Saturday, July 28, 2018

समीक्षा : "अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" लेखिका विजयश्री तनवीर

प्रस्तावना :

लेखिका विजयश्री तनवीर का पहला कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' जो अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है, मैंने पढ़ा और जो कुछ भी मैं इस संग्रह से ग्रहण कर पाया हूँ, आप सब के सामने प्रस्तुत करता हूँ । इसे प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म प्रकाशन ने । कुल 120 पन्नों की ये किताब अपनी नौ कहानियों में कई रोचक किरदार, कई राज़ और बहुत सी भाव - भंगिमाएं समाये हुए है जिन्हें पढ़ते हुए आप ख़ुद भाव -विभोर हो उठेंगे ।

कहानियां :
पहली कहानी 'पहले प्यार की दूसरी पारी' एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने पहले प्यार से आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिलता है और जो बातें उन दोनों के बीच होती हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि उन दोनों ने ही अपनी-अपनी स्थिति को स्वीकार तो कर लिया है मगर कहीं-न-कहीं उस प्यार की कसक बाक़ी तो है - जब औरत कहती है, "मैं तो तुम्हारी मजबूरियों और प्राथमिकताओं को याद करती हूँ ।" क्या उसने ये बात अपनी ख़ुशी से कही थी या ये एक व्यंग था, पढ़ने पर मालूम हो जाएगा ।
दूसरी कहानी 'भेड़िया' एक आदमी के अपराधबोध पर आधारित है जो उसके मन में इस क़दर समा गया है कि उसे हर तरफ़ एक खूंखार भेड़िया दिखाई देता है जो उसे खा जाने पर उतारू है । "मौत वो सबसे बुरी चीज़ नहीं जो हमारे साथ हो सकती है, बिना मौत भी हम कई बार मरते हैं ।" ये वाक्य कहानी की धुरी है ।
अब आपकी मुलाक़ात होती है अनुपमा से जिसके किरदार की तर्ज़ पर इस संग्रह और तीसरी कहानी का नाम  'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' रखा गया है । ये कहानी  एक औरत को एक व्यक्ति के नैसर्गिक रूप में प्रस्तुत करती है । अपनी कमसिन उम्र से लेकर अब तक उसके मन में कितने लोगों ने प्रेम की चिंगारी लगाई, इसको उसी के माध्यम से लेखिका ने उघाड़ कर आपके सामने रख दिया है । लोकल ट्रेन में यात्रा के माध्यम से उसके जीवन में कितने संघर्ष और कष्ट हैं उनसे भी रु-ब-रु होते हुए आप कहानी के अंत तक की रोमांचक यात्रा करते हैं । "कैसे अचानक ही हमारे प्रेम का विस्थापन किसी दूसरे पर हो जाता है," यही इस गुदगुदाने वाली कहानी का केंद्र बिंदु और फलसफ़ा है ।
अगली कहानी सुकेश प्रधान और शैफाली की है - 'समंदर से लौटती नदी' सुकेश एक आर्टिस्ट है और शैफाली उसकी फैन जो उसकी पड़ोसन के रूप में उसके जीवन में जबरन घुस आती है और फिर हालत उनको वो सबकुछ करने का मौका देते हैं जो 'शायद' नहीं होने चाहिए । ये एक ऐसी कहानी है जो क़दम क़दम पर आपको सावधान भी करती है क्योंकि जो सुकेश के साथ हुआ वो किसी भी पुरुष के साथ कभी भी हो सकता है । "सचमुच उन्हें शैफाली चाहिए थी । उनके कैनवास को, उनके कलाकार मन को, उनके अंदर के चिर अतृप्त पुरुष  को ।" क्या पुरुष वाकई अतृप्त होते हैं ? क्या किसी की आसक्ति को प्रेम कह सकते हैं ? इन सवालों के उत्तर ढूंढती एक कहानी I
आइये पांचवीं कहानी में चलते हैं । कहानी का नाम है 'एक उदास शाम के अंत में' । किस प्रकार से एक औरत अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक व्यक्ति की भावनाओं से खेलती है, इस कहानी में लेखिका ने बखूबी दर्शाया है । "मिरेकल्स हैपन धीर, आई गाट द वर्ल्ड !" क्या था वो 'वर्ल्ड' ये जानने के लिए पढ़िए इस किस्से  को जो आपको भी उदासी से भर देगा ।
आगे मेरी मुलाक़ात हुई एक 'खिड़की' से जो अपने में कई सारे राज़ समेटे हुए है जिनको जानने के लिए अँधेरी घुप्प रात में आपको इस खिड़की पर खड़े रह कर कुछ देर तक अपना समय ज़ाया करना होगा । जैसे जैसे राज़ खुलते जायेंगे वैसे वैसे आपके मन में एक अनचाहा डर घर करता जाएगा । हमारे समाज में लुका छिपी चलने वाले खेल आपको सोचने पर मज़बूर कर देंगे । "फोर्टी क्रॉस्ड, डेडली अमेजिंग I" जब आपकी बीस साल की लड़की ये कहे तो आप भी चौंक पड़ते हैं । रियली अमेजिंग स्टोरी !
"ये वाहियात औरतें जाने कैसे किसी भी खाँचें में अपने -आपको फिट कर लेतीं हैं ।" आखिर वो ऐसा सोचने पर क्यूँ मजबूर हुई ? क्या हुआ था उसकी ज़िन्दगी में कि औरतों से उसे एक प्रकार की चिढ़ होने लगी थी । क्यों उसको अपने पति से कहना पड़ा - "मैं आपकी कहानी का कोई किरदार नहीं !" एक व्यक्ति के व्यक्तित्व (शायद दोहरे) को खंगालती ये एक अदभुत कहानी है - "खजुराहो" ।
पन्ना पलटते ही आपकी मुलाक़ात एक डॉक्टर की क्लिनिक पर बैठी दो औरतों से होती है जिनके वार्तालाप में आप भी दिलचस्पी लेने लगते हैं जब पहले वाली दूसरी से कहती है - "भरोसा करना अच्छा है, न करना और भी अच्छा ।" किसी को अथाह प्रेम करने के बावजूद भी हम क्यूँ किसी पर भरोसा नहीं कर पाते और कुछ तो है कि हमें अपने फैसले ही नहीं अपने रिश्ते भी बदलने पड़ते हैं - ये कहानी 'चिड़िया उड़' आपको सोचने पर मजबूर कर देगी ।
आगे के कुछ पन्ने 'विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ' में कुछ खट्टी कुछ मीठी लघु कहानियों  को समेटे हुए हैं, जिनमें से कुछ निहायत ही सुंदर बन पड़ी हैं । आप महसूस कर सकते हैं उस खूबसूरत अहसास को जब एक लड़का अपनी प्रेमिका से कहता है कि अगले जन्म में वो उसका बेटा बनना चाहेगा । मेरे ख्याल से इससे बेहतरीन ख्याल नहीं हो सकता !


