Friday, November 22, 2019

The Eight Fbian Hearts : A Novel by Harsha Shastry

INTRODUCTION:

I received this book from my facebook friend Harsha Shastry who's written numerous short stories and screenplays for kids' shows like Chhota Bheem, Motu Patlu etc. That way I can say that he's an acclaimed writer. This novel "The Eight Fbian Hearts" is published by Tingle Books, Hapur, Meerut. On reading the book what I can say is that this is a book based on a unique concept - Imperfection - and if you want to know more about it you'll have to go through it and I assure you that it will not disappoint you.

THE STORY:

The story is woven around eight persons who use Facebook, a social media platform, to make new friends and to communicate with and a few search their love interest also knowing fully well that people from both sexes may be deceptive by hiding their true identities, original physical appearances, fake economic statuses and unrealistic positions in profession they claim to. This all revolves around the main theme of this novel that we the people are Imperfect and neither ready to accept those imperfections for ourselves nor of the others - like a few are obese where some are black in complexion, where some may have skin disease like leucoderma, the other may be bald, which lead them either to hide these things from others or create a fear of rejection in them, force them to lie ultimately leading them into depression. The writer has very beautifully put this problem, a social one, in a very interesting manner and tried to counsel them to face the realities of life, not to be deceptive ever in communicating with others; specially when they're seeking their life partner through social media platforms like Facebook etc.



REVIEW:

In this book the writer has taken a novel concept of imperfections occurring in human body and the fear of acceptance and rejection both create a kind of inferiority complex and feeling of insecurity in them. But when we come across the fact that almost each and every person has some kind of lacking, that feeling of negativity is overtaken by positivity and life looks beautiful. The language of the book is simple and the flow is smooth. Nowhere I found the plot as stretched and the story sumps up quickly on positive notes making the reader happy. The best point of the book is that it doesn't preach anything but says everything silently and indirectly.

MY TAKE:

In today's life when everything depends on social media, social status, social stigmas, and professional commitments and day to day stresses we go through, I strongly suggest the younger generation to go through this wonderful book. I would like to suggest the writer to edit the draft meticulously and remove certain typos and spelling mistakes before it goes for second edition. The cover of the book is fine.
My best wishes to Harsha Shastry for his next literary endeavour.

RATING: 

As Harsha has rightly dealt the subject of imperfection and justified it, the same I would like to say about this book as I cannot term it a perfect book which is natural and there's a scope of tremendous improvement. So being extremely careful and truthful my honest rating is 3/5.

Rajeev Pundir
22 Nov. 2019

Monday, March 25, 2019

साक्षात्कार श्रीमती रंजना प्रकाश



1॰ रंजना जी, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिए । 


मैं केवल हाउस मेकर, गर्व से कह सकती हूं एक सुगृहणी हूं। मैने परिवार के सभी उत्तरदायित्व पूर्ण समर्पण और निष्ठा से निभाए। पहले काम काज करते हुए लिखती थी, पढ़ती थी
अब बस लिखती और पढ़ती हूं यही छोटा सा परिचय है मेरा ।

2॰ आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?

शायद  होश संभालते ही। पहले चोरीछुपे  तुकबन्दी, फिर जाने कब लेखन में तब्दील हो गया । कैसे का क्या जवाब दूं...चूंकि एक सिंगर होने के नाते, बालपन से गीत, ग़ज़ल से अटूट नाता हो गया तो गाते गाते गीतों की रचना करने लगी ।

3॰ आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देती है ?

निश्चित ही कविताएं मुझे ज्यादा रुचिकर लगती हैं। वैसे तो किसी भी विधा का लेखन अभिव्यक्ति का माध्यम ही है, परन्तु  मेरे लेखकीय जीवन में कविता का सर्वप्रथम आगमन हुआ, इसलिए कविता मेरी प्रिय विधा है।

4॰ अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक, लेखिकाएं  अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं। क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिंबिंब  हैं? 

हूं ,,,,ये थोड़ा जटिल प्रश्न है ,,,,पर मैं ईमानदारी से जवाब दूंगी । ये सच है लेखक अपने बारे में लिखता है, मैं भी लिखती हूं ,,,पर ये अधूरा सच है । मैं केवल अपने बारे में नहीं लिखती । जहां तक गद्य का सवाल है उसमें मैं कम मेरे अपने ज्यादा हैं ,, हां  ,,कविताएं अधिकतर मेरी नितांत अपनी  गाथा कहती नज़र आएंगी ।यद्यपि उसमेँ भी समाज, आसपास की समस्याएं मिलेगी पर कहने में संकोच नहीं है कि मेरी कविताओं में मैं , वो और ईश्वर  विद्यमान है । आप मेरी कविताओं में स्पष्ट  छाप छायावाद की पाएंगे । मैं महादेवी वर्मा जी से  शुरू से ही प्रभावित रही हूं,,,,तो कुछ असर उनका तो है मेरे लेखन में ऐसा कई लोगों ने कहा है , हालाकि मैं उनकी चरण रज भी नहीं हूं ।

5॰ आजकल फेसबुक आदि मंचो पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहे हैं । क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आप को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए ?

हां ,,,,देख रही हूं, इन दिनों जैसे बाढ़ आ गई है लेखकों की । ठीक है सशक्त माध्यम है एक अच्छा प्लेटफार्म भी है फ़ेसबुक ,,,पर ये ही काफी नहीं है ,,ये प्रथम सोपान हो सकता है लेकिन ये मंजिल नहीं है। सफ़र इससे आगे और जटिल है । लेखन का आगाज़ ये हो सकता है अंजाम नहीं ,,, मेरा सभी से विनम्र निवेदन है कि इसे ही लक्ष्य न बनाएं :
ये रास्ता है हम है राही
मुकाम तो ये है नहीं
दूर तलक जाना है ,,,,





6॰ आप किस रूप में  अपनी किताब को देखना पसंद करेंगी सॉफ्ट कॉपी या हार्ड कॉपी  और क्यों ?

निश्चित ही पुस्तक  हार्ड कॉपी में ही भाती है मुझे । दुनिया कितनी भी आगे हो जाए, ये ई-बुक  नहीं पढ़ सकती मैं क्योंकि नई ताजा पुस्तक के प्रथम पृष्ठ को  स्पर्श करते ही जो सुखानुभूती होती है वो अकथनीय है । मुझे यूं लगता है जैसे किसी नवजात  शिशु की कोमल उंगलियों का प्रथम स्पर्श, नवल विकसित पुष्प का प्रथम दर्शन, जैसे किसी नन्ही नवेली उषा की उजली प्रथम किरण का स्पंदन ,,,क्या कहूं जवाब लंबा हो जाएगा ,, हां ये तय हो गया इस पर भी कविता लिखूंगी ,,अभी अभी विचार आने लगे है ,जल्द ही एक नई कविता की आहट सुन पा रही हूं ।सुंदर सवाल लाए हैं आप।
पिछले दिनों ही चार लाइन लिखी है  फ़ेसबुक में पोस्ट की थी ,,,
    काग़ज़ पे लिखना
    काग़ज़ को पढ़ना
    इससे बेहतर ,,,,
    कुछ  भी नहीं ,,
एक कतरा भी काग़ज़ का मै बरबाद नहीं कर सकती ,,,


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि ?

ये सवाल आपने मुझसे पिछले  साक्षात्कार में भी पूछा था । मेरा जवाब आज भी वही है ।फिर दोहराती हूं, दोनों ही नहीं । मुझे लेखन से जो तुष्टि और राहत मिलती है वो  सुख मेरे लिए सर्वोपरि है । प्रसिद्धि ,पैसा जब आना होगा तो आयेगा इनके पाने से पूर्व को संतोष रूपी धन प्राप्त हो जाता है, मैं मालामाल हो जाती हूं । दूसरी  सम्पदा है मेरे लिए मेरे पाठकों की प्रतिक्रिया ,,ये अनमोल धन है अक्षय ।

8. एक लेखक के लिए क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार , उसकी शैक्षणिक योग्यता  या फिर कुछ और ? 

