Monday, May 28, 2018

डार्विन जस्टिस - उपन्यास लेखक प्रवीण कुमार

प्रस्तावना :

बिहार के इतिहास को, बुद्ध और महावीर के शांति सन्देशों के अलावा, सामाजिक संरचना में डार्विन जस्टिस की थ्योरी को भी समझना था। सामाजिक संरचना में सदियों से चला आ रहा असंतुलन, संतुलित होने के नाम पर रक्तरंजित होने जा रहा था। तैयारियाँ शुरू हो गर्इं। लोग दूर-दराज़ से आने लगे। जिन्हें अपने खेतों से झंडे उखड़वाने थे, वे मनचाहा योगदान देने को तैयार थे। अनय और चश्मिश की कहानी, काल के इसी कार्यक्रम का हिस्सा है; किसी इंसान के बहाने इंसानियत को कलंकित करना है। उसे कार्ल मार्क्स के अंदर डार्विन के सिद्धान्त को समझाना है। उसे समझाना है कि, न्यूटन का सिद्धान्त सिर्फ भौतिक विज्ञान की किताबों में ही नहीं है, बल्कि वह सामाजिक संरचना के अंदर भी घुसा हुआ है; उसे समझाना है कि, लिंकन के जिस प्रजातंत्र का हम दम्भ भरते हैं, वहाँ भी डार्विन की थ्योरी चुपचाप अपना काम करती रहती है।
उपरोक्त पृष्ठभूमि  में प्रवीण कुमार का ये उपन्यास आपके सामने प्रस्तुत है जिसे प्रकाशित किया है अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद उत्तर प्रदेश ने I

कहानी :

इस उपन्यास की कहानी के केंद्र बिंदु अनय और चश्मिश दो युवा हैं जो नवं कक्षा से ही एक दूसरे को चाहने लगते हैं I धीरे-धीरे उनकी ये कच्ची उम्र की चाहत एक दूसरे पर ऐसी हावी होती है कि परिपक्व होते होते वो एक दूसरे को बेइंतिहा प्रेम करने लगते हैं I मगर समाज के बंधन और सीमायें कुछ ऐसी परिस्थिति उत्पन्न करती हैं कि उन्हें आपस में मिलने नहीं देतीं और जब प्रकृति उनके मिलने का समय और स्थान निर्धारित करती है तो दोनों के साथ एक वीभत्स और गंभीर हादसा होता है I फलस्वरूप बिहार का वो इलाका एक गृहयुद्ध की चपेट में आ जाता है I क्या होता है और क्यूँ ये सब हुआ ये जानने के लिए पढ़िए एक बहुत खूबसूरत किताब - डार्विन जस्टिस जिसे लिखा है बहुत ही आकर्षक और दिल को छू लेने वाले अंदाज़ में लेखक प्रवीण कुमार ने I


विशेषताएं :

जब आप इस उपन्यास को पढ़ना शुरू करते हैं तो लेखक चुपके से आकर आपकी ऊँगली पकड़ लेता है क्योंकि उसे पता है कि बिना उसके मार्गदर्शन के आप इस अत्यंत साधारण सी दिखने वाली प्रेम कहानी को समझ नहीं सकते हैं I है न अज़ीब बात ! कहानी दो बच्चों के प्रेम और एक दूसरे के लिए आकर्षण की एक आम कहानी है जो कि आपको हर गली मोहल्ले में देखने को मिल जाती हैं और आगे भी मिलती रहेंगी I मगर उस समय बिहार राज्य में राजनीति ने जो उधम मचाया और उसका इन दो बच्चों की प्रेम कहानी पर क्या असर पड़ा वही इस कहानी की विशष्टता है जिसे लेखक ने अपनी कलम से बखूबी कुछ पन्नों पर उकेर दिया है I कहानी पढ़ते समय आपको लगता है कि आप किसी दुर्गम यात्रा पर निकल पड़े हैं, जहाँ चिलचिलाती धूप है, जंगली जानवरों का भय है और जैसे ही आप सहमने लगते हैं, लेखक आपको अनय और चश्मिश के पास ले जाकर बिठा देता है जहाँ प्यार की ठंडी हवा है, बारिश की सुकून देने वाली फुहारें हैं, चाँद है, शीतल चांदनी है, पेड़ों की ठंडी छाया है, कल-कल बहते झरने हैं और आप फिर से शांत हो जाते हैं और उन दोनों की प्रेम कहानी जो बेहद साधारण होते हुए भी असाधारण है उसमें खो जाते हैं I 
कहानी पढ़ते हुए आपको कभी लगता है कि इस कहानी के परिपेक्ष्य में लेखक आपको बिहार में नब्बे के दशक में हो रही सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक उथल-पुथल से रू-बरू करवाना चाहता है जिसे तत्कालीन प्रधान मंत्री विश्नाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन थोपकर शुरू किया था और रही सही कसर लालू प्रसाद जैसे नेताओं ने अपने वोट बैंक की खातिर आग में घी डाल कर पूरी कर दी थी I पूरे बिहार को अगड़े और पिछड़े दो अलग-अलग धड़ों में बाँट दिया गया था I जहाँ पिछड़ों को उकसाया गया था कि अपना हक़ छीन लो चाहे मारो, काटो या आग लगाओ I और कभी लगता है कि इस अत्यंत स्वार्थी और घिनौनी राजनीती के परिपेक्ष्य में दो प्यार करने वालों का क्या अंजाम हुआ यही लेखक बताना चाहता है I
प्रेम कहानी का वर्णन करते हुए लेखक ने सभी अलंकारों, विशेषणों और रसों का यथोचित प्रयोग किया है जो इस उपन्यास को एक अलग पहचान देने में शत प्रतिशत कामयाब रहा है I वहीँ समाज में हो रही छीना-झपटी, ज़ोर-ज़बरदस्ती, लूटमार और हिंसा जिसे एक हद तक राजनैतिक संरक्षण प्राप्त है को भी उसके प्राकृतिक रूप में दिखाया गया है - जिससे कभी-कभी पाठक सहम भी जाता है - और यही लेखक की सफलता है I


मेरा विश्लेषण :
यह एक अभूतपूर्व उपन्यास है जो अपनी विशिष्ट लेखन शैली के लिए हमेशा जाना जाएगा I अनय और चश्मिश की प्रेम कहानी का क्या अंत हुआ ये लेखक आपको पहले ही बता देता है जिससे कि आप उस हिंसा को, जिसने उन्हें मौत के घाट उतार दिया, पढ़ने के लिए, महसूस करने के लिए पहले से ही मानसिक रूप से तैयार हो जाते हैं I मित्रों, जब एक अधपकी उम्र का लड़का और लड़की एक दूसरे को निस्वार्थ, निश्छल भाव से प्रेम करते हैं तो कैसे वो धूप के टुकड़े का सरकना, वो आँखों ही आँखों में बातें करना, वो इमली के तीन टुकड़े खाना और बीजों को संभाल कर रखना, वो स्याही का दीवार पर उलट देना, वो पेन का मांगना, वो प्यार भरे ख़त लिखना आदि छोटी-छोटी बातें उन दोनों को प्रसन्नता प्रदान करतीं हैं तब ये किताब लिखी जाती है और हम और आप इसे पढ़ते हैं I
दूसरी तरफ़, क्या आपने कभी एक बीस दिन के नवजात बच्चे को खौलते पानी में उबलते देखा है, क्या आपने एक सत्तर साल की माँ के स्तन को उसके बेटे के सामने कटते हुए देखा है, क्या आपने एक डेढ़ साल के बच्चे को अपनी माँ, जिसे अभी-अभी गोली मारी गयी है, का दूध पीते हुए और उसे तुरंत ही उलटते हुए देखा है क्योंकि एक गोली ने उसका भी जीने का हक़ छीन लिया है, क्या आपने एक प्रेमी को अपनी आँखों के सामने अपनी प्रेमिका को निर्वस्त्र होते हुए और कुछ लोगों को उसका क़त्ल होते हुए देखा है, क्या आपने एक असहाय लड़की की एक आँख से खून और दूसरी आँख से आंसू बहते हुए देखा है और क्या आपने देखा है कि किस प्रकार दोनों की लाशों से उठता हुआ धुआं ऊपर आसमान में ऐंठते हुए उनको एक कर देता है जो ज़मीन पर रहते हुए एक न हो सके ? यदि नहीं तो पढ़िए इस किताब को जो आपके दिल को चीर कर दिमाग़ के एक कोने में घुस कर बैठ जायेगी I
इस किताब में तांडव और नृत्य दोनों साथ-साथ चलते हैं इसलिए भी ये उत्तम श्रेणी में रखने लायक है I
मैं इस किताब को इतने सुंदर ढंग से प्रस्तुत करने के लिए लेखक को बधाई देता हूँ I

हिचकियाँ :
दोस्तों, वैसे तो किताब में कोई ख़ास कमी नहीं है I लेकिन उस समय समाज में हो रहे उथल-पुथल को समझाने में लेखक ने बहुत परिश्रम किया है I परिणाम स्वरूप लेखक ने हर घटना-दुर्घटना को बहुत विस्तार से समझाने की कोशिश की है ताकि पाठक ठीक से समझ ले और इसी कोशिश में कहानी बहुत लम्बी खिंच गयी है जिससे पढ़ते-पढ़ते कभी-कभी ऊब भी होने लगती है I दूसरे कुछ घटनाओं को लेखक ने कई बार दोहराया है जिससे कहानी अपना असर कम करने लगती है और शायद अनावश्यक रूप से लम्बी भी हो गयी है I मुझे लगता है कि लेखक को भी इसका भान है तभी वो बार-बार पाठक को याद दिलाता है - कि याद करें वो किस्सा... 
मेरी अनुकम्पा है कि दूसरे संस्करण में इस किताब को बेहतर तरीके से संपादित करके फिर से प्रस्तुत किया जाए तो बेहतर होगा I

मैं लेखक प्रवीण कुमार की आने वाली सभी पुस्तकें पढ़ना चाहूँगा I


रेटिंग : 4/5 


राजीव पुंडीर 

28 May 2018