समीक्षा :
एक समीक्षक के लिए इससे मुश्किल कोई काम नहीं कि किसी लेखक के लिखे हुए पर कोई टिपण्णी करे । बचपन से ही मैं कहानियां पढ़ता आया हूँ, और तभी से आदमी और औरत के बीच के सम्बन्ध मेरे लिए आकर्षण का विषय रहे हैं । शायद पुरुष के लिए एक स्त्री और एक स्त्री के लिए पुरुष एक सनातन रहस्य है जिसको खोजते खोजते लेखिका विजयश्री तनवीर भी 'अनुपमा गांगुली के चौथे प्यार' तक पहुँच गयी हैं । और इस खोज भरी  यात्रा में जो कुछ मिला उसे अपनी कहानियों में समेट कर आपके सामने एक संग्रह के रूप में प्रस्तुत कर दिया है ।
मित्रों, इस किताब में कुछ ख़ास है वो ये कि जो दूसरी किताबों नहीं मिलेगा और वो है कहानी लिखने का अनोखा अंदाज़ । कहानी लिखने की दो प्रमुख विधाएं हैं । एक है प्रत्यक्ष - जिसमें किरदार सीधे संवाद करते हैं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं । दूसरा है अप्रत्यक्ष - इसमें कोई एक किरदार अपने को तीसरे व्यक्ति के रूप में ढाल कर अपनी ही ज़िन्दगी में होने वाली उथल-पुथल, उसमें आने वाले लोग और उन लोगों ने कैसे उसके जीवन को प्रभावित किया इसकी विवेचना करता है । इस पूरी प्रक्रिया में उसके  मन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है जो उसकी विवेचना के धरातल का काम करता है। इसीलिए लेखिका ने इन कहानियों को मन की कहानियां कहा है ।

