Wednesday, October 19, 2022

फूस और जुगनू : कविता संग्रह लेखक गौरव शर्मा

 "हर्षित होता हूँ तो कहानी कहता हूँ, व्यथित होता हूँ तो गीत " अपने लेखन के विषय में ऐसा कहने वाले लेखक गौरव शर्मा जो एक शुष्क और कठिन समझे जाने वाले विषय गणित के प्राध्यापक हैं - मेरी दृष्टि में एक सहृदय, भावुक और फूल की तरह कोमल मन वाले व्यक्ति हैं जो बड़ी सहजता से जीवन के खट्टे मीठे अनुभवों को कभी अपनी कहानियों में तो कभी अपनी पानी की तरह कल-कल करती कविताओं में कहने की अद्भुत क्षमता रखते हैं । फूस और जुगनू उनका दूसरा कविता संग्रह है जिसे The Little Booktique Hub, Kolkata ने प्रकाशित किया है ।


गौरव शर्मा की कवितायें, जैसे कि उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है, मन की उन अवस्थाओं और आनेजाने वाले भावों को प्रदर्शित करती हैं जब व्यक्ति अपने जीवन से संघर्ष करते करते कुछ निराश, कुछ हताश और कुछ दुःख से ग्रसित होता तो अवश्य है लेकिन उस कठिन समय में वो खुद को सांत्वना देता है, खुद का साहस बढ़ाता है, खुद की पीठ कभी एक माँ बनकर, तो कभी एक पिता बनकर थपथपाता है, कभी बिलकुल एक छोटे बच्चे की मानिंद कुछ भी पाने की ज़िद करता है, कभी खुद से ही रूठ जाता है तो कभी खुद से ही मान जाने की ठिठोली भी करता है । 

इस किताब से कुछ पद यहाँ उद्धृत करना चाहूँगा :

1. लौ घट रही है दिए की, इसे तकते रहना, 

    मैं जगा हूँ जब तक, तुम भी जगते रहना ।

2. सपने जेब में लेकर एक मतवाला निकला है अकेला, 

    कहानियाँ संभल गईं ये किरदार कौन है ।

3. रोज़ वो सपना, चाँद खरीदने की, इच्छा से शुरू होता था,

    और कुछ क्षणों बाद ही, पैसे पूरे ना होने मायूसी पर, ख़त्म हो जाता था ।

4. ज़िंदगी में धूप ही धूप है, छाँव है ही नहीं,

   अब चुपके से रो लेता हूँ, माँ है ही नहीं ।


5. दिन छुपे माथे पे हाथ फिराता हूँ, तो नमक उतरता है,
    
    शायद काफ़ी कमा लेता हूँ, फिर क्यों जिम्मेदारियों का मुँह बन जाता है ?



मित्रों, गौरव शर्मा की कवितायें प्रतिदिन जिम्मेदारियों का बोझ उठाते, परिस्थितियों से जूझते, उन सभी व्यक्तियों के लिए हैं जो कभी न कभी जीवन की रेलमपेल में निराश हो जाते हैं - तब उन्हें चाहिए होता है ऐसा कुछ जो उन्हें उस अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाए जहाँ शांति है, सुकून है, आशा है और अंत में जीत भी - और वो सब कुछ मिल सकता है ऐसी सुंदर मन भावन कविताओं से जो आपके कानों में फुसफुसा कर कहती हैं - कोई बात नहीं ये तो सबके साथ होता है, होता रहता है, बस तुम दिल छोटा न करो, आगे चलो, चलते जाओ, मंजिल बस सामने ही तो खड़ी है ।

मैं गौरव शर्मा को इस कविता संग्रह के लिए बहुत बहुत शुभ कामनाएं देता हूँ...और कामना करता हूँ वो ऐसे ही लिखते रहें...अनवरत !

राजीव पुंडीर 
19 OCT 2022