही कर सकता है - हांलांकि इस जीवन में यथार्थ और कल्पना में बहुत महीन रेखा है जो दिखाई भी देती है और नहीं भी I आगे आपको एक 'ऐसी' औरत की कहानी पढ़ने को मिलती है जिसको वास्तव में 'वैसी' औरत की श्रेणी में रखा जा सकता है I और अंतिम कहानी - भंवर - जो भाई बहन के रिश्तों एक ऐसे कोण से खंगालती है कि आप हतप्रभ हो जायेंगे I


समीक्षा :

क़रीब 28 साल पहले एक फिल्म आई थी "द बैंडिट क्वीन" जो मशहूर दस्यु सुंदरी फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी I जैसे ही फिल्म शुरू होती है, परदे पर फूलन अपने डाकू के वेश में अपनी बन्दूक कंधे पर लगाए प्रकट होती है और दर्शकों की तरफ देख कर बोलती है - बहनचोद ! उसकी आँखों में गुस्सा और नफ़रत का सैलाब है जो किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं वरन पूरे समाज के प्रति है - और ये गाली भी उसने पूरे समाज को दी है किसी एक को नहीं I गाली सुनते ही पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता है, लगता है किसी ने एकाएक ज़ोरदार तमाचा सबके मुंह पर जड़ दिया हो कि मेरी इस दुर्दशा के लिए आप सब लोग भी जिम्मेदार हैं !
अंकिता जैन भी कुछ इसी अंदाज़ में आपको इस किताब को पढ़ने से पहले सावधान कर देती हैं अपने "दो शब्दों" में - "इस किताब की कहानियों में जिन औरतों को मुख्य चरित्र में रखा गया है, वे ऐसे चरित्र हैं, जिन्हें समाज में गू समझा  जाता है I ऐसी गन्दगी समझा जाता है, जिस पर मिटटी डालकर उसे छुपा दिया जाता है  - तब तक के लिए जब तक कि उसे साफ़ करने वाला जमादार न आ जाए; और यदि नौबत ख़ुद साफ़ करने की आ जाए तो साफ़ करने वाले को रगड़-रगड़कर नहाना पड़े I"
अपनी बात को बिना लाग-लपेट के इस प्रकार बेबाक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए मैं अंकिता जी आपको बधाई देता हूँ क्योंकि ऐसा कहने की हिम्मत सबके पास नहीं है I

अब आते है मुख्य बिंदु पर I हम जिस समाज में और जिस जगह रहते हैं वहां हमारे चारों ओर जीवन से आती अलग- अलग रंगों की कहानियां और चरित्र बिखरे पड़े हैं I सत्व, रज और तम से ओतप्रोत ये प्रकृति हमारे सम्मुख क़रीब-क़रीब वही कहानियां और वही किरदार बार-बार प्रस्तुत करती रहती है और लेखक लेखिकाएं उन्हीं को अपनी लेखनी के रंग से अलग-अलग रूप देकर समाज के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं I उनके व्यक्तिगत विचार, भाषा शैली और प्रस्तुत करने का ढंग ही उनको कभी प्रेमचंद, कभी शिवानी, कभी कमलेश्वर, कभी मंटो और आजकल कभी रंजना प्रकाश और कभी अंकिता जैन बना देता है I इस कहानी संग्रह की विशेषता अंकिता जी का लेखन है जिसमें  उन्होंने यथोचित विशेषण और अलंकार प्रयोग किये हैं I जैसे जैसे पाठक पढ़ना शुरू करता है, उनकी सटीक भाषा शैली और कलम का जादू पाठक को अपनी गिरफ़्त में इस प्रकार जकड़ लेते हैं कि पाठक कब अंतिम पृष्ठ पर पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चलता I मुझे भी ऐसा ही हुआ I लेखन में इतनी कशिश आजकल कम ही देखने को मिलती है I इसके लिए भी मैं अंकिता जी को बधाई देना चाहूँगा I

हिचकियाँ :

ये भी एक कटु सत्य है की कोई भी लेखक आजतक अपने पाठकों को शत प्रतिशत संतुष्ट नहीं कर पाया है I एक लेखक की हैसियत से मैं तो बिलकुल नहीं I एक पाठक की हैसियत से मुझे ये कहानी संग्रह एक लाजवाब किताब लगी - बस दो बातों को छोड़कर I पहली कहानी में मालिन भौजी एक आठवीं पास औरत है और अधेड़ उम्र भी, यानी क़रीब क़रीब अनपढ़ I उसे कवितायें लिखने का शौक़ भी है I मगर जो कवितायें वह लिखती है उनका स्तर बहुत ऊँचा है और उसके शैक्षिक और बौद्धिक स्तर से मेल नहीं खाता I दूसरे अंतिम कहानी 'भंवर' में अपनी शादी के समय लड़की जो निर्णय लेती है वो बहुत देर के बाद लिया गया प्रतीत होता है जिसे वो पहले भी ले सकती थी और तर्कसंगत इसलिए भी नहीं है क्योंकि अपने कष्टों के लिए कहीं न कहीं वो ख़ुद भी जिम्मेदार है I
इस किताब का मुखपृष्ठ उतना आकर्षक नहीं है जितना होना चाहिए था I इसे और बेहतर बनाया जा सकता था I

पुन: अवलोकन  : 
ये कहानी संग्रह हर तरह से एक उम्दा लेखन का प्रमाण है I इसलिए इस किताब को हिंदी साहित्य की उच्च श्रेणी में रखा जाएगा और वर्षों तक इस किताब को पढ़ा जाएगा क्योंकि  इसकी अद्भुत लेखन शैली और इसके चरित्र पाठकों के दिमाग़ पर ही नहीं दिलों पर भी छाने की क्षमता रखते हैं I मैं अंकिता जैन जी को ऐसे ही लिखते रहने के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उनकी प्रगति की कामना करता हुए उनकी सभी किताबें पढ़ने की इच्छा रखता हूँ I

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर

Sunday, June 24, 2018

Review : Murder In Paharganj By Kulpreet Yadav

Introduction :
The book is written by Kulpreet Yadav, an accomplished writer and published by Bloomsbury. It's a thriller revolving around the murder of a girl in a budget hotel of Paharganj, New Delhi. How the story moves and rapidly unfolds is quite interesting. To know more, read the book which will keep you on tenterhooks right from the first page.

The Story:
Vicks, a journalist with a news paper is fired by his boss due to his drinking habit. This habit of his leads him to the serious differences with his live-in partner, his girl friend Tonya. Finally he moves out of her flat and now he's in search of breaking news which he could present to his boss to impress him to the extent that he could restore him. And suddenly he gets one! A girl is found murdered in the small hotel situated in Paharganj, New Delhi. The girl is of Israeli origin. Being a foreigner, all security agencies are alerted and the Delhi Police crime branch starts the investigation. Knowing fully well that jumping midway into the investigation will be taken as interference and he may get penalized, he is compelled by his demons to investigate on his own, come what may! Even he doesn't care about his life. In this adventure of his he's overwhelmed to seek the help of his girlfriend Tonya, a clinical psychologist. And on his humble and honest request she agrees. And a big game of chasing the culprit right from Udaipur to Bangkok starts unfolding a sinister plot of bombing a chemical facility in Iran by Israel. The turnout of the investigation is mind blowing!!
My Take: 
Certainly a cup of tea for those who read thrillers. I strongly recommend this book.

Rating: 
A five by five rating will look a tad odd as no book is perfect but I didn't find anything except Vicks' relationship with his father just out of context. So 4/5 is justified.
I would like to go through all his books. All the best Kulpreet!!
  

Monday, May 28, 2018

डार्विन जस्टिस - उपन्यास लेखक प्रवीण कुमार

प्रस्तावना :

बिहार के इतिहास को, बुद्ध और महावीर के शांति सन्देशों के अलावा, सामाजिक संरचना में डार्विन जस्टिस की थ्योरी को भी समझना था। सामाजिक संरचना में सदियों से चला आ रहा असंतुलन, संतुलित होने के नाम पर रक्तरंजित होने जा रहा था। तैयारियाँ शुरू हो गर्इं। लोग दूर-दराज़ से आने लगे। जिन्हें अपने खेतों से झंडे उखड़वाने थे, वे मनचाहा योगदान देने को तैयार थे। अनय और चश्मिश की कहानी, काल के इसी कार्यक्रम का हिस्सा है; किसी इंसान के बहाने इंसानियत को कलंकित करना है। उसे कार्ल मार्क्स के अंदर डार्विन के सिद्धान्त को समझाना है। उसे समझाना है कि, न्यूटन का सिद्धान्त सिर्फ भौतिक विज्ञान की किताबों में ही नहीं है, बल्कि वह सामाजिक संरचना के अंदर भी घुसा हुआ है; उसे समझाना है कि, लिंकन के जिस प्रजातंत्र का हम दम्भ भरते हैं, वहाँ भी डार्विन की थ्योरी चुपचाप अपना काम करती रहती है।
उपरोक्त पृष्ठभूमि  में प्रवीण कुमार का ये उपन्यास आपके सामने प्रस्तुत है जिसे प्रकाशित किया है अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद उत्तर प्रदेश ने I

कहानी :

इस उपन्यास की कहानी के केंद्र बिंदु अनय और चश्मिश दो युवा हैं जो नवं कक्षा से ही एक दूसरे को चाहने लगते हैं I धीरे-धीरे उनकी ये कच्ची उम्र की चाहत एक दूसरे पर ऐसी हावी होती है कि परिपक्व होते होते वो एक दूसरे को बेइंतिहा प्रेम करने लगते हैं I मगर समाज के बंधन और सीमायें कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करती हैं कि उन्हें आपस में मिलने नहीं देतीं और जब प्रकृति उनके मिलने का समय और स्थान निर्धारित करती है तो दोनों के साथ एक वीभत्स और गंभीर हादसा होता है I फलस्वरूप बिहार का वो इलाका एक गृहयुद्ध की चपेट में आ जाता है I क्या होता है और क्यूँ ये सब हुआ ये जानने के लिए पढ़िए एक बहुत खूबसूरत किताब - डार्विन जस्टिस जिसे लिखा है बहुत ही आकर्षक और दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में लेखक प्रवीण कुमार ने I


विशेषताएं :

जब आप इस उपन्यास को पढ़ना शुरू करते हैं तो लेखक चुपके से आकर आपकी ऊँगली पकड़ लेता है क्योंकि उसे पता है कि बिना उसके मार्गदर्शन के आप इस अत्यंत साधारण सी दिखने वाली प्रेम कहानी को समझ नहीं सकते हैं I है न अज़ीब बात ! कहानी दो बच्चों के प्रेम और एक दूसरे के लिए आकर्षण की एक आम कहानी है जो कि आपको हर गली मोहल्ले में देखने को मिल जाती हैं और आगे भी मिलती रहेंगी I मगर उस समय बिहार राज्य में राजनीति ने जो उधम मचाया और उसका इन दो बच्चों की प्रेम कहानी पर क्या असर पड़ा वही इस कहानी की विशष्टता है जिसे लेखक ने अपनी कलम से बखूबी कुछ पन्नों पर उकेर दिया है I कहानी पढ़ते समय आपको लगता है कि आप किसी दुर्गम यात्रा पर निकल पड़े हैं, जहाँ चिलचिलाती धूप है, जंगली जानवरों का भय है और जैसे ही आप सहमने लगते हैं, लेखक आपको अनय और चश्मिश के पास ले जाकर बिठा देता है जहाँ प्यार की ठंडी हवा है, बारिश की सुकून देने वाली फुहारें हैं, चाँद है, शीतल चांदनी है, पेड़ों की ठंडी छाया है, कल-कल बहते झरने हैं और आप फिर से शांत हो जाते हैं और उन दोनों की प्रेम कहानी जो बेहद साधारण होते हुए भी असाधारण है उसमें खो जाते हैं I 
कहानी पढ़ते हुए आपको कभी लगता है कि इस कहानी के परिपेक्ष्य में लेखक आपको बिहार में नब्बे के दशक में हो रही सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक उथल-पुथल से रू-बरू करवाना चाहता है जिसे तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्नाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन थोपकर शुरू किया था और रही सही कसर लालू प्रसाद जैसे नेताओं ने अपने वोट बैंक की खातिर आग में घी डाल कर पूरी कर दी थी I पूरे बिहार को अगड़े और पिछड़े दो अलग-अलग धड़ों में बाँट दिया गया था I जहाँ पिछड़ों को उकसाया गया था कि अपना हक़ छीन लो चाहे मारो, काटो या आग लगाओ I और कभी लगता है कि इस अत्यंत स्वार्थी और घिनौनी राजनीती के परिपेक्ष्य में दो प्यार करने वालों का क्या अंजाम हुआ यही लेखक बताना चाहता है I
प्रेम कहानी का वर्णन करते हुए लेखक ने सभी अलंकारों, विशेषणों और रसों का यथोचित प्रयोग किया है जो इस उपन्यास को एक अलग पहचान देने में शत प्रतिशत कामयाब रहा है I वहीँ समाज में हो रही छीना-झपटी, ज़ोर-ज़बरदस्ती, लूटमार और हिंसा जिसे एक हद तक राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है को भी उसके प्राकृतिक रूप में दिखाया गया है - जिससे कभी-कभी पाठक सहम भी जाता है - और यही लेखक की सफलता है I


मेरा विश्लेषण :
यह एक अभूतपूर्व उपन्यास है जो अपनी विशिष्ट लेखन शैली के लिए हमेशा जाना जाएगा I अनय और चश्मिश की प्रेम कहानी का क्या अंत हुआ ये लेखक आपको पहले ही बता देता है जिससे कि आप उस हिंसा को, जिसने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, पढ़ने के लिए, महसूस करने के लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं I मित्रों, जब एक अधपकी उम्र का लड़का और लड़की एक दूसरे को निस्वार्थ, निश्छल भाव से प्रेम करते हैं तो कैसे वो धूप के टुकड़े का सरकना, वो आँखों ही आँखों में बातें करना, वो इमली के तीन टुकड़े खाना और बीजों को संभाल कर रखना, वो स्याही का दीवार पर उलट देना, वो पेन का मांगना, वो प्यार भरे ख़त लिखना आदि छोटी-छोटी बातें उन दोनों को प्रसन्नता प्रदान करतीं हैं तब ये किताब लिखी जाती है और हम और आप इसे पढ़ते हैं I
दूसरी तरफ़, क्या आपने कभी एक बीस दिन के नवजात बच्चे को खौलते पानी में उबलते देखा है, क्या आपने एक सत्तर साल की माँ के स्तन को उसके बेटे के सामने कटते हुए देखा है, क्या आपने एक डेढ़ साल के बच्चे को अपनी माँ, जिसे अभी-अभी गोली मारी गयी है, का दूध पीते हुए और उसे तुरंत ही उलटते हुए देखा है क्योंकि एक गोली ने उसका भी जीने का हक़ छीन लिया है, क्या आपने एक प्रेमी को अपनी आँखों के सामने अपनी प्रेमिका को निर्वस्त्र होते हुए और कुछ लोगों को उसका क़त्ल होते हुए देखा है, क्या आपने एक असहाय लड़की की एक आँख से खून और दूसरी आँख से आंसू बहते हुए देखा है और क्या आपने देखा है कि किस प्रकार दोनों की लाशों से उठता हुआ धुआं ऊपर आसमान में ऐंठते हुए उनको एक कर देता है जो ज़मीन पर रहते हुए एक न हो सके ? यदि नहीं तो पढ़िए इस किताब को जो आपके दिल को चीर कर दिमाग़ के एक कोने में घुस कर बैठ जायेगी I
इस किताब में तांडव और नृत्य दोनों साथ-साथ चलते हैं इसलिए भी ये उत्तम श्रेणी में रखने लायक है I
मैं इस किताब को इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए लेखक को बधाई देता हूँ I

हिचकियाँ :
दोस्तों, वैसे तो किताब में कोई ख़ास कमी नहीं है I लेकिन उस समय समाज में हो रहे उथल-पुथल को समझाने में लेखक ने बहुत परिश्रम किया है I परिणाम स्वरूप लेखक ने हर घटना-दुर्घटना को बहुत विस्तार से समझाने की कोशिश की है ताकि पाठक ठीक से समझ ले और इसी कोशिश में कहानी बहुत लम्बी खिंच गयी है जिससे पढ़ते-पढ़ते कभी-कभी ऊब भी होने लगती है I दूसरे कुछ घटनाओं को लेखक ने कई बार दोहराया है जिससे कहानी अपना असर कम करने लगती है और शायद अनावश्यक रूप से लम्बी भी हो गयी है I मुझे लगता है कि लेखक को भी इसका भान है तभी वो बार-बार पाठक को याद दिलाता है - कि याद करें वो किस्सा... 
मेरी अनुकम्पा है कि दूसरे संस्करण में इस किताब को बेहतर तरीके से संपादित करके फिर से प्रस्तुत किया जाए तो बेहतर होगा I

मैं लेखक प्रवीण कुमार की आने वाली सभी पुस्तकें पढ़ना चाहूँगा I


रेटिंग : 4/5 


राजीव पुंडीर 

28 May 2018