Thursday, August 25, 2022

हाशिये पर जाती ज़िंदगी... : समीक्षा उपन्यास - लेखिका रंजना प्रकाश

 प्रस्तावना : प्रतिष्ठित लेखिका रंजना प्रकाश का नया उपन्यास "हाशिये पर जाती ज़िंदगी..." आपके सामने प्रस्तुत है जिसका प्रकाशन Evincepub Publishing बिलासपुर छत्तीसगढ़ ने किया है। ये उपन्यास अमेज़न पर उपलब्ध है । प्रथम दृष्टया उपन्यास रंजना जी की कलम से निकली चिर परिचित लेखन शैली से सराबोर है और हमेशा की तरह विभिन्न भावों के रंगों से ओत प्रोत है । 


समीक्षा : मुख्यतः ये उपन्यास सुगंधा नाम की एक अधेड़ स्त्री की कहानी है जिसके पति को गुज़रे कई साल बीत चुके हैं । दो बच्चे हैं एक लड़का एक लड़की और दोनों ही शादी के बाद अपने अपने काम में व्यस्त हैं । इसी कारण उसको अकेला रहना पड़ता है । धीरे धीरे ये अकेलापन उसको खलने लगता है और उसे लगता है कि उसकी ज़िंदगी अब हाशिये की ओर खिसकने लगी है । जब किसी को ज़िंदगी अर्थहीन और इस कदर सिमटी हुई लगे तो कोई भी व्यक्ति इसे अधिक दिनों तक सहन नहीं कर सकता और धीरे धीरे मानसिक रूप से कमज़ोर और अंत में अवसाद से ग्रस्त हो जाता है । सुगंधा भी किसी हद तक इस स्थिति का शिकार हो चली थी कि अचानक किसी बहाने से अपनी दोस्त और पड़ोसन रमोला, जो स्वयं लगभग उसी स्थिति से गुज़र रही है क्यूंकि शादी के बहुत दिनों बाद भी उसकी गोद सूनी है, उसके घर जाती है और परिस्थिति कुछ ऐसी बन जाती है कि दोनों स्त्रियाँ एक दूसरे का संबल बन जाती हैं, एक दूसरे को अवसाद से बाहर निकालती हैं, एक दूसरे का साहस बढ़ाती हैं और रमोला के गुरूजी जो बाद में सुगंधा के भी गुरु बन कर उसके भीतर छिपे गुण और कला को पहचान कर उसके अंदर एक उत्साह भर देते हैं और एक पिता की तरह उसकी उंगली पकड़ उसको ज़िंदगी के हाशिये से उठाकर मुखपृष्ठ की ओर ले जाते हैं - फलस्वरूप सुगंधा की ज़िंदगी सुगंध से भर जाती है और वो अपना वर्षों पुराना सपना पूरा कर लेती है । ये सब कुछ किस प्रकार से होता है ये जानने के लिए पढ़िए उपन्यास - हाशिये पे जाती ज़िंदगी ।



हमेशा की तरह रंजना प्रकाश का ये उपन्यास भी भावों का सागर नहीं महासागर है जिसकी गिरती उठती लहरें पाठक को सराबोर कर देती हैं । रंजना जी की उत्तम भाषा शैली जिसमें प्रकृति के सभी रंग, सभी छटाएं, कहीं पीली मखमली धूप, कहीं कुहू कुहू करती कोयल, हरे भरे पेड़, उगते  और छिपते सूरज की सुन्दरता, विशाल पहाड़ और उनकी चोटियों पर बर्फ़ का धवल मुकुट, गुनगुनाती हुई हवा और न जाने किन किन अलंकारों से ये उपन्यास सजा हुआ है कि पाठक मंत्रमुग्ध होकर एक के बाद एक पृष्ठ पलटने पर स्वयं को बाध्य कर देता है । 



पुस्तक का मुखपृष्ठ और बढ़िया और कलात्मक हो सकता था जिसको गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । बाक़ी पुस्तक की टाइपिंग प्रिंटिंग सब बहुत बढ़िया है और कोई शाब्दिक या व्याकरण की त्रुटी भी नहीं है ।

इस पुस्तक के लिए मैं रंजना प्रकाश को हृदय से बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि हमें भविष्य में भी उनकी कलम से इसी प्रकार के उत्तम हिंदी साहित्य पढ़ने को मिलते रहेंगे ।


राजीव पुंडीर 

25 / 08 / 2022