निश्चित ही इन दोनों  की आवश्यकता तो होती है, पर इनके होते हुए भी हम कुछ नहीं कर सकते। यदि हम में लेखन के प्रति निष्ठा, लगन और पूर्ण समर्पण न हो । लिखने का जुनून बेहद ज़रूरी है । मैं स्टोर रूम, बॉक्स रूम, भीड़भाड़ में कहीं भी लिख लेती थी, टेबल कुर्सी मिले , न मिले ।आज भी सोते हुए भी कोई ख़्याल आता है तो आधी रात, तत्काल उठ कर लिखती हूं ,तभी नींद आती है । ये बिल्कुल सच है कि ये लगन ही हमें लेखक बनाती है । ऐसा  मेरा मानना है।

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है  ?

क्या कहूं ,,,,लिखती ही रहती हूं कभी लेख ,, कभी कहानी या फिर गीत या ग़ज़ल । दो उपन्यास पूरे हो चुके हैं,,,दोनों  - अनावरण - और सिंदूरखेला  प्रकाशित हो चुके है. कविता संग्रह यादें है। आज कल बड़ी कठिन प्रक्रिया हो गई है । तीसरे उपन्यास पर अभी काम चल रहा है ।अब तो यही काम है मेरा सो लिखती रहती हूं ।
स + हित = साहित्य कहलाता है । कामना यही है जो हितकर हो वही लिखती रहूं ,जब तक  सामर्थ्य है,,,बाकी तो हर इच्छा भगवान की ।
॰10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है  जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें ?

सामयिक सवाल है आपका ,,लेखकों ,,कवियों की भीड़ है इन दिनों । ये भी सच है कि बहुत लोग अच्छा भी लिख रहे है । परंतु  अधिकतर लोग शार्ट कट अपनाने का प्रयास करते हैं ,, लेखन ही क्या जीवन में ही शार्ट कट से बचना चाहिए ,,जल्दबाजी शतप्रतिशत  रिज़ल्ट नहीं दे सकती । श्रेष्ठता के लिए लंबी राह श्रेयस्कर है । खूब पढें , सुचिंतन , मनन  करें , सूक्षमाविलोकी बनें ,,ध्यान रहे नकल से परहेज़ करें ,,नैसर्गिकता में जो सौंदर्य है वो कहीं नहीं ।
अंत में मेरी ही दो  पंक्तियां  कहना चाहूंगी ।

तमाम लंबी उम्र का अफसाना
चन्द  लमहों  में बताऊं  कैसे ,,,,,

कोई भी साक्षात्कार  कभी  पूर्णता को नहीं प्राप्त हो सकता ।

धन्यवाद ,,,नमस्कार ,,,



***

Sunday, March 24, 2019

The Day Before I Died (Matroyshka) : By Ashi Kalim

Introduction :
Some stories, specially from our recent past aka modern history are so mysterious and intriguing that they compel us to find the truth and to go deep into them. This is a natural human nature. Perhaps, driven by the same, Ashi Kalim, the writer has tried to look into the life of a mysterious character of the daughter of Stalin named Svetlana through this novel. This book is published by Notion Press and available at Amazon.in

The Story:
Kunvar Brajesh Kumar Singh, a young man from India, fascinated by communism, goes to Russia to learn the tenets of communism under Stalin, the dictator of Russia. There he happens to meet his daughter Svetlana who Stalin calls his doll, also an active member of communist party. Attracted by his grand personality, Svetlana is attracted to him and eventually they fall for each other - perhaps in love, as both of them were not sure what they felt for each other in initial days.The story travels from Russia to India and finally concludes in USA in getting asylum for Svetlana. To know more about the fate of their love and all this maze like story, go through this interesting book.


Review:

Ashi Kalim, the author, took a challenge by choosing a story based on the love an Indian boy who is rather innocent in comparison of his love interest Svetlana; the daughter of a dictator known for his cruelty. In this endeavour the author did meticulous research, visited the related places, interviewed the people connected and gathered enough material and evidence. Keeping in view of the potential of the author, and the material she collected, this story could have been expanded more spreading it on at least 190 pages instead of only 90 pages. A novel is reduced to a novella. Perhaps, the author got so excited to publish a book on this subject that she penned it in haste as the story, in spite of running in a smooth flow, takes a tumultuous jumping route and ends up quickly missing many links, crossing gaps and overflowing at other places. The writer should work more on story and plot development of a novel of which she has an acumen but not applied.
The other compartment of improvement is its editing because if a reader finds a blunder in the very first line of any novel or a story, it puts a question mark on his/her ability to write. So without discounting the ability of writer, I sincerely advise the author, not only to re-edit it but to re-write the whole lot of manuscript filling all the gaps and joining all the missing links to make it a compelling read. Right now it is taken just as an extended story.

The writer Ash Kalim has a big potential of penning more books and I wish all the best for her future projects.

Ratings : 2.5/5

Rajeev Pundir
25/03/2019

Thursday, January 31, 2019

समीक्षा : अनावरण उपन्यास लेखिका रंजना प्रकाश

प्रस्तावना :

लेखिका रंजना प्रकाश से मैं जब से जुड़ा हूँ, उनकी लेखन शैली ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया है। फेसबुक पर अक्सर उनकी कविताओं का लोग बहुत आनंद  उठाते हैं जिनमें से एक मैं भी हूँ। उनके साथ "ज़िंदगी : कभी धूप, कभी छांव" कविता कहानी संग्रह में भी मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला और मैंने उनके लेखन और व्यक्तित्व की गहराई को जाना और समझा। इसके बाद उन्होंने मुझे अपने उपन्यास "अनावरण" के बारे में बताया और मुझसे आग्रह किया कि मैं उसका सम्पादन करूँ। पहले मुझे काफ़ी झिझक हुई, परंतु ये सोचकर कि इस बहाने उनसे कुछ सीखने को मिलेगा, मैं सहर्ष तैयार हो गया। अब उपन्यास आपके सामने है । पढ़िये और कहानी और भाषा का आनंद उठाईये। इस उपन्यास को आथर्स इंक इंडिया ने रोहतक से प्रकाशित किया है।

कहानी :
पूरा उपन्यास एक प्रेम कहानी है जो दो मुख्य पात्रों - तपन और शुभी के चारों और घूमती है। कहानी के दोनों पात्र अंतर्मुखी हैं जिसके कारण दोनों अपने भावों को एक दूसरे को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। और यही असमर्थता उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन कर उनके आड़े आती रहती है। इसी की वजह से उनके जीवन में एक ऐसी उथल पुथल होती है कि दोनों ही मृत्यु के कगार तक पहुँच जाते हैं। बाद में यही कमजोरी उन दोनों की ताकत बनकर उनका हथियार बन जाती है और उनके जीवन को परिणीति तक पहुंचाती है।
कहानी बहुत सुंदर बन पड़ी है। पूरी कहानी को जानने के लिए पढ़ें - अनावरण


भाषा:
एक कवियित्री होने के कारण रंजना जी ने इस उपन्यास में भी उसी काव्यात्मक लय, ताल, और निर्मलता को बरकरार रखा है। उपन्यास की भाषा बहुत ही अलंकृत, सरल, तरल और मानव के ह्रदय में पनपने वाले भावों से युक्त है। एकदम स्वच्छ भाषा शैली में कही गयी ये कहानी पाठक के मन को मोह लेने में पूर्णतया सक्षम है। रंजना जी ने यथा योग्य अलंकारों और विशेषणों के प्रयोग से इस कहानी को, जो कभी कभी उदासी से भर देती है, एक खुशनुमा संजीदगी से भर दिया है। दूसरे कहानी का स्थान रुद्र प्रयाग है जहां ऊंचे हिमाच्छादित पर्वत हैं, इधर-उधर विचरते दूधिया सफ़ेद बादलों के टुकड़े हैं, शीतल हवा के झोंके हैं, सुंदर पक्षियों का कलरव है, घने वृक्षों की छाँव है, स्वामी जी का आश्रम है और कलकल बहती गंगा माँ है जो आपको हमेशा तरोताज़ा बनाए रखते हैं।


समीक्षा :
ये समीक्षा मैं एक सामान्य पाठक की प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, न कि संपादक की नज़र से।
कहानी दो प्रेमियों की है जो खुलकर प्रेम का इज़हार नहीं कर पाते। पढ़ते पढ़ते लगता है कि कोई पुराने जमाने की फिल्म देख रहे हों। इस उपन्यास का इस समय आना लगता है कुछ देरी से हुआ क्योंकि ये ज़माना तुरत-फुरत प्रेम के इज़हार का है, परिणीति चाहे कुछ भी हो। इसलिए ये उपन्यास आज की नई पीढ़ी को कुछ अटपटा सा लग सकता है। वैसे आज भी पुराने ज़माने के पाठकों की कोई कमी नहीं है और मुझे लगता है कि ये उपन्यास सभी लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा चाहे जिस भी उम्र के हों क्योंकि एक उपन्यास की सफलता सिर्फ उसकी उसकी कहानी ही नहीं परंतु एक उत्तम भाषा शैली और कहानी कहने के अंदाज़ पर भी निर्भर करता है जो यहाँ लाजवाब बन पड़ा है। दूसरे, मेरे विचार से इस कहानी को और विस्तार दिया जा सकता था जिसकी कमी पाठक को महसूस होती है। किसी भी कहानी में पाठक की रोचकता बनाए रखने के लिए उसमें कुछ अंतराल के बाद नई घटनाएँ और थोड़े चकित करने वाले मोड़ अपेक्षित होते हैं जिनकी इस उपन्यास में थोड़ी कमी है। लेकिन कहानी की अस्मिता को ध्यान में न रखते हुए उसमें ज़बरदस्ती ठेले गए वृतांत भी पूरे कथानक को कृत्रिमता की ओर धकेल देते हैं, जो कि रंजना जी ने बिलकुल नहीं होने दिया और कहानी को शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर दिया है। इसके लिए मैं रंजना जी को साधुवाद देना चाहूँगा।

मैं रंजना प्रकाश को इस बेहतरीन उपन्यास के लिए ह्रदय से बधाई देता हूँ और उनसे इसी प्रकार लिखते रहने की आशा करता हूँ। उनके आगे आने वाले उपन्यासों की प्रतीक्षा रहेगी।
अनावरण को प्राप्त करने के लिए लिंक :
https://www.amazon.in/Anawaran-Ranjana-Prakash/dp/9385137875/ref=sr_1_fkmr0_1?ie=UTF8&qid=1548939636&sr=8-1-fkmr0&keywords=anavaran+by+ranjana+prakash

