Wednesday, August 11, 2021

पुस्तक समीक्षा : विविधा : लेखिका श्रीमती रंजना प्रकाश

 रंजना प्रकाश एक प्रसिद्ध लेखिका हैं और इनकी कई किताबें मैं पढ़ चुका हूँ जिनमें अनावरण, सिन्दूर खेला, प्रारब्ध और प्रेम उपन्यास और एक प्याला कॉफ़ी कविता संग्रह प्रमुख हैं । इनकी सभी किताबें अपने आप में सुंदर लेखन शैली, धाराप्रवाह भाषा, कथानक की विविधता और गहराई से सराबोर होती हैं । इसी कड़ी में हाल ही में एक नई पुस्तक आई है जिसका शीर्षक ही "विविधा - एक सोपान" है जिसे एवींसपब पब्लिशिंग ने प्रकाशित किया है।

आइये इस पुस्तक के बारे में चर्चा करते है :

जब मैंने इस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो मुझे लेशमात्र भी अंदाज़ा नहीं था कि आखिर लेखिका ने इस पुस्तक का नाम विविधा क्यूँ रखा लेकिन धीरे -धीरे जब आगे चला तो एक आश्चर्य का सामना हुआ। शुरू में इस किताब में छोटी-छोटी कहानियां हैं जो लघु तो हैं मगर उनकी शैली ऐसी है कि पाठक के मन पर एक गहरी छाप छोड़ने में सफल हो गई हैं क्योंकि सभी कहानियां जीवन के हर पहलू से बड़ी ही सहजता से उठा कर बहुत ही नफासत के साथ पाठक के सामने परोस दी गई हैं - एक उत्तम स्वादिष्ट भोजन की भाँती जिसमें मीठा, खट्टा और चरपरा एक संतुलित और उचित मात्रा में वो सब कुछ है जो एक अतिथि को विशिष्ट समझ कर बनाया जाता है। वैसे सभी कहानियां सुंदर और असरदार हैं लेकिन इमोशनल फूल, फ़ोकट का डॉक्टर और नियम भंग ने मुझे काफी प्रभावित किया।


आधी किताब चुक जाने के बाद जो विषय लेखिका ने उठाए हैं उन पर लिखना एक दुरूह कार्य है जो एक परिपक्व और गहन समझ रखने वाला लेखक ही कर सकता है। नारी का मानसिक बल और चरित्र हो या फिर कोरोना से होने वाले मानसिक तनाव के कारण बनते - बिगड़ते आपसी सम्बन्ध और कुछ लोगों के द्वारा की गई आत्म हत्या से लेकर पर्यावरण का महत्त्व हो या फिर आयुर्वेद की समाज में उपयोगिता, राम से लेकर कृष्ण और शिव को समझना हो या फिर सुख दुःख की परिभाषा, प्रेम, भक्ति, क्रोध, करुणा, सफलता असफलता जैसे भाव और सबसे बढ़कर ॐ शब्द की व्याख्या और उसका हमारे जीवन में महत्त्व - सब कुछ इतना विविधता से लबालब है कि आपको आश्चर्य होने लगता है कि आखिर लेखिका के ज्ञान की क्या कोई सीमा नहीं और अचानक ही आप उनके सामने नतमस्तक हो जाते हैं । ये सब कोई कुछ दिनों का अनुभव नहीं वरन जीवन भर की तपस्या के बाद ही लिखा जा सकता है और इसके लिए मैं लेखिका रंजना प्रकाश हृदय से नमन करता हूँ और बधाई देता हूँ क्योंकि हिंदी साहित्य में शायद ही किसी ने इस तरह का अद्भुत प्रयोग किया हो जो सभी लेखकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।


इस किताब में कुछ शाब्दिक त्रुटियाँ हैं जो शायद टाइप करते हुए आ गई हैं जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है। दूसरे किताब का मुखपृष्ठ एकदम भावशून्य है जिसको बदलने की ज़रुरत है। किसी भी किताब का कवर बोलने वाला होना चाहिए जो पाठक को उत्सुकता से भर दे और अंदर की छवि को बाहर प्रकाशित कर दे।

मैं आने वाले समय में रंजना जी की कलम से इसी प्रकार के विविधता से परिपूर्ण साहित्य की रचना की अपेक्षा करता हूँ।

राजीव पुंडीर 

11/08/2021