Tuesday, January 22, 2019

Review : Tacit Stories By Jasmin Thaker

Long back a book hit the market titled Fifty Shades Of Grey. It became such a hit that I couldn't resist myself and jumped on to it to read. But to my astonishment, I found it absolute crap as it's neither a love story nor an erotica. And I could not go beyond a few pages.
Just by chance, I came to know about Jasmin and his penchant for writing. Tacit Stories is his first book and to my surprise it's an erotica. Erotica is very difficult genre and needs special talent, technical know-how and of course a command over the language used to write an erotica. I can say that Jasmin has all the above expertise and written these stories with perfection. I can say that no Indian author has penned such a wonderful book ever except Jasmin in this genre which is considered dirty, untouchable, inarticulable, and restricted in our society. Jasmin has taken a courageous step for writing this erotica book in true letter and spirit. After reading the book, people would wonder that an Indian writer can write such a book in such an amazing language which may titillate, excite and compel them to understand love and sex in pure form devoid of lust.

In the stories, there's love, passion, emotions, natural urge of having sex and getting physical pleasure in a tender and happy manner from both the partners.
The effect of the language, narration, sexual acts and the whole scenario is so profound that the reader is filled with love and sexual excitement in true sense.

I have found most erotica books dirty. But Jasmin has kept the language absolutely refined, neat and clean. And I would say that the book has a potential to surprise and mesmerise the reader.
I recommend the book to one and all, girls and boys, ladies and gentlemen, and even above sixty years of age to enjoy, to learn, to refresh and to rejuvenate their sex life.
I would suggest the author to divide this book into three parts as it seems to be too big comprising more than 300 hundred pages.
Congratulations Jasmin for writing such a wonderful book.
All the best for this book and for future!!

Rajeev Pundir
22/Jan/2019

Wednesday, January 9, 2019

एक शाम, एक ख़ास मुलाक़ात : लेखिका मंजु सिंह से।

साक्षात्कार :
पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिये I
मुझे लोग मंजु सिंह के नाम से जानते हैं । मैं अध्यापन के क्षेत्र से जुड़ी रही हूँ। मैने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद बी एड भी किया । लेखन मुझे आत्म संतुष्टि देता है। समाज में फैला किसी भी प्रकार का प्रदूषण मुझे जब विचलित करता है तब मैं अपनी भावनाओं को शब्द दे ही देती हूं अक्सर । लेख, कविता, कहानी, लघु नाटिका, समीक्षा, आलोचना, संस्मरण आदि लिखती रही हूं। मेरी रचनाएँ विभिन्न सोशल मीडिया के विभिन्न पोर्टलों पर प्रकाशित होती रही हैं। साहित्य कुँज , अनुभव पत्रिका, दा रायटर, प्रतिलिपि, मातृभाषा, हिंदी लेखक डॉट कॉम आदि पर रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मोम्स्प्रेस्सो के लिए ब्लॉग भी लिखती रही हूँ। हाल ही में पहली बार मेरी रचनाएँ “जिंदगी :कभी धूप कभी छांव”  नामक साझा कविता-कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई हैं। यही संक्षिप्त सा परिचय है मेरा।

2. आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?
लेखन यूँ तो विद्यार्थी जीवन में ही आरंभ हो गया था। उन दिनों भी दो चार कविताएं एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं। मैं तब शायद नवीं कक्षा में थी। उसके बाद बस डायरी में लिखना जारी रहा। विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों और नौकरी के चलते समयाभाव रहा और लेखन लगभग बन्द ही हो गया। जब मैं 14 वर्ष की थी तब मेरी दो कविताएँ एक पत्रिका में छपी थीं जिसका अब नाम भी याद नहीं है। तब न जाने कितनी कविताएँ लिखीं लेकिन संग्रह नहीं किया । लिख तो तभी से रही हूँ लेकिन प्रकाशन के लिये कहीं भेजीं नहीं कभी।

3. आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
जब कलम के मन में जो भी आ जाए वही लिखती है वह । कहानी , कविता , लेख , संस्मरण , नाटिका , समीक्षा सभी कुछ लिखती हूं।


4. आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज़ से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं ?
अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक-लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कवितायें लिखते हैं I क्या आपकी रचनाएँ भी आपके जीवन का प्रतिबिम्ब हैं ?
मेरी कविता आसपास के माहौल से अथवा घटनाओं के प्रभाव से ही प्रस्फुटित होती है । जब मन अधिक खिन्न या प्रसन्न होता है या यूँ कहें कि भावनाओं का अतिरेक ही कविता को जन्म देता है। जी लेखक भी समाज का अंग है और समाज में घटित घटनाएँ उसे प्रभावित करती ही हैं। कहानियाँ समाज से ही निकलती हैं अधिकतर । कभी व्यक्तिगत अनुभव पर भी आधारित होती हैं और कभी देखी सुनी घटनाओं से प्रेरित। कभी इतिहास की घटनाएँ भी कहानी या कविता का आधार बन जाती हैं।

5. आजकल फेसबुक आदि मंचों पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहीं हैं I क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए?
बात सही है कि आजकल सोशल मीडिया के रूप में एक सुलभ मंच सभी के लिये उपलब्ध है। मैं मानती हूं कि बहुत से लेखकों को ख्याति प्राप्त हुई है इसके माध्यम से जो कि पहले इतना सरल नहीं था। अब पुस्तक के रूप में अपनी रचनाओं के प्रकाशन के अवसर भी इसी मंच के माध्यम से बहुत सुलभ हो गए हैं। पहचान बनाने और स्वयं को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए आंशिक रूप से मददगार अवश्य है यह माध्यम।

6. आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे – सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों?