राजीव पुंडीर
30 Jan 2019

Tuesday, January 22, 2019

समीक्षा : नीली आंखें : लेखक राकेश शंकर भारती

मित्रों,
पिछले दिनों हिन्दी की कई किताबें पढ़ीं। बहुत निराशा हुई । तभी राकेश शंकर भारती से फेसबुक पर मुलाक़ात हुई और उन्होंने मुझे उनके द्वारा लिखी गयी किताब "नीली आँखें" पढ़ने का आग्रह किया। पहली नज़र में मुझे ये किताब भी वैसी ही लगी जिन्हें पढ़कर मैं ऊब चुका हूँ जिनमें नई हिन्दी के नाम पर सिर्फ गंदा सेक्स ( काम नहीं ) गंदी भाषा में  ही पाठकों को परोसा जा रहा है । इसलिए मैंने उनको मना कर दिया । लेकिन उन्होंने मुझे इसकी कहानियों की भूमिका बताई कि ये कहानियाँ यूक्रेन के समाज की कहानियाँ हैं क्योंकि वो वहीं पर रहते हैं। एक जिज्ञासु होने के कारण मुझे यूक्रेन के समाज में पनपने वाली कहानियों ने आकर्षित किया और मैं इस किताब को पढ़ने के लिए तैयार हो गया । मैंने ये किताब वर्ल्ड बुक फ़ेयर नई दिल्ली से ख़रीद ली। पढ़ने के बाद मेरी सोच  इस किताब के प्रति काफी बदल गयी। इस किताब को नवयुग प्रकाशन ने दिल्ली से प्रकाशित किया है।

इस किताब में कुल मिलाकर दस कहानियाँ हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं - पहली ये कि जिस व्यक्ति के अंदर लेखक विद्यमान होता है, जगह, देश, काल, भाषा, पहनावा, संस्कृति उसके लिए कोई मायने नहीं रखते और वो अपने लिए लिखने का मसाला खोज ही लेता है। उसके अंदर का लेखक बेचैन रहता है कुछ नया पाने के लिए, कुछ नया सूंघने के लिए, कुछ नया लिखने के लिए। राकेश शंकर भारती बधाई के पात्र हैं कि उनहोंने यूक्रेन के समाज कि विशेषताओं और विषमताओं दोनों को बखूबी समझा और कहानियाँ लिख डालीं। दूसरे, ये कि समाज कोई भी हो, धर्म कोई भी हो, देश कोई भी हो, भाषा कोई भी हो, आदमी और औरत की नैसर्गिक प्रकृति वही है, प्रवृत्ति वही है, एक दूसरे को पाने की, प्रेम करने की चाह वही है। न आदमी बदला है, न औरत।



इन कहानियों में प्रेम है, फ़रेब है, उनसे उपजे सुख और दुख हैं। ये कहानियाँ आपको पात्रों के प्रति संवेदना से भर देती हैं और कभी कभी इतना आश्चर्यचकित कर देती हैं कि आप भाव विभोर हो उठते हैं। कैसा लगा होगा जब एक लड़की को उसका बाप मिलता है जब वो अपनी आखिरी सांस ले रहा होता है, जिसने उसकी माँ को एक दूसरी औरत के लिए तभी छोड़ दिया था जब वो बिना शादी किए ही गर्भवती हो गयी थी। और कैसा लगा होगा एक पत्नी को जब वो और उस आदमी की प्रेमिका दोनों एक ही दिन एक ही हॉस्पिटल में प्रसव के लिए आती हैं, दोस्त भी बन जाती हैं और एक ही कमरे में एड्मिट हो जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी में एक औरत को उसका बहुत पुराना प्रेमी एक ट्रेन में मिल जाता है। और भी कहानियाँ हैं जिन्हें पढ़कर आपको एक अलग समाज की नाड़ी किस प्रकार से चलती है उसका आभास हो जाएगा।

ये कहानियाँ हिन्दी में लिखी गयी हैं जिनमें उर्दू भाषा के शब्दों का काफ़ी प्रयोग हुआ है, और कहीं कहीं थोड़ा अश्लील भी हो गयी हैं मगर इनमें गंदा और भोंडापन नहीं है। जो भी है तर्कसंगत है। हाँ, राकेश जी को अपनी भाषा पर ध्यान देना होगा क्योंकि कहीं कहीं भाषा में कमी अखरती है क्योंकि विदेश में रहने के कारण शायद भाषा में उतनी परिपक्वता नहीं आई है जितनी मूलरूप से आवश्यक है,  और हर कहानी में अलग परिपेक्ष्य को अपनाना होगा ताकि कहानियों में नयापन झलक सके।

मैं राकेश शंकर भारती जी को इस कहानी संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ। और इच्छा करता हूँ कि आप ऐसे ही लिखते रहें। सभी से अनुरोध है कि एकबार इस कहानी संग्रह को अवश्य पढ़ें।

राजीव पुंडीर
जनवरी 22, 20192 

Review : Tacit Stories By Jasmin Thaker

Long back a book hit the market titled Fifty Shades Of Grey. It became such a hit that I couldn't resist myself and jumped on to it to read. But to my astonishment, I found it absolute crap as it's neither a love story nor an erotica. And I could not go beyond a few pages.
Just by chance, I came to know about Jasmin and his penchant for writing. Tacit Stories is his first book and to my surprise it's an erotica. Erotica is very difficult genre and needs special talent, technical know-how and of course a command over the language used to write an erotica. I can say that Jasmin has all the above expertise and written these stories with perfection. I can say that no Indian author has penned such a wonderful book ever except Jasmin in this genre which is considered dirty, untouchable, inarticulable, and restricted in our society. Jasmin has taken a courageous step for writing this erotica book in true letter and spirit. After reading the book, people would wonder that an Indian writer can write such a book in such an amazing language which may titillate, excite and compel them to understand love and sex in pure form devoid of lust.

In the stories, there's love, passion, emotions, natural urge of having sex and getting physical pleasure in a tender and happy manner from both the partners.
The effect of the language, narration, sexual acts and the whole scenario is so profound that the reader is filled with love and sexual excitement in true sense.

I have found most erotica books dirty. But Jasmin has kept the language absolutely refined, neat and clean. And I would say that the book has a potential to surprise and mesmerise the reader.
I recommend the book to one and all, girls and boys, ladies and gentlemen, and even above sixty years of age to enjoy, to learn, to refresh and to rejuvenate their sex life.
I would suggest the author to divide this book into three parts as it seems to be too big comprising more than 300 hundred pages.
Congratulations Jasmin for writing such a wonderful book.
All the best for this book and for future!!

Rajeev Pundir
22/Jan/2019

Wednesday, January 9, 2019

एक शाम, एक ख़ास मुलाक़ात : लेखिका मंजु सिंह से।

साक्षात्कार :
पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिये I
मुझे लोग मंजु सिंह के नाम से जानते हैं । मैं अध्यापन के क्षेत्र से जुड़ी रही हूँ। मैने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी विषय में स्नातकोत्तर की डिग्री लेने के बाद बी एड भी किया । लेखन मुझे आत्म संतुष्टि देता है। समाज में फैला किसी भी प्रकार का प्रदूषण मुझे जब विचलित करता है तब मैं अपनी भावनाओं को शब्द दे ही देती हूं अक्सर । लेख, कविता, कहानी, लघु नाटिका, समीक्षा, आलोचना, संस्मरण आदि लिखती रही हूं। मेरी रचनाएँ विभिन्न सोशल मीडिया के विभिन्न पोर्टलों पर प्रकाशित होती रही हैं। साहित्य कुँज , अनुभव पत्रिका, दा रायटर, प्रतिलिपि, मातृभाषा, हिंदी लेखक डॉट कॉम आदि पर रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। मोम्स्प्रेस्सो के लिए ब्लॉग भी लिखती रही हूँ। हाल ही में पहली बार मेरी रचनाएँ “जिंदगी :कभी धूप कभी छांव”  नामक साझा कविता-कहानी संग्रह में प्रकाशित हुई हैं। यही संक्षिप्त सा परिचय है मेरा।

2. आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?
लेखन यूँ तो विद्यार्थी जीवन में ही आरंभ हो गया था। उन दिनों भी दो चार कविताएं एक स्थानीय पत्रिका में प्रकाशित हुई थीं। मैं तब शायद नवीं कक्षा में थी। उसके बाद बस डायरी में लिखना जारी रहा। विवाह के बाद पारिवारिक जिम्मेदारियों और नौकरी के चलते समयाभाव रहा और लेखन लगभग बन्द ही हो गया। जब मैं 14 वर्ष की थी तब मेरी दो कविताएँ एक पत्रिका में छपी थीं जिसका अब नाम भी याद नहीं है। तब न जाने कितनी कविताएँ लिखीं लेकिन संग्रह नहीं किया । लिख तो तभी से रही हूँ लेकिन प्रकाशन के लिये कहीं भेजीं नहीं कभी।

3. आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देते हैं और क्यों ?
जब कलम के मन में जो भी आ जाए वही लिखती है वह । कहानी , कविता , लेख , संस्मरण , नाटिका , समीक्षा सभी कुछ लिखती हूं।


4. आपकी रचनाएं जीवन में किस चीज़ से या किन घटनाओं से प्रेरित होती हैं ?
अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक-लेखिकाएं अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कवितायें लिखते हैं I क्या आपकी रचनाएँ भी आपके जीवन का प्रतिबिम्ब हैं ?
मेरी कविता आसपास के माहौल से अथवा घटनाओं के प्रभाव से ही प्रस्फुटित होती है । जब मन अधिक खिन्न या प्रसन्न होता है या यूँ कहें कि भावनाओं का अतिरेक ही कविता को जन्म देता है। जी लेखक भी समाज का अंग है और समाज में घटित घटनाएँ उसे प्रभावित करती ही हैं। कहानियाँ समाज से ही निकलती हैं अधिकतर । कभी व्यक्तिगत अनुभव पर भी आधारित होती हैं और कभी देखी सुनी घटनाओं से प्रेरित। कभी इतिहास की घटनाएँ भी कहानी या कविता का आधार बन जाती हैं।

5. आजकल फेसबुक आदि मंचों पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहीं हैं I क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आपको लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए?
बात सही है कि आजकल सोशल मीडिया के रूप में एक सुलभ मंच सभी के लिये उपलब्ध है। मैं मानती हूं कि बहुत से लेखकों को ख्याति प्राप्त हुई है इसके माध्यम से जो कि पहले इतना सरल नहीं था। अब पुस्तक के रूप में अपनी रचनाओं के प्रकाशन के अवसर भी इसी मंच के माध्यम से बहुत सुलभ हो गए हैं। पहचान बनाने और स्वयं को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए आंशिक रूप से मददगार अवश्य है यह माध्यम।

6. आप किस रूप में अपनी किताब को देखना पसंद करेंगे – सॉफ्ट कॉपी में या हार्ड कॉपी में और क्यों?

मैं निश्चय ही हार्ड कॉपी के रूप में अधिक पसंद करूँगी क्योंकि उसकी उम्र और महत्व दोनों ही अधिक हैं।


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि?
आज के समय में पैसे के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। यश की भूख भी बढ़ ही रही है लेकिन सच कहूँ तो मैं दोनों में से किसी के लिये नहीं लिखती केवल आत्मसन्तुष्टि ही मेरे लिए बड़ी चीज़ है। समाज में यदि एक व्यक्ति के विचारों में भी मेरे लेखन से कोई सकारात्मक परिवर्तन आ जाए तो लेखन सफल हो जाएगा ।

  8. एक लेखक के लिए क्या ज़रूरी है – उसके अन्दर का कलाकार, उसकी शैक्षिक योग्यताएं, या फिर  कुछ और ?
एक लेखक के लिए उसकी भावनाएँ और उसके विचार सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। उसके भीतर का कलाकार ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण है जिसके माध्यम से वह समाज को अपने विचार संप्रेषित करता है

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है?
इरादा करके अभी तक तो कुछ लिखा नहीं कभी । हां परिस्थितियाँ जो भी लिखने की प्रेरणा देंगी, वह अवश्य लिखूंगी।  उपन्यास लिखने की इच्छा है। कोशिश ज़रूर करूंगी।

10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है, जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें?
नए लेखकों से केवल यही कहना चाहूँगी कि कलम की शक्ति का महत्व समझें और वही लिखने का प्रयास करें जिससे समाज को एक दिशा मिल सके, एक सकारामक परिवर्तन की दिशा ।

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