Tuesday, October 16, 2018

साक्षात्कार : गरिमा मिश्र 'तोष'

एक नवोदित लेखिका और गायिका से आज शाम की गयी एक विशिष्ट मुलाक़ात :

गरिमा जी मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दें।
मेरा नाम गरिमा मिश्र है और मैं 'तोष' उपनाम से पहचाना जाना पसंद करती हूँ।
मैंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम फिल किया है और क्यूंकी मेरी रुचि संगीत में भी बहुत है इसलिए गायन में संगीत विशारद भी किया । आजकल एक एन जी ओ जुड़कर सामाजिक कार्य भी कर रही हूँ।


आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया?
जी, चूंकि बचपन से घर का वातावरण लेखन पाठन का देखा, मां और नानाजी सिद्धहस्त लेखक और रचनाकार  पास रहे ...उनकी प्रेरणा से लिखना शुरू किया मेरी पहली कविता 'ऐ धरा' स्कूल के वार्षिक अंक में छपी और सराही गई,फिर तेरह वर्ष की वयस से जो लेखन साधना आरंभ की वह सतत अबाध गति से जारी है आज भी।

आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी या कविता आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
मेरे लिये कविता बारिश की बूंदों सी है अचानक घुमड़ कर बरस जाती है। कहानी भवसागर का अथाह नीर संग्रह ...अतः जब कुछ आत्मिक कहना होता है तो शब्दों को कविता मिल जाती है और जब कुछ सघन कहना होता है तो कहानी आकार ले लेती है...मुझे दोनों ही माध्यम प्रिय है ।

आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं?
मेरा मानना है कि हम रचनाकार भावुक और संवेदनशील होते हैं।  स्वयं के और आस पास के वातावरण से प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकते...तो आप कह सकते हैं कि मेरी रचनाएं दैनिंदिन घटनाओं का प्रतिबिंब ही होती हैं ।

अधिकतर देखने में आया है सभी लेखक लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने खुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं ,क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिबिंब  हैं?
हम्म्जी... बहुत बढिया प्रश्न है..जैसा कि मैने पूर्व में कहा है किसी भी रचनाकार का जब तक यथार्थ से भावानुबंध नहीं होता तब तक ...सार्थक रचना को व्यक्त करना उसके वश की बात नहीं होती। फिर वो चाहे स्वयं की भोगी कोई भी अवस्था हो या किसी अपने कि या किसी अपरिचित की सुखद दुखद स्मृति..अतः मेरी रचनाएं भी उन्हीं अनुभवों को आधार बना कर पाठकों से मिलती हैं और विभिन्न सामाजिक मानसिक अवगु्ंठनों को सहजता से खोल देती हैं।



आजकल फेस बुक आदि मंचों पर अधिक लेखक और लेखिकाएं देखनेको मिल रहीं हैं क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं, अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिये?
जी किसी हद तक यह मंच सरल माध्यम होता है कम समय में ज्यादा लोगों तक पहुंचने का..परंतु सुरक्षित तो कतई नहीं  है..यहां बहुधा अपनी रचनाओं का चोरी होने का अंदेशा होता है...और वैसे भी पुस्तक का अपना अलग स्थान है जिसको एसे मंच विस्थापित नहीं  कर सकते हैं।

आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे- सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों ?

मुझसे अक्सर लोग पूछते हैं और शायद हंसते भी हैं कि इस तकनीकी युग में तुम पुराने पड़ते पन्ने और धूसर पड़ती स्याही को क्यों सहेजा करती हो और मेरा जवाब वही होता है मैं शब्दों को भावनाओं की अंजुली से समेटती हूं और किताबों के पन्नों में बिखेर देती हूं ताकि जो पढे वह खुद को उन पन्नों  की नई सी खुशबू से लिपटा पाए और कहीं अपनी यादों को पढे हुए खुद के मोड़े हुए पन्नों में पा जाए..या कहीं किसी सफ्हे पर दबे सूखे फूल सा मुस्कुराए..माने मैं अपनी कृति को हार्ड काॅपी में देखना ज्यादा पसंद करूंगी ।

आपके जीवन में पैसा अधिक मह्त्वपू्र्ण है या प्रसिद्धि?

पेचीदा प्रश्न है..मेरे लिये दोनों ही महत्पूर्ण नहीं  है लेखन स्वांतः सुखाय बहुजन हिताय ही है...पर हां तत्कालीन परिस्थितियों में अर्थ के साथ साथ प्रसिद्धी की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता ।

एक लेखक के लिये क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार उसकी शैक्षणिक योग्यता या फिर कुछ और?
मेरे अनुभव और भावविचार से रचनाशीलता किसी भी व्यक्ति की संवेदनशीलता, प्रबोधिता, संश्लेतात्मकता, विचारशीलता, सहजता सरलता ही तय करती है..एक सच्चे रचनाकार को शिक्षा का परिमार्जन न भी मिले तो भी उसका मात्र सहज और सरल होना ही उसको और उसकी कृति को उत्कृष्ट और अनूठा कर जाता है।

आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
लेखन तो जारी है..दो उपन्यास तैयार हैं..और एक अंतर्राषट्रीय व्यक्तित्व पर बायोग्राफी का कम चल रहा है..जल्द ही आप सब के सामने आएंगे।

नए उभरते कवियों और लेखकों के लिये आपका क्या संदेश है जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
जी जरुर, मेरा यही संदेश है कि साहित्य वही कहाता है जो हितार्थी हो..चार पंक्तियों से अपनी बात पर विराम दूंगी:
ऐ कलमगर रख इतना जमाल अपने हुनर पर
कि पुश्त दर पुश्त संवर जाए
पढ़े जो तिरा लिखा, फरिश्ते क्या शैतान भी इल्मे नजर पाए ।
आप सब को नवरात्रि और दशहरे की अग्रिम अशेष शुभकामनाएं।