मैं निश्चय ही हार्ड कॉपी के रूप में अधिक पसंद करूँगी क्योंकि उसकी उम्र और महत्व दोनों ही अधिक हैं।


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि?
आज के समय में पैसे के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यश की भूख भी बढ़ ही रही है लेकिन सच कहूँ तो मैं दोनों में से किसी के लिये नहीं लिखती केवल आत्मसन्तुष्टि ही मेरे लिए बड़ी चीज़ है। समाज में यदि एक व्यक्ति के विचारों में भी मेरे लेखन से कोई सकारात्मक परिवर्तन आ जाए तो लेखन सफल हो जाएगा ।

  8. एक लेखक के लिए क्या ज़रूरी है – उसके अन्दर का कलाकार, उसकी शैक्षिक योग्यताएं, या फिर  कुछ और ?
एक लेखक के लिए उसकी भावनाएँ और उसके विचार सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। उसके भीतर का कलाकार ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिसके माध्यम से वह समाज को अपने विचार संप्रेषित करता है

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
इरादा करके अभी तक तो कुछ लिखा नहीं कभी । हां परिस्थितियाँ जो भी लिखने की प्रेरणा देंगी, वह अवश्य लिखूंगी।  उपन्यास लिखने की इच्छा है। कोशिश ज़रूर करूंगी।

10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है, जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
नए लेखकों से केवल यही कहना चाहूँगी कि कलम की शक्ति का महत्व समझें और वही लिखने का प्रयास करें जिससे समाज को एक दिशा मिल सके, एक सकारामक परिवर्तन की दिशा ।

                                                                             ****


Friday, November 23, 2018

Review : Four Stories Of Love Hope and Desire By Mahesh Sowani

Introduction:

This is a collection of four stories written by Mahesh Sowani. The format of the book is Kindle and it's available on Amazon.in for Rs. 49/- only. Stories have been selected from incidents happening around us in daily life and narrated in an interesting manner.

The Stories:

The very first story, Incomplete Lives, revolves around the life of a boy Kunal who's depressed because of his impending divorce with his wife. Despite it he's a bit upset with the hussle bussle of his official work also. His friend, Bhavna, who had been one year senior to him in college, now working abroad comes to meet him. What transpires between them and how she takes him out of that situation is the gist of the story and one must read such stories to know the importance of trivial things in our lives. Bhavna says to him, "We are not Gods, neither are all things in our control." Again she says,"Life is like a river....ever changing..." Beautiful!

The second story, Two Women, takes you to the lives of a labour class man Vishnu, his wife Meena and his paramour Lakshmi. The writer has very smoothly sailed through the intricacies of this triangular relationship. The story takes a sudden turn when Vishnu dies due to heavy drinking leaving the deed of a plot he bought for Lakshmi. Meena too stakes her claim over the plot. How the tussle between them is solved, just read the story. the climax is surprising - not easy to believe.

The third story, The Only Alternative, too is taken directly from lower class family. I found this story very different, very intense and baring the ugly games people play ignoring and even disrespecting the dignity of mutual relations that they can go to any extent to fulfill their sex drive. This shows the other side of the coin called society. A must read.

The last story entitled as Some Stories takes you to the lives of  retired persons who pass their time by forming a senior citizens club comprising men and women both. They communicate and share jokes with each other. Apart from it they want to make their club a different one. One of them Lily suggests about telling stories which everyone has deep in their hearts buried since years. And the drama begins...and a few interesting and intriguing stories tumble out from their personal diaries. A unique story indeed!


My Take :

In my view, Mahesh Sowani  has successfully carved out beautiful stories out of day-to-day life. The stories are inspiring, and the characters are having  love, hope, sympathy, mutual respect and concerned for each other. The language is simple, smooth like a fluid and easily graspable for one and all. The subject matter of the stories is also relatable for all age groups, genders and classes.
There're areas of improvement which demand attention. The first one is the manuscript needs re-editing as there're a few typos and grammatical errors. It can be done easily as this is Kindle edition and can be replaced instantly. The other is its title. Of course these four stories depict love, hope and desire, the book needs a compelling title.

I see a big potential in the writer and expect more books from his desk and congratulate him for penning these wonderful stories.

All the best!!

Rajeev Pundir
23/11/2018

Tuesday, October 16, 2018

साक्षात्कार : गरिमा मिश्र 'तोष'

एक नवोदित लेखिका और गायिका से आज शाम की गयी एक विशिष्ट मुलाक़ात :

गरिमा जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दें।
मेरा नाम गरिमा मिश्र है और मैं 'तोष' उपनाम से पहचाना जाना पसंद करती हूँ।
मैंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम फिल किया है और क्यूंकी मेरी रुचि संगीत में भी बहुत है इसलिए गायन में संगीत विशारद भी किया । आजकल एक एन जी ओ जुड़कर सामाजिक कार्य भी कर रही हूँ।


आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया?
जी, चूंकि बचपन से घर का वातावरण लेखन पाठन का देखा, मां और नानाजी सिद्धहस्त लेखक और रचनाकार  पास रहे ...उनकी प्रेरणा से लिखना शुरू किया मेरी पहली कविता 'ऐ धरा' स्कूल के वार्षिक अंक में छपी और सराही गई,फिर तेरह वर्ष की वयस से जो लेखन साधना आरंभ की वह सतत अबाध गति से जारी है आज भी।

आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी या कविता आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
मेरे लिये कविता बारिश की बूंदों सी है अचानक घुमड़ कर बरस जाती है। कहानी भवसागर का अथाह नीर संग्रह ...अतः जब कुछ आत्मिक कहना होता है तो शब्दों को कविता मिल जाती है और जब कुछ सघन कहना होता है तो कहानी आकार ले लेती है...मुझे दोनों ही माध्यम प्रिय है ।

आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं?
मेरा मानना है कि हम रचनाकार भावुक और संवेदनशील होते हैं।  स्वयं के और आस पास के वातावरण से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते...तो आप कह सकते हैं कि मेरी रचनाएं दैनिंदिन घटनाओं का प्रतिबिंब ही होती हैं ।