ये कहानियाँ आदमी और औरत के प्राकृतिक भाव, संवेदनाएं, गुण और दोष जैसे प्रेम, आकर्षण, आसक्ति, स्वार्थ, तृप्ति, अतृप्ति, शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएं आदि पर केन्द्रित हैं जिनका सही और गलत होने का अनुमान और अंतिम निर्णय करने की ज़िम्मेदारी को पाठक के ऊपर छोड़ दिया गया है । इन कहानियों में लेखिका ने पुरुष और स्त्री दोनों को सामान रूप से कटघरे में खड़ा कर दिया है - किसी एक कहानी में अगर पुरुष स्वार्थी दिखाई पड़ता है तो दूसरी कहानी में स्त्री । प्रेम का आवरण ओढ़कर कहीं अगर पुरुष अपनी हवस को तृप्त करता है, तो अगली कहानी में स्त्री भी वही सबकुछ करती दिखाई पड़ती है । इस प्रकार निष्पक्ष रूप से किरदारों को गढ़ने के लिए मैं लेखिका को बधाई देता हूँ क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुरुषों को कामी , कठोर, भाव शून्य और स्वार्थी माना जाता है जबकि स्त्री अभी भी अबला ही है । हांलांकि ऐसा बिलकुल नहीं है, ज़माना बदल चुका है  - स्त्री भी उतनी ही कामी, कठोर और स्वार्थी हो चली है जितना के पुरुष । इन सब चीज़ों को लेखिका ने अपनी कहानियों और किरदारों के माध्यम से बखूबी अपनी लच्छेदार भाषा में आपके सामने पेश कर दिया है I

हिचकियाँ :

इस कहानी संग्रह की तमाम कहानियां स्त्री और पुरुष के विवाहेतर संबंधों के इर्दगिर्द घूमती हैं । एक ही विषय पर लिखी गयी और एक ही संग्रह में पिरोहित कहानियां कहीं न कहीं एकरसता उत्पन्न करती हैं और पाठक, जो हर कहानी में कुछ नया ढूँढता है, उसको निराश कर सकती हैं । मेरे हिसाब से एक कहानी संग्रह में भिन्न भिन्न विषयों पर कहानी का चयन होना चाहिए क्योंकि एक ही  विषय के ऊपर सिर्फ कहानी की रूपरेखा बदल जाने से कहानियों में नयापन उस हिसाब से नहीं आता जो एक पाठक चाहता है । दूसरे, आदमी और औरत के कुछ अन्तरंग क्षणों को लिखते हुए भाषा और शब्दों का चयन कुछ ऐसा हो गया है जिसे कुछ लोग अश्लील की श्रेणी में रख सकते हैं । मेरे विचार से इस पर नियंत्रण किया जा सकता था ।

पुन:अवलोकन :

निष्पक्ष भाव से अगर कहूँ तो लेखिका विजयश्री  तनवीर के अंदर चरित्रों के मन के भीतर घुस कर उनके भावों और संवेदनाओं को बाहर लाने की और अपनी लेखनी से कागज़ पर उतारने की ग़ज़ब की प्रतिभा है । वो एक विशिष्ट भाषा शैली और अप्रत्यक्ष लेखन की मल्लिका हैं । उनकी इस प्रतिभा को देखकर मैं कह सकता हूँ कि वो वर्तमान की नहीं वरन भविष्य की लेखिका हैं । मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ । ये कहानी संग्रह उनकी साहित्यिक यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा और उनकी आगे यात्रा, जो बहुत लम्बी है, उसको सुगम बनाएगा । उसके लिए शुभकामनाएं ।

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर
29 July 2018










Wednesday, July 25, 2018

समीक्षा - छंटते हुए चावल - कहानी संग्रह - लेखिका नीतू सुदीप्ति 'नित्या'


प्रस्तावना :
ये कहानी संग्रह मुझे नीतू जी ने पी डी एफ के रूप में मेल से भेजा है। इसको प्रकाशित किया है शब्द प्रकाशन ने । जिस प्रकार से लेखिका ने लिखा है कि लेखन उनके जीने का साधन है, उसी प्रकार से किसी भी किताब को, विषेशरूप से कहानी संग्रह को पढ़ना मेरा भी जीने का एक साधन है। जो कुछ भी इस कहानी संग्रह से मैं ग्रहण कर पाया हूँ आपके सामने प्रस्तुत करता हूँ।

कहानियाँ : 
पहली कहानी 'छँटते हुए चावल' ही है जो इस संग्रह का शीर्षक भी है। मेरे लिए ये एक नया मुहावरा ही है जिसका सही अर्थ मुझे कहानी पढ़ने के बाद ही ज्ञात हुआ। किसी व्यक्ति के बारे में बिना ठीक से जाने ही लोग क्या-क्या बोलने लगते हैं ये कहानी का सार है। इस कहानी कि एक पंक्ति ने मुस्कुराने के लिए मजबूर कर दिया - "रोटियाँ सिकतीं गईं और दिमाग़ पकता गया।" दूसरी कहानी 'खोईंछा' भी कुछ कुछ वैसे ही विषय पर आधारित है जिसमें एक स्त्री को बिना उसका पक्ष जाने ही उसकी अपनी बेटी की मृत्यु का दोषी मान लिया जाता है। धीरे-धीरे जब सच की परतें खुलती हैं तो पाठक भी हतप्रभ हो जाता है। कहानी कई मोड़ों से गुजरते हुए समाप्त होती है जो कहानी को काफ़ी दिलचस्प और पठनीय बनाते हैं। तीसरी कहानी 'शीतल छांव' आपकी मुलाक़ात ईशिता और नरेन से होती है जिनकी ज़िंदगी में लाखों ग़म हैं। समाज के कुछ महा स्वार्थी नियम किस प्रकार एक लड़की के जीवन से खेलते हैं, पढ़ने योग्य हैं जो अंत मे आपकी आँखों को नम कर जाती है। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एक काम वाली बिमली से जो कहती है, "का करूँ दीदी, हमार छत तो हमार मरद ही है न। तुम्हारे समाज में औरत लोग जल्दी ही तलाक ले लेती हैं, पर हम गरीब औरत पति के लात-जूता खाके बस सहती हैं,” फिर क्या हुआ ? ये सोचने का विषय है। थोड़ा आगे बढ़ते हैं तो एक बलात्कार का शिकार हुई लड़की से लेखिका आपको काला अध्याय में रु-ब-रु करवाती है और उसकी मन:स्तिथि, जो खंडित हो चुकी है, उसको अपनी शादी के समय कुछ ऐसा करने पर मज़बूर कर देती है जिसको पढ़कर आप भी चकित हुए बिना न रह सकेंगे। हम बोझ नहीं एक प्रेरणादायक कथा है जो हर हाल में जीवन जीने और संघर्ष करने के लिए कहती है। अब आती है एक कहानी डे नाइट। क्या क्या नहीं बीता होगा उस लड़की के ऊपर जब उसे उस परिवार की असलीयत पता लग जाती है जिसमें वो ब्याह कर आई है और ऊपर से ये सुनने को मिले कि शादी में थोड़ा बहुत झूठ तो चलता ही है। आस भरा इंतज़ार एक ग़रीब मज़दूर परिवार की कहानी है जहां एक स्त्री कितना मज़बूर हो जाती है कि वो नए साल पर अपने बच्चों को खीर तक नहीं खिला सकती, पढ़कर आपकी आँखें भी भीग जाएंगी। आगे आपकी मुलाक़ात होती है एंद्री से जिसके व्यक्तित्व को जानकर आपको अच्छा लगेगा कि इस खुल गयी आँखें नामक कहानी का ये नाम क्यूँ रखा गया है। माफ़ करना एक ऐसी कहानी है जिसे पढ़कर आपको थोड़ा नायक के प्रति और फिर नायिका के प्रति क्रोध ज़रूर आएगा। लेकिन जैसे जैसे कहानी की परतें उघड़ती हैं आपको दोनों के प्रति सहानुभूति होने लगती है। जब आगे आप एक कथा ऐसी भी में प्रवेश करते हैं तो उदासी शुरू से ही आपके ऊपर हावी हो जाती है मगर धीरे धीरे लेखिका जब कहानी को बढ़ाती है, आपको अच्छा लगने लगता है। ये एक लड़की के दर्द भरे जीवन की बेहतरीन कहानी है। माँ न बन पाने का दर्द क्या होता है ये पढ़ें रिश्तों का ताना बाना में – और कैसे इस स्थिति से निबटा गया सिर्फ़ एक आदमी की सूझ-बूझ से। काम मुश्किल था मगर रास्ते मिलते गए और सब ठीक हो गया। कभी-कभी हम सब ऐसी विकट स्थिति में पड़ जाते हैं कि कोई रास्ता नहीं मिलता और गांधी जी के बंदर की तरह आँखें बंद करनी पड़तीं हैं – पढ़ें ये दिलचस्प कहानी – बंद आँखों का बंदर। आगे आती है एक ऐसी कहानी जिसका नाम है –चीर हरण जिसमें एक लड़की और उसकी माँ को अपने मासिक धर्म से निबटने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है विशेषकर जब ख़ुद उनके परिवार के लोग ही उनकी परेशानी को समझने को तैयार न हों। बढ़िया प्रस्तुति है।
उनके दूसरे कहानी संग्रह हमसफ़र में भी इसी प्रकार की कहानियाँ हैं कुछ छोटी तो कुछ बड़ी जो पढ़ने पर आपको अच्छी लगेगीं।


समीक्षा :

इस कहानी संग्रह की सभी कहानियाँ निम्न या फिर निम्न मध्यवर्गीय परिवारों की कहानियाँ हैं जो ग्रामीण अंचल से ली गयी हैं। कहानियों के मुख्य विषय समाज में फैली विषमताएं, रूढ़ीवाद, अशिक्षा, प्रेम, विवाहेतर संबंध इत्यादि को बहुत सीधे, सादे, और सटीक तरीके से लेखिका ने समझाने की पुरजोर कोशिश की है जिसमें वो सफल भी रही हैं। कहानियों कि भाषा साधारण परंतु सुंदर है और प्रवाह एक नदी कि तरह है जो कलकल करते हुए अपने गंतव्य की तरफ़ अविरल बढ़ती है और आप उसके किनारे बैठकर आराम से अपने पाँव उसमें डालकर उस प्रवाह का आनंद ले सकते हैं। मित्रों, ऐसी कहानियाँ वो ही लिख सकता है जिसने उस तरह के जीवन को न सिर्फ़ जिया हो बल्कि घूंट-घूंट पिया भी हो। लेखिका के बारे में पढ़कर मुझे आश्चर्य हुआ कि उनके दिल में जन्म से ही विकृति है और वो अक्सर बीमार रहती हैं। पारिवारिक और शारीरिक कारणों से उनकी शिक्षा भी अधिक नहीं हो पायी, निम्न मध्यवर्गीय परिवार से हैं, फिर भी समाज में होने वाले क्रिया कलापों के प्रति इतनी सजग हैं और अपने अनुभवों को अपनी कलम से कहानियों मे उतार देने की गज़ब की प्रतिभा है उनमें। मैं सुदीप्ति नित्या के इस ज़ज़्बे को सलाम भेजता हूँ।
इनके जीवन पर कवि दुष्यंत जी का ये शेर बिलकुल सही बैठता है –
कौन कहता है आसमान में छेद हो नहीं सकता, एक पत्थर तो ज़रा तबीयत से उछालो यारों।
लेखिका के जीवन के संदर्भ में मैं इस शेर को कुछ इस प्रकार से कहना चाहूँगा –
कौन कहता है दिल में छेद हो नहीं सकता, एक शब्द तो तबीयत से उछालो यारों।
मेरा अनुमान है कि नीतू जी ने जब वो माँ के पेट में थीं तभी से शब्दों के साथ खेलना शुरू कर दिया था और कोई शब्द इतनी ज़ोर से उछाला कि वो बाहर आने की बजाए अंतर्मुखी हो गया और उसने इनके दिल में छेद कर दिया।

हिचकियाँ :

किताब में कोई ख़ास कमी देखने को नहीं मिली। चरित्र निर्माण बढ़िया है मगर भाषा को अभी और परिष्कृत करने कि आवश्यकता है ताकि वो साधारण से थोड़ा असाधारण की तरफ़ अग्रसित हो सके।

पुन: अवलोकन :

हमारे समाज में प्रचलित कुप्रथाओं, विषमताओं, और कुंठाओं को परत – दर – परत उघाड़ती ये साधारण भाषा में कही गयी आपकी, मेरी, हम सबकी कहानियाँ हैं। मैं चाहता हूँ कि अधिक से अधिक पाठक इन्हें पढ़ें और लेखिका नीतू सुदीप्ति का हौसला भी बढ़ाएँ। मैं एक चिकित्सक भी हूँ और जानता हूँ कि किसी के दिल में छेद होना कितना घातक है। मेरी शुभकामनायें नीतू जी के साथ हैं और मैं हृदय से कामना करता हूँ कि वो अपने उपनाम नित्या को चरितार्थ करते हुए दीर्घायु हों, खूब लिखें और धारदार लिखें। मुझे उनकी आने वाली सभी कृतियों का इंतज़ार रहेगा और पढ़ना भी चाहूँगा।

राजीव पुंडीर
25 जुलाई 2018

Tuesday, July 17, 2018

ऐसी वैसी औरत - कहानी संग्रह - लेखिका अंकिता जैन - एक समीक्षा

प्रस्तावना :
फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहाँ अधिकतर कूड़ा और कबाड़ ही भरा रहता है I मगर कभी कभी किस्मत से उस कबाड़ के ठीक बीच से हमें कुछ बेशकीमती मोती भी चुनने को मिल जाते हैं I ऐसा ही एक मोती मुझे मिला फुन्नु सिंह की पोस्ट से जिसका नाम है - ऐसी वैसी औरत I ये एक कहानी संग्रह है जिसको लिखा है अंकिता जैन ने और प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म ने I आप इस कहानी संग्रह को पढ़कर हिंदी की बेहतरीन कहानियों का आनंद ले सकते हैं बशर्ते आप कुछ सम्वेदनशील हों और कुछ मानसिक आघात सहने को तैयार हों I

कहानियाँ :
इस कहानी संग्रह में कुल दस कहानियां हैं जो बहुत ही शानदार भाषा में लिखी गयी हैं I कहानियों के मुख्य पात्र  स्त्रियाँ हैं जो समाज के भिन्न भिन्न वर्गों से आती हैं I शरू में आपकी मुलाक़ात मालिन भौजी से होती है जो एक ग़रीब तबके से है और परितक्यता होने के बावज़ूद एक जुझारू, बिंदास और रंगीन प्रवृति की है I दूसरी औरत रज्जो फिर से एक परितक्यता है मगर भीरु है जिसे अपने प्रेम को त्याग कर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है मगर जब उसका पति उसको छोड़ देता है तो वो घर लौट आती है अपने भाइयों के पास I आगे कुछ प्रत्याशित और कुछ अप्रत्याशित घटता है जो पढ़ने लायक है I आगे आपकी मुलाक़ात समाज में फैली वैश्यावृत्ति और उसके तानेबाने को खोलती बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी से होती है I अगली कहानी में लेखिका ने एक लेस्बियन (सम लैंगिक) लड़की के दर्द को रेखांकित किया है जिसका अहसास आपको भी हो जायेगा I जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं आपको मिलती है मीरा जो बहुत ग़रीब है, जिसका पति एक शराबी है और घरों में काम करती है I उसकी बेलौस मुस्कुराहट के पीछे उसके दर्द छटपटा रहे हैं बाहर निकलने को, जिन्हें वो हरदम दबाये रहती है और एक दिन ऐसा कुछ घटता है जो आप सोच भी सकते हैं और नहीं भी I अब एक ऐसी लड़की का प्रवेश होता है जो झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली है मगर उसकी आँखों में आसमान में उड़ने की ललक है, झिलमिलाते सितारे हैं और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने के सपने हैं I उसकी शादी भी उसके प्रेमी से होती है I मगर नियति उसे कहीं और ही ले जाती है I आगे आप ऐसी स्त्री से रूबरू होते हैं जो अपर मिडिल क्लास से है नाम है काकू I अकेली रहती हैं मगर सब कुछ होते हुए भी उनके पास कुछ नहीं है, सिर्फ़ ग़मों के सिवाए I अगली कहानी एक अपाहिज लड़की ज़ुबीं की है जिसकी 'सम्पूर्ण स्त्री' होने की इच्छा उससे वो करवा देती है जिसकी कल्पना सिर्फ़ लेखक ही कर सकता है - हांलांकि इस जीवन में यथार्थ और कल्पना में बहुत महीन रेखा है जो दिखाई भी देती है और नहीं भी I आगे आपको एक 'ऐसी' औरत की कहानी पढ़ने को मिलती है जिसको वास्तव में 'वैसी' औरत की श्रेणी में रखा जा सकता है I और अंतिम कहानी - भंवर - जो भाई बहन के रिश्तों एक ऐसे कोण से खंगालती है कि आप हतप्रभ हो जायेंगे I


समीक्षा :

क़रीब 28 साल पहले एक फिल्म आई थी "द बैंडिट क्वीन" जो मशहूर दस्यु सुंदरी फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी I जैसे ही फिल्म शुरू होती है, परदे पर फूलन अपने डाकू के वेश में अपनी बन्दूक कंधे पर लगाए प्रकट होती है और दर्शकों की तरफ देख कर बोलती है - बहनचोद ! उसकी आँखों में गुस्सा और नफ़रत का सैलाब है जो किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं वरन पूरे समाज के प्रति है - और ये गाली भी उसने पूरे समाज को दी है किसी एक को नहीं I गाली सुनते ही पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता है, लगता है किसी ने एकाएक ज़ोरदार तमाचा सबके मुंह पर जड़ दिया हो कि मेरी इस दुर्दशा के लिए आप सब लोग भी जिम्मेदार हैं !
अंकिता जैन भी कुछ इसी अंदाज़ में आपको इस किताब को पढ़ने से पहले सावधान कर देती हैं अपने "दो शब्दों" में - "इस किताब की कहानियों में जिन औरतों को मुख्य चरित्र में रखा गया है, वे ऐसे चरित्र हैं, जिन्हें समाज में गू समझा  जाता है I ऐसी गन्दगी समझा जाता है, जिस पर मिटटी डालकर उसे छुपा दिया जाता है  - तब तक के लिए जब तक कि उसे साफ़ करने वाला जमादार न आ जाए; और यदि नौबत ख़ुद साफ़ करने की आ जाए तो साफ़ करने वाले को रगड़-रगड़कर नहाना पड़े I"
अपनी बात को बिना लाग-लपेट के इस प्रकार बेबाक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए मैं अंकिता जी आपको बधाई देता हूँ क्योंकि ऐसा कहने की हिम्मत सबके पास नहीं है I

अब आते है मुख्य बिंदु पर I हम जिस समाज में और जिस जगह रहते हैं वहां हमारे चारों ओर जीवन से आती अलग- अलग रंगों की कहानियां और चरित्र बिखरे पड़े हैं I सत्व, रज और तम से ओतप्रोत ये प्रकृति हमारे सम्मुख क़रीब-क़रीब वही कहानियां और वही किरदार बार-बार प्रस्तुत करती रहती है और लेखक लेखिकाएं उन्हीं को अपनी लेखनी के रंग से अलग-अलग रूप देकर समाज के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं I उनके व्यक्तिगत विचार, भाषा शैली और प्रस्तुत करने का ढंग ही उनको कभी प्रेमचंद, कभी शिवानी, कभी कमलेश्वर, कभी मंटो और आजकल कभी रंजना प्रकाश और कभी अंकिता जैन बना देता है I इस कहानी संग्रह की विशेषता अंकिता जी का लेखन है जिसमें  उन्होंने यथोचित विशेषण और अलंकार प्रयोग किये हैं I जैसे जैसे पाठक पढ़ना शुरू करता है, उनकी सटीक भाषा शैली और कलम का जादू पाठक को अपनी गिरफ़्त में इस प्रकार जकड़ लेते हैं कि पाठक कब अंतिम पृष्ठ पर पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चलता I मुझे भी ऐसा ही हुआ I लेखन में इतनी कशिश आजकल कम ही देखने को मिलती है I इसके लिए भी मैं अंकिता जी को बधाई देना चाहूँगा I

हिचकियाँ :

ये भी एक कटु सत्य है की कोई भी लेखक आजतक अपने पाठकों को शत प्रतिशत संतुष्ट नहीं कर पाया है I एक लेखक की हैसियत से मैं तो बिलकुल नहीं I एक पाठक की हैसियत से मुझे ये कहानी संग्रह एक लाजवाब किताब लगी - बस दो बातों को छोड़कर I पहली कहानी में मालिन भौजी एक आठवीं पास औरत है और अधेड़ उम्र भी, यानी क़रीब क़रीब अनपढ़ I उसे कवितायें लिखने का शौक़ भी है I मगर जो कवितायें वह लिखती है उनका स्तर बहुत ऊँचा है और उसके शैक्षिक और बौद्धिक स्तर से मेल नहीं खाता I दूसरे अंतिम कहानी 'भंवर' में अपनी शादी के समय लड़की जो निर्णय लेती है वो बहुत देर के बाद लिया गया प्रतीत होता है जिसे वो पहले भी ले सकती थी और तर्कसंगत इसलिए भी नहीं है क्योंकि अपने कष्टों के लिए कहीं न कहीं वो ख़ुद भी जिम्मेदार है I
इस किताब का मुखपृष्ठ उतना आकर्षक नहीं है जितना होना चाहिए था I इसे और बेहतर बनाया जा सकता था I

पुन: अवलोकन  : 
ये कहानी संग्रह हर तरह से एक उम्दा लेखन का प्रमाण है I इसलिए इस किताब को हिंदी साहित्य की उच्च श्रेणी में रखा जाएगा और वर्षों तक इस किताब को पढ़ा जाएगा क्योंकि  इसकी अद्भुत लेखन शैली और इसके चरित्र पाठकों के दिमाग़ पर ही नहीं दिलों पर भी छाने की क्षमता रखते हैं I मैं अंकिता जैन जी को ऐसे ही लिखते रहने के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उनकी प्रगति की कामना करता हुए उनकी सभी किताबें पढ़ने की इच्छा रखता हूँ I

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर