Monday, March 7, 2022

समीक्षा : ट्रम्प कार्ड : कहानी संग्रह - लेखिका राजवंत राज

 एक परिचय :

राजवंत राज जी से मेरा बहुत पुराना, लगभग चार - पांच साल पुराना नाता है। वैसे हम फेसबुक वाले मित्र हैं और शायद हम दोनों ही एक दूसरे के बारे में बस इतना ही जानते हैं कि राजवंत जी एक बढ़िया चित्रकार हैं और मैं एक लेखक। हाल ही में उनके कहानी संग्रह "ट्रम्प कार्ड" के बारे में फेसबुक के माध्यम से पता चला तो मन में एक उत्सुकता, एक जिज्ञासा हुई कि जो व्यक्ति इतनी सुंदर चित्रकारी करता है, वो लिखता भी बहुत सुंदर होगा। और जैसे ही मैंने इस किताब को पढ़ने की इच्छा व्यक्त की, तुरंत उनकी तरफ़ से आश्वासन मिल गया कि वो स्वयं मुझे इस किताब को भेज देंगी। और तीन चार दिन में ये पुस्तक "ट्रम्प कार्ड" मेरे आगोश में आ गई। इस किताब का प्रकाशन  सृजन लोक प्रकाशन, नई दिल्ली ने किया है। किताब में कुल ग्यारह कहानियां हैं जो 95 पृष्ठों में समाई हुई हैं। 

समीक्षा :

पुस्तक का मुख पृष्ठ लेखिका के द्वारा बनाये गए चित्र से ही आपको आकर्षित करने लगता है। चित्र एक स्त्री का है जिससे ये अनुमान तो हो ही जाता है कि इस पुस्तक की कहानियाँ स्त्री चरित्र - प्रधान हैं। कहानी संग्रह की सभी कहानियों की नायिकाएं, चाहे वो एक विधवा है, चाहे एक विवाहिता है, या फिर एक परितक्यता  है, एक प्रेमिका है, पति के शुक्राणु विहीन होने के कारण  संतान-विहीन है, या फिर हॉस्टल की एक वार्डन, चाहे एक लेखिका, या फिर एक अल्हड़ छोटी बहन, चाहे एक सिख युवक से प्रेम करने वाली एक मुस्लिम लड़की, सभी मानसिक रूप से शक्तिशाली हैं जो समाज में व्यापित स्त्रियों के प्रति अन्याय, दुराचार और भेदभाव का शिकार होने से इंकार कर विद्रोह करती दिखाई देती हैं। वो स्त्रियाँ भले ही अनपढ़ और गरीब हों, या फिर उच्च शिक्षा प्राप्त आज की नारी हो, सभी समाज की परवाह न करते हुए अपने अधिकार, स्वयं के व्यक्तित्व को एक स्वतंत्र और अपने खोये हुए आत्म सम्मान को समाज में पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्ष करती हैं और उस कठिन संघर्ष में सफल भी होती हैं। ये कहानी संग्रह सभी आयु की महिलाओं, विशेषरूप से लड़कियों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य करने में, उन्हें यथोचित मानसिक बल और सही दिशा प्रदान करने में पूर्णतया समर्थ है - इसलिए इसका पढ़ना उनके लिए अति आवश्यक है।


अगर इस कहानी संग्रह को हम साहित्य की दृष्टि से देखें तो मुझे लगता है कि साहित्य के सभी मानदंडों पर ये सोने की तरह खरा, सूर्य की तरह प्रकाशवान, चंद्रमा की शीतल चांदनी से ओतप्रोत, वायु के नरम गरम झोंकों की तरह सुहानी थपकियाँ देता, और कभी अग्नि के ताप जैसा तो कभी वर्षा की ठंडी बौछारों जैसा अनुभव कराने में अपने में विशेषज्ञता समेटे हुए है। कहानियों की भाषा शैली स्वच्छ जल की तरह कलकल बहते झरने की सी है जो पाठक को एक सुखद अनुभव का अहसास कराती हुई उसे और आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करती है और निरंतर उत्सुकता बनाए रखने में सफल हैं। उदाहरण के लिए : 

"उस तूफानी रात में अमरीक सिंह के डर और बेइंतहा दर्द को बर्दास्त करने की गरज से उसी दो हरे नोटों से दारु की बोतल आई और ब्याहता बेटी की इज्ज़त और मौत दोनों को घूँट - घूँट गले से नीचे उतार...बेटी के अस्तित्व को ही बीते माह के कलेंडर के पन्ने की तरह फाड़ कर फेंक दिया।" ( सिगेरां वाली,  पेज नं 26)

"सच ! मर्द औरत के लिए ज़मीन और आसमाँ सब बन सकता है बशर्ते उसने औरत का दिल पढ़ लिया हो...लेकिन जहाँ ग़लतफहमी और बेएतबारी का कीड़ा लग जाता है वहां आसमान धुंधला और धरती बंजर हो जाती है।" (जूड़े वाला क्लिप,  पेज नं 35)

"क्लिष्ट शब्दों में छिपे गूढ़ अर्थों से परे वो एक ऐसी कविता लगती जिसमें कहीं कोई उतार - चढ़ाव नज़र नहीं आता । बस एक सीधी खिंची लकीर सी।" (नताशा पेज नं 38)

"मतलब बिलकुल साफ़ है आशु ! अगर तुमने मुझे कहीं ये कह दिया होता कि मैं तुम्हारे पूरे नौ महीने का माँ बनने का सफ़र देखना चाहता हूँ...तुम्हारे गर्भ में कान लगाकर उसके दिल की धड़कन सुनना चाहता हूँ...वो सारी फीलिंग महसूस करना चाहता हूँ जो एक पिता महसूसता है तो विश्वास मानो...हो सकता था कि मैं अपनी सोच से परे होकर तुम्हारी बात मान लेती..." (ट्रम्प कार्ड पेज नं 49.)

लेखिका ने पात्रों के उद्गारों और भावनाओं को व्यक्त करने के लिए यथायोग्य अलंकारों का प्रयोग अपने लेखन में किया है जिसने इस कहानी संग्रह को और भी सुंदर तथा रोचक बना दिया है। वैसे राजवंत जी के लेखन में कोई कमी नहीं है लेकिन कहानी संग्रह की समीक्षा पुस्तक के आरम्भ में नहीं अंत में होती तो अच्छा होता क्योंकि समीक्षा पढ़ने के बाद कहानियाँ पढ़ने की उत्सुकता कम हो सकती है। 

राजवंत जी को इसके लिए साधुवाद और भविष्य के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं देता हूँ। आशा है कि वो ऐसे ही सुंदर कहानियों का सृजन करती रहें और हम ऐसे ही उनकी लिखी कहानियों का आनन्द उठाते रहें।

राजीव पुंडीर 

7 मार्च 2022