अधिकतर देखने में आया है सभी लेखक लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने खुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं ,क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिबिंब  हैं?
हम्म्जी... बहुत बढिया प्रश्न है..जैसा कि मैने पूर्व में कहा है किसी भी रचनाकार का जब तक यथार्थ से भावानुबंध नहीं होता तब तक ...सार्थक रचना को व्यक्त करना उसके वश की बात नहीं होती। फिर वो चाहे स्वयं की भोगी कोई भी अवस्था हो या किसी अपने कि या किसी अपरिचित की सुखद दुखद स्मृति..अतः मेरी रचनाएं भी उन्हीं अनुभवों को आधार बना कर पाठकों से मिलती हैं और विभिन्न सामाजिक मानसिक अवगु्ंठनों को सहजता से खोल देती हैं।



आजकल फेस बुक आदि मंचों पर अधिक लेखक और लेखिकाएं देखनेको मिल रहीं हैं क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं, अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिये?
जी किसी हद तक यह मंच सरल माध्यम होता है कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचने का..परंतु सुरक्षित तो कतई नहीं  है..यहां बहुधा अपनी रचनाओं का चोरी होने का अंदेशा होता है...और वैसे भी पुस्तक का अपना अलग स्थान है जिसको एसे मंच विस्थापित नहीं  कर सकते हैं।

आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे- सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों ?

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं और शायद हंसते भी हैं कि इस तकनीकी युग में तुम पुराने पड़ते पन्ने और धूसर पड़ती स्याही को क्यों सहेजा करती हो और मेरा जवाब वही होता है मैं शब्दों को भावनाओं की अंजुली से समेटती हूं और किताबों के पन्नों में बिखेर देती हूं ताकि जो पढे वह खुद को उन पन्नों  की नई सी खुशबू से लिपटा पाए और कहीं अपनी यादों को पढे हुए खुद के मोड़े हुए पन्नों में पा जाए..या कहीं किसी सफ्हे पर दबे सूखे फूल सा मुस्कुराए..माने मैं अपनी कृति को हार्ड काॅपी में देखना ज्यादा पसंद करूंगी ।

आपके जीवन में पैसा अधिक मह्त्वपू्र्ण है या प्रसिद्धि?

पेचीदा प्रश्न है..मेरे लिये दोनों ही महत्पूर्ण नहीं  है लेखन स्वांतः सुखाय बहुजन हिताय ही है...पर हां तत्कालीन परिस्थितियों में अर्थ के साथ साथ प्रसिद्धी की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता ।

एक लेखक के लिये क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार उसकी शैक्षणिक योग्यता या फिर कुछ और?
मेरे अनुभव और भावविचार से रचनाशीलता किसी भी व्यक्ति की संवेदनशीलता, प्रबोधिता, संश्लेतात्मकता, विचारशीलता, सहजता सरलता ही तय करती है..एक सच्चे रचनाकार को शिक्षा का परिमार्जन न भी मिले तो भी उसका मात्र सहज और सरल होना ही उसको और उसकी कृति को उत्कृष्ट और अनूठा कर जाता है।

आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
लेखन तो जारी है..दो उपन्यास तैयार हैं..और एक अंतर्राषट्रीय व्यक्तित्व पर बायोग्राफी का कम चल रहा है..जल्द ही आप सब के सामने आएंगे।

नए उभरते कवियों और लेखकों के लिये आपका क्या संदेश है जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
जी जरुर, मेरा यही संदेश है कि साहित्य वही कहाता है जो हितार्थी हो..चार पंक्तियों से अपनी बात पर विराम दूंगी:
ऐ कलमगर रख इतना जमाल अपने हुनर पर
कि पुश्त दर पुश्त संवर जाए
पढ़े जो तिरा लिखा, फरिश्ते क्या शैतान भी इल्मे नजर पाए ।
आप सब को नवरात्रि और दशहरे की अग्रिम अशेष शुभकामनाएं।


Saturday, July 28, 2018

समीक्षा : "अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" लेखिका विजयश्री तनवीर

प्रस्तावना :

लेखिका विजयश्री तनवीर का पहला कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' जो अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है, मैंने पढ़ा और जो कुछ भी मैं इस संग्रह से ग्रहण कर पाया हूँ, आप सब के सामने प्रस्तुत करता हूँ । इसे प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म प्रकाशन ने । कुल 120 पन्नों की ये किताब अपनी नौ कहानियों में कई रोचक किरदार, कई राज़ और बहुत सी भाव - भंगिमाएं समाये हुए है जिन्हें पढ़ते हुए आप ख़ुद भाव -विभोर हो उठेंगे ।

कहानियां :
पहली कहानी 'पहले प्यार की दूसरी पारी' एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने पहले प्यार से आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिलता है और जो बातें उन दोनों के बीच होती हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि उन दोनों ने ही अपनी-अपनी स्थिति को स्वीकार तो कर लिया है मगर कहीं-न-कहीं उस प्यार की कसक बाक़ी तो है - जब औरत कहती है, "मैं तो तुम्हारी मजबूरियों और प्राथमिकताओं को याद करती हूँ ।" क्या उसने ये बात अपनी ख़ुशी से कही थी या ये एक व्यंग था, पढ़ने पर मालूम हो जाएगा ।
दूसरी कहानी 'भेड़िया' एक आदमी के अपराधबोध पर आधारित है जो उसके मन में इस क़दर समा गया है कि उसे हर तरफ़ एक खूंखार भेड़िया दिखाई देता है जो उसे खा जाने पर उतारू है । "मौत वो सबसे बुरी चीज़ नहीं जो हमारे साथ हो सकती है, बिना मौत भी हम कई बार मरते हैं ।" ये वाक्य कहानी की धुरी है ।
अब आपकी मुलाक़ात होती है अनुपमा से जिसके किरदार की तर्ज़ पर इस संग्रह और तीसरी कहानी का नाम  'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' रखा गया है । ये कहानी  एक औरत को एक व्यक्ति के नैसर्गिक रूप में प्रस्तुत करती है । अपनी कमसिन उम्र से लेकर अब तक उसके मन में कितने लोगों ने प्रेम की चिंगारी लगाई, इसको उसी के माध्यम से लेखिका ने उघाड़ कर आपके सामने रख दिया है । लोकल ट्रेन में यात्रा के माध्यम से उसके जीवन में कितने संघर्ष और कष्ट हैं उनसे भी रु-ब-रु होते हुए आप कहानी के अंत तक की रोमांचक यात्रा करते हैं । "कैसे अचानक ही हमारे प्रेम का विस्थापन किसी दूसरे पर हो जाता है," यही इस गुदगुदाने वाली कहानी का केंद्र बिंदु और फलसफ़ा है ।
अगली कहानी सुकेश प्रधान और शैफाली की है - 'समंदर से लौटती नदी' सुकेश एक आर्टिस्ट है और शैफाली उसकी फैन जो उसकी पड़ोसन के रूप में उसके जीवन में जबरन घुस आती है और फिर हालत उनको वो सबकुछ करने का मौका देते हैं जो 'शायद' नहीं होने चाहिए । ये एक ऐसी कहानी है जो क़दम क़दम पर आपको सावधान भी करती है क्योंकि जो सुकेश के साथ हुआ वो किसी भी पुरुष के साथ कभी भी हो सकता है । "सचमुच उन्हें शैफाली चाहिए थी । उनके कैनवास को, उनके कलाकार मन को, उनके अंदर के चिर अतृप्त पुरुष  को ।" क्या पुरुष वाकई अतृप्त होते हैं ? क्या किसी की आसक्ति को प्रेम कह सकते हैं ? इन सवालों के उत्तर ढूंढती एक कहानी I
आइये पांचवीं कहानी में चलते हैं । कहानी का नाम है 'एक उदास शाम के अंत में' । किस प्रकार से एक औरत अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक व्यक्ति की भावनाओं से खेलती है, इस कहानी में लेखिका ने बखूबी दर्शाया है । "मिरेकल्स हैपन धीर, आई गाट द वर्ल्ड !" क्या था वो 'वर्ल्ड' ये जानने के लिए पढ़िए इस किस्से  को जो आपको भी उदासी से भर देगा ।
आगे मेरी मुलाक़ात हुई एक 'खिड़की' से जो अपने में कई सारे राज़ समेटे हुए है जिनको जानने के लिए अँधेरी घुप्प रात में आपको इस खिड़की पर खड़े रह कर कुछ देर तक अपना समय ज़ाया करना होगा । जैसे जैसे राज़ खुलते जायेंगे वैसे वैसे आपके मन में एक अनचाहा डर घर करता जाएगा । हमारे समाज में लुका छिपी चलने वाले खेल आपको सोचने पर मज़बूर कर देंगे । "फोर्टी क्रॉस्ड, डेडली अमेजिंग I" जब आपकी बीस साल की लड़की ये कहे तो आप भी चौंक पड़ते हैं । रियली अमेजिंग स्टोरी !
"ये वाहियात औरतें जाने कैसे किसी भी खाँचें में अपने -आपको फिट कर लेतीं हैं ।" आखिर वो ऐसा सोचने पर क्यूँ मजबूर हुई ? क्या हुआ था उसकी ज़िन्दगी में कि औरतों से उसे एक प्रकार की चिढ़ होने लगी थी । क्यों उसको अपने पति से कहना पड़ा - "मैं आपकी कहानी का कोई किरदार नहीं !" एक व्यक्ति के व्यक्तित्व (शायद दोहरे) को खंगालती ये एक अदभुत कहानी है - "खजुराहो" ।
पन्ना पलटते ही आपकी मुलाक़ात एक डॉक्टर की क्लिनिक पर बैठी दो औरतों से होती है जिनके वार्तालाप में आप भी दिलचस्पी लेने लगते हैं जब पहले वाली दूसरी से कहती है - "भरोसा करना अच्छा है, न करना और भी अच्छा ।" किसी को अथाह प्रेम करने के बावजूद भी हम क्यूँ किसी पर भरोसा नहीं कर पाते और कुछ तो है कि हमें अपने फैसले ही नहीं अपने रिश्ते भी बदलने पड़ते हैं - ये कहानी 'चिड़िया उड़' आपको सोचने पर मजबूर कर देगी ।
आगे के कुछ पन्ने 'विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ' में कुछ खट्टी कुछ मीठी लघु कहानियों  को समेटे हुए हैं, जिनमें से कुछ निहायत ही सुंदर बन पड़ी हैं । आप महसूस कर सकते हैं उस खूबसूरत अहसास को जब एक लड़का अपनी प्रेमिका से कहता है कि अगले जन्म में वो उसका बेटा बनना चाहेगा । मेरे ख्याल से इससे बेहतरीन ख्याल नहीं हो सकता !


समीक्षा :
एक समीक्षक के लिए इससे मुश्किल कोई काम नहीं कि किसी लेखक के लिखे हुए पर कोई टिपण्णी करे । बचपन से ही मैं कहानियां पढ़ता आया हूँ, और तभी से आदमी और औरत के बीच के सम्बन्ध मेरे लिए आकर्षण का विषय रहे हैं । शायद पुरुष के लिए एक स्त्री और एक स्त्री के लिए पुरुष एक सनातन रहस्य है जिसको खोजते खोजते लेखिका विजयश्री तनवीर भी 'अनुपमा गांगुली के चौथे प्यार' तक पहुँच गयी हैं । और इस खोज भरी  यात्रा में जो कुछ मिला उसे अपनी कहानियों में समेट कर आपके सामने एक संग्रह के रूप में प्रस्तुत कर दिया है ।
मित्रों, इस किताब में कुछ ख़ास है वो ये कि जो दूसरी किताबों नहीं मिलेगा और वो है कहानी लिखने का अनोखा अंदाज़ । कहानी लिखने की दो प्रमुख विधाएं हैं । एक है प्रत्यक्ष - जिसमें किरदार सीधे संवाद करते हैं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं । दूसरा है अप्रत्यक्ष - इसमें कोई एक किरदार अपने को तीसरे व्यक्ति के रूप में ढाल कर अपनी ही ज़िन्दगी में होने वाली उथल-पुथल, उसमें आने वाले लोग और उन लोगों ने कैसे उसके जीवन को प्रभावित किया इसकी विवेचना करता है । इस पूरी प्रक्रिया में उसके  मन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है जो उसकी विवेचना के धरातल का काम करता है। इसीलिए लेखिका ने इन कहानियों को मन की कहानियां कहा है ।

ये कहानियाँ आदमी और औरत के प्राकृतिक भाव, संवेदनाएं, गुण और दोष जैसे प्रेम, आकर्षण, आसक्ति, स्वार्थ, तृप्ति, अतृप्ति, शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएं आदि पर केन्द्रित हैं जिनका सही और गलत होने का अनुमान और अंतिम निर्णय करने की ज़िम्मेदारी को पाठक के ऊपर छोड़ दिया गया है । इन कहानियों में लेखिका ने पुरुष और स्त्री दोनों को सामान रूप से कटघरे में खड़ा कर दिया है - किसी एक कहानी में अगर पुरुष स्वार्थी दिखाई पड़ता है तो दूसरी कहानी में स्त्री । प्रेम का आवरण ओढ़कर कहीं अगर पुरुष अपनी हवस को तृप्त करता है, तो अगली कहानी में स्त्री भी वही सबकुछ करती दिखाई पड़ती है । इस प्रकार निष्पक्ष रूप से किरदारों को गढ़ने के लिए मैं लेखिका को बधाई देता हूँ क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुरुषों को कामी , कठोर, भाव शून्य और स्वार्थी माना जाता है जबकि स्त्री अभी भी अबला ही है । हांलांकि ऐसा बिलकुल नहीं है, ज़माना बदल चुका है  - स्त्री भी उतनी ही कामी, कठोर और स्वार्थी हो चली है जितना के पुरुष । इन सब चीज़ों को लेखिका ने अपनी कहानियों और किरदारों के माध्यम से बखूबी अपनी लच्छेदार भाषा में आपके सामने पेश कर दिया है I

हिचकियाँ :

इस कहानी संग्रह की तमाम कहानियां स्त्री और पुरुष के विवाहेतर संबंधों के इर्दगिर्द घूमती हैं । एक ही विषय पर लिखी गयी और एक ही संग्रह में पिरोहित कहानियां कहीं न कहीं एकरसता उत्पन्न करती हैं और पाठक, जो हर कहानी में कुछ नया ढूँढता है, उसको निराश कर सकती हैं । मेरे हिसाब से एक कहानी संग्रह में भिन्न भिन्न विषयों पर कहानी का चयन होना चाहिए क्योंकि एक ही  विषय के ऊपर सिर्फ कहानी की रूपरेखा बदल जाने से कहानियों में नयापन उस हिसाब से नहीं आता जो एक पाठक चाहता है । दूसरे, आदमी और औरत के कुछ अन्तरंग क्षणों को लिखते हुए भाषा और शब्दों का चयन कुछ ऐसा हो गया है जिसे कुछ लोग अश्लील की श्रेणी में रख सकते हैं । मेरे विचार से इस पर नियंत्रण किया जा सकता था ।

पुन:अवलोकन :

निष्पक्ष भाव से अगर कहूँ तो लेखिका विजयश्री  तनवीर के अंदर चरित्रों के मन के भीतर घुस कर उनके भावों और संवेदनाओं को बाहर लाने की और अपनी लेखनी से कागज़ पर उतारने की ग़ज़ब की प्रतिभा है । वो एक विशिष्ट भाषा शैली और अप्रत्यक्ष लेखन की मल्लिका हैं । उनकी इस प्रतिभा को देखकर मैं कह सकता हूँ कि वो वर्तमान की नहीं वरन भविष्य की लेखिका हैं । मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ । ये कहानी संग्रह उनकी साहित्यिक यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा और उनकी आगे यात्रा, जो बहुत लम्बी है, उसको सुगम बनाएगा । उसके लिए शुभकामनाएं ।

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर
29 July 2018










Wednesday, July 25, 2018

समीक्षा - छंटते हुए चावल - कहानी संग्रह - लेखिका नीतू सुदीप्ति 'नित्या'


प्रस्तावना :
ये कहानी संग्रह मुझे नीतू जी ने पी डी एफ के रूप में मेल से भेजा है। इसको प्रकाशित किया है शब्द प्रकाशन ने । जिस प्रकार से लेखिका ने लिखा है कि लेखन उनके जीने का साधन है, उसी प्रकार से किसी भी किताब को, विषेशरूप से कहानी संग्रह को पढ़ना मेरा भी जीने का एक साधन है। जो कुछ भी इस कहानी संग्रह से मैं ग्रहण कर पाया हूँ आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ।

कहानियाँ : 
पहली कहानी 'छँटते हुए चावल' ही है जो इस संग्रह का शीर्षक भी है। मेरे लिए ये एक नया मुहावरा ही है जिसका सही अर्थ मुझे कहानी पढ़ने के बाद ही ज्ञात हुआ। किसी व्यक्ति के बारे में बिना ठीक से जाने ही लोग क्या-क्या बोलने लगते हैं ये कहानी का सार है। इस कहानी कि एक पंक्ति ने मुस्कुराने के लिए मजबूर कर दिया - "रोटियाँ सिकतीं गईं और दिमाग़ पकता गया।" दूसरी कहानी 'खोईंछा' भी कुछ कुछ वैसे ही विषय पर आधारित है जिसमें एक स्त्री को बिना उसका पक्ष जाने ही उसकी अपनी बेटी की मृत्यु का दोषी मान लिया जाता है। धीरे-धीरे जब सच की परतें खुलती हैं तो पाठक भी हतप्रभ हो जाता है। कहानी कई मोड़ों से गुजरते हुए समाप्त होती है जो कहानी को काफ़ी दिलचस्प और पठनीय बनाते हैं। तीसरी कहानी 'शीतल छांव' आपकी मुलाक़ात ईशिता और नरेन से होती है जिनकी ज़िंदगी में लाखों ग़म हैं। समाज के कुछ महा स्वार्थी नियम किस प्रकार एक लड़की के जीवन से खेलते हैं, पढ़ने योग्य हैं जो अंत मे आपकी आँखों को नम कर जाती है। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एक काम वाली बिमली से जो कहती है, "का करूँ दीदी, हमार छत तो हमार मरद ही है न। तुम्हारे समाज में औरत लोग जल्दी ही तलाक ले लेती हैं, पर हम गरीब औरत पति के लात-जूता खाके बस सहती हैं,” फिर क्या हुआ ? ये सोचने का विषय है। थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक बलात्कार का शिकार हुई लड़की से लेखिका आपको काला अध्याय में रु-ब-रु करवाती है और उसकी मन:स्तिथि, जो खंडित हो चुकी है, उसको अपनी शादी के समय कुछ ऐसा करने पर मज़बूर कर देती है जिसको पढ़कर आप भी चकित हुए बिना न रह सकेंगे। हम बोझ नहीं एक प्रेरणादायक कथा है जो हर हाल में जीवन जीने और संघर्ष करने के लिए कहती है। अब आती है एक कहानी डे नाइट। क्या क्या नहीं बीता होगा उस लड़की के ऊपर जब उसे उस परिवार की असलीयत पता लग जाती है जिसमें वो ब्याह कर आई है और ऊपर से ये सुनने को मिले कि शादी में थोड़ा बहुत झूठ तो चलता ही है। आस भरा इंतज़ार एक ग़रीब मज़दूर परिवार की कहानी है जहां एक स्त्री कितना मज़बूर हो जाती है कि वो नए साल पर अपने बच्चों को खीर तक नहीं खिला सकती, पढ़कर आपकी आँखें भी भीग जाएंगी। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एंद्री से जिसके व्यक्तित्व को जानकर आपको अच्छा लगेगा कि इस खुल गयी आँखें नामक कहानी का ये नाम क्यूँ रखा गया है। माफ़ करना एक ऐसी कहानी है जिसे पढ़कर आपको थोड़ा नायक के प्रति और फिर नायिका के प्रति क्रोध ज़रूर आएगा। लेकिन जैसे जैसे कहानी की परतें उघड़ती हैं आपको दोनों के प्रति सहानुभूति होने लगती है। जब आगे आप एक कथा ऐसी भी में प्रवेश करते हैं तो उदासी शुरू से ही आपके ऊपर हावी हो जाती है मगर धीरे धीरे लेखिका जब कहानी को बढ़ाती है, आपको अच्छा लगने लगता है। ये एक लड़की के दर्द भरे जीवन की बेहतरीन कहानी है। माँ न बन पाने का दर्द क्या होता है ये पढ़ें रिश्तों का ताना बाना में – और कैसे इस स्थिति से निबटा गया सिर्फ़ एक आदमी की सूझ-बूझ से। काम मुश्किल था मगर रास्ते मिलते गए और सब ठीक हो गया। कभी-कभी हम सब ऐसी विकट स्थिति में पड़ जाते हैं कि कोई रास्ता नहीं मिलता और गांधी जी के बंदर की तरह आँखें बंद करनी पड़तीं हैं – पढ़ें ये दिलचस्प कहानी – बंद आँखों का बंदर। आगे आती है एक ऐसी कहानी जिसका नाम है –चीर हरण जिसमें एक लड़की और उसकी माँ को अपने मासिक धर्म से निबटने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है विशेषकर जब ख़ुद उनके परिवार के लोग ही उनकी परेशानी को समझने को तैयार न हों। बढ़िया प्रस्तुति है।
उनके दूसरे कहानी संग्रह हमसफ़र में भी इसी प्रकार की कहानियाँ हैं कुछ छोटी तो कुछ बड़ी जो पढ़ने पर आपको अच्छी लगेगीं।


समीक्षा :

इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ निम्न या फिर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियाँ हैं जो ग्रामीण अंचल से ली गयी हैं। कहानियों के मुख्य विषय समाज में फैली विषमताएं, रूढ़ीवाद, अशिक्षा, प्रेम, विवाहेतर संबंध इत्यादि को बहुत सीधे, सादे, और सटीक तरीके से लेखिका ने समझाने की पुरजोर कोशिश की है जिसमें वो सफल भी रही हैं। कहानियों कि भाषा साधारण परंतु सुंदर है और प्रवाह एक नदी कि तरह है जो कलकल करते हुए अपने गंतव्य की तरफ़ अविरल बढ़ती है और आप उसके किनारे बैठकर आराम से अपने पाँव उसमें डालकर उस प्रवाह का आनंद ले सकते हैं। मित्रों, ऐसी कहानियाँ वो ही लिख सकता है जिसने उस तरह के जीवन को न सिर्फ़ जिया हो बल्कि घूंट-घूंट पिया भी हो। लेखिका के बारे में पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ कि उनके दिल में जन्म से ही विकृति है और वो अक्सर बीमार रहती हैं। पारिवारिक और शारीरिक कारणों से उनकी शिक्षा भी अधिक नहीं हो पायी, निम्न मध्यवर्गीय परिवार से हैं, फिर भी समाज में होने वाले क्रिया कलापों के प्रति इतनी सजग हैं और अपने अनुभवों को अपनी कलम से कहानियों मे उतार देने की गज़ब की प्रतिभा है उनमें। मैं सुदीप्ति नित्या के इस ज़ज़्बे को सलाम भेजता हूँ।
इनके जीवन पर कवि दुष्यंत जी का ये शेर बिलकुल सही बैठता है –
कौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो ज़रा तबीयत से उछालो यारों।
लेखिका के जीवन के संदर्भ में मैं इस शेर को कुछ इस प्रकार से कहना चाहूँगा –
कौन कहता है दिल में छेद हो नहीं सकता, एक शब्द तो तबीयत से उछालो यारों।
मेरा अनुमान है कि नीतू जी ने जब वो माँ के पेट में थीं तभी से शब्दों के साथ खेलना शुरू कर दिया था और कोई शब्द इतनी ज़ोर से उछाला कि वो बाहर आने की बजाए अंतर्मुखी हो गया और उसने इनके दिल में छेद कर दिया।

हिचकियाँ :

किताब में कोई ख़ास कमी देखने को नहीं मिली। चरित्र निर्माण बढ़िया है मगर भाषा को अभी और परिष्कृत करने कि आवश्यकता है ताकि वो साधारण से थोड़ा असाधारण की तरफ़ अग्रसित हो सके।

पुन: अवलोकन :

हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं, विषमताओं, और कुंठाओं को परत – दर – परत उघाड़ती ये साधारण भाषा में कही गयी आपकी, मेरी, हम सबकी कहानियाँ हैं। मैं चाहता हूँ कि अधिक से अधिक पाठक इन्हें पढ़ें और लेखिका नीतू सुदीप्ति का हौसला भी बढ़ाएँ। मैं एक चिकित्सक भी हूँ और जानता हूँ कि किसी के दिल में छेद होना कितना घातक है। मेरी शुभकामनायें नीतू जी के साथ हैं और मैं हृदय से कामना करता हूँ कि वो अपने उपनाम नित्या को चरितार्थ करते हुए दीर्घायु हों, खूब लिखें और धारदार लिखें। मुझे उनकी आने वाली सभी कृतियों का इंतज़ार रहेगा और पढ़ना भी चाहूँगा।

राजीव पुंडीर
25 जुलाई 2018

Tuesday, July 17, 2018

ऐसी वैसी औरत - कहानी संग्रह - लेखिका अंकिता जैन - एक समीक्षा

प्रस्तावना :
फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहाँ अधिकतर कूड़ा और कबाड़ ही भरा रहता है I मगर कभी कभी किस्मत से उस कबाड़ के ठीक बीच से हमें कुछ बेशकीमती मोती भी चुनने को मिल जाते हैं I ऐसा ही एक मोती मुझे मिला फुन्नु सिंह की पोस्ट से जिसका नाम है - ऐसी वैसी औरत I ये एक कहानी संग्रह है जिसको लिखा है अंकिता जैन ने और प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म ने I आप इस कहानी संग्रह को पढ़कर हिंदी की बेहतरीन कहानियों का आनंद ले सकते हैं बशर्ते आप कुछ सम्वेदनशील हों और कुछ मानसिक आघात सहने को तैयार हों I

कहानियाँ :
इस कहानी संग्रह में कुल दस कहानियां हैं जो बहुत ही शानदार भाषा में लिखी गयी हैं I कहानियों के मुख्य पात्र  स्त्रियाँ हैं जो समाज के भिन्न भिन्न वर्गों से आती हैं I शरू में आपकी मुलाक़ात मालिन भौजी से होती है जो एक ग़रीब तबके से है और परितक्यता होने के बावज़ूद एक जुझारू, बिंदास और रंगीन प्रवृति की है I दूसरी औरत रज्जो फिर से एक परितक्यता है मगर भीरु है जिसे अपने प्रेम को त्याग कर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है मगर जब उसका पति उसको छोड़ देता है तो वो घर लौट आती है अपने भाइयों के पास I आगे कुछ प्रत्याशित और कुछ अप्रत्याशित घटता है जो पढ़ने लायक है I आगे आपकी मुलाक़ात समाज में फैली वैश्यावृत्ति और उसके तानेबाने को खोलती बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी से होती है I अगली कहानी में लेखिका ने एक लेस्बियन (सम लैंगिक) लड़की के दर्द को रेखांकित किया है जिसका अहसास आपको भी हो जायेगा I जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं आपको मिलती है मीरा जो बहुत ग़रीब है, जिसका पति एक शराबी है और घरों में काम करती है I उसकी बेलौस मुस्कुराहट के पीछे उसके दर्द छटपटा रहे हैं बाहर निकलने को, जिन्हें वो हरदम दबाये रहती है और एक दिन ऐसा कुछ घटता है जो आप सोच भी सकते हैं और नहीं भी I अब एक ऐसी लड़की का प्रवेश होता है जो झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली है मगर उसकी आँखों में आसमान में उड़ने की ललक है, झिलमिलाते सितारे हैं और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने के सपने हैं I उसकी शादी भी उसके प्रेमी से होती है I मगर नियति उसे कहीं और ही ले जाती है I आगे आप ऐसी स्त्री से रूबरू होते हैं जो अपर मिडिल क्लास से है नाम है काकू I अकेली रहती हैं मगर सब कुछ होते हुए भी उनके पास कुछ नहीं है, सिर्फ़ ग़मों के सिवाए I अगली कहानी एक अपाहिज लड़की ज़ुबीं की है जिसकी 'सम्पूर्ण स्त्री' होने की इच्छा उससे वो करवा देती है जिसकी कल्पना सिर्फ़ लेखक ही कर सकता है - हांलांकि इस जीवन में यथार्थ और कल्पना में बहुत महीन रेखा है जो दिखाई भी देती है और नहीं भी I आगे आपको एक 'ऐसी' औरत की कहानी पढ़ने को मिलती है जिसको वास्तव में 'वैसी' औरत की श्रेणी में रखा जा सकता है I और अंतिम कहानी - भंवर - जो भाई बहन के रिश्तों एक ऐसे कोण से खंगालती है कि आप हतप्रभ हो जायेंगे I


समीक्षा :

क़रीब 28 साल पहले एक फिल्म आई थी "द बैंडिट क्वीन" जो मशहूर दस्यु सुंदरी फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी I जैसे ही फिल्म शुरू होती है, परदे पर फूलन अपने डाकू के वेश में अपनी बन्दूक कंधे पर लगाए प्रकट होती है और दर्शकों की तरफ देख कर बोलती है - बहनचोद ! उसकी आँखों में गुस्सा और नफ़रत का सैलाब है जो किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं वरन पूरे समाज के प्रति है - और ये गाली भी उसने पूरे समाज को दी है किसी एक को नहीं I गाली सुनते ही पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता है, लगता है किसी ने एकाएक ज़ोरदार तमाचा सबके मुंह पर जड़ दिया हो कि मेरी इस दुर्दशा के लिए आप सब लोग भी जिम्मेदार हैं !
अंकिता जैन भी कुछ इसी अंदाज़ में आपको इस किताब को पढ़ने से पहले सावधान कर देती हैं अपने "दो शब्दों" में - "इस किताब की कहानियों में जिन औरतों को मुख्य चरित्र में रखा गया है, वे ऐसे चरित्र हैं, जिन्हें समाज में गू समझा  जाता है I ऐसी गन्दगी समझा जाता है, जिस पर मिटटी डालकर उसे छुपा दिया जाता है  - तब तक के लिए जब तक कि उसे साफ़ करने वाला जमादार न आ जाए; और यदि नौबत ख़ुद साफ़ करने की आ जाए तो साफ़ करने वाले को रगड़-रगड़कर नहाना पड़े I"
अपनी बात को बिना लाग-लपेट के इस प्रकार बेबाक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए मैं अंकिता जी आपको बधाई देता हूँ क्योंकि ऐसा कहने की हिम्मत सबके पास नहीं है I

अब आते है मुख्य बिंदु पर I हम जिस समाज में और जिस जगह रहते हैं वहां हमारे चारों ओर जीवन से आती अलग- अलग रंगों की कहानियां और चरित्र बिखरे पड़े हैं I सत्व, रज और तम से ओतप्रोत ये प्रकृति हमारे सम्मुख क़रीब-क़रीब वही कहानियां और वही किरदार बार-बार प्रस्तुत करती रहती है और लेखक लेखिकाएं उन्हीं को अपनी लेखनी के रंग से अलग-अलग रूप देकर समाज के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं I उनके व्यक्तिगत विचार, भाषा शैली और प्रस्तुत करने का ढंग ही उनको कभी प्रेमचंद, कभी शिवानी, कभी कमलेश्वर, कभी मंटो और आजकल कभी रंजना प्रकाश और कभी अंकिता जैन बना देता है I इस कहानी संग्रह की विशेषता अंकिता जी का लेखन है जिसमें  उन्होंने यथोचित विशेषण और अलंकार प्रयोग किये हैं I जैसे जैसे पाठक पढ़ना शुरू करता है, उनकी सटीक भाषा शैली और कलम का जादू पाठक को अपनी गिरफ़्त में इस प्रकार जकड़ लेते हैं कि पाठक कब अंतिम पृष्ठ पर पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चलता I मुझे भी ऐसा ही हुआ I लेखन में इतनी कशिश आजकल कम ही देखने को मिलती है I इसके लिए भी मैं अंकिता जी को बधाई देना चाहूँगा I

हिचकियाँ :

ये भी एक कटु सत्य है की कोई भी लेखक आजतक अपने पाठकों को शत प्रतिशत संतुष्ट नहीं कर पाया है I एक लेखक की हैसियत से मैं तो बिलकुल नहीं I एक पाठक की हैसियत से मुझे ये कहानी संग्रह एक लाजवाब किताब लगी - बस दो बातों को छोड़कर I पहली कहानी में मालिन भौजी एक आठवीं पास औरत है और अधेड़ उम्र भी, यानी क़रीब क़रीब अनपढ़ I उसे कवितायें लिखने का शौक़ भी है I मगर जो कवितायें वह लिखती है उनका स्तर बहुत ऊँचा है और उसके शैक्षिक और बौद्धिक स्तर से मेल नहीं खाता I दूसरे अंतिम कहानी 'भंवर' में अपनी शादी के समय लड़की जो निर्णय लेती है वो बहुत देर के बाद लिया गया प्रतीत होता है जिसे वो पहले भी ले सकती थी और तर्कसंगत इसलिए भी नहीं है क्योंकि अपने कष्टों के लिए कहीं न कहीं वो ख़ुद भी जिम्मेदार है I
इस किताब का मुखपृष्ठ उतना आकर्षक नहीं है जितना होना चाहिए था I इसे और बेहतर बनाया जा सकता था I

पुन: अवलोकन  : 
ये कहानी संग्रह हर तरह से एक उम्दा लेखन का प्रमाण है I इसलिए इस किताब को हिंदी साहित्य की उच्च श्रेणी में रखा जाएगा और वर्षों तक इस किताब को पढ़ा जाएगा क्योंकि  इसकी अद्भुत लेखन शैली और इसके चरित्र पाठकों के दिमाग़ पर ही नहीं दिलों पर भी छाने की क्षमता रखते हैं I मैं अंकिता जैन जी को ऐसे ही लिखते रहने के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उनकी प्रगति की कामना करता हुए उनकी सभी किताबें पढ़ने की इच्छा रखता हूँ I

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर