Saturday, December 5, 2020

Review : It All Happened In A School : Novel by Gaurav Sharma

 Gaurav Sharma is an accomplished writer and I still admire and remember many anecdotes from his first book Love @ Airforce. Later Rape Scars & Dawn at Dusk came and hailed by readers. His latest is "It All Happened In A School" published by Petal Publishers. 

The Story:

The pivot of the story is a School named God & Guru Convent School run by a joint management committee of two religious organisations pertaining to Sikh and Christian communities. Half of the book keeps you entertaining by the usual conversation among the staff members the undercurrent of which is mostly sex oriented happening in any given office. Perhaps the writer wants to keep the reader in a lighter vein creating a jovial atmosphere before he takes you to the next half where something grave happens. However in between he introduces the style of functioning of a private school like their highhandedness, monopoly and an exploitation of the staff, mainly teachers by the management through fringe events.To know what grave happens in the later half - read the book. 



Review:

The book has been written in non-sequential manner as the subplots come to light one by one nowhere related one another. The interview for selecting a teacher, a classroom prank, a murder and in the last a rape all happen independently keeping the reader guessing all the time. The main protagonist of the story is an honest teacher Saubhagya but most of the chapters have been titled after another fellow teacher Harjeet Singh which I found a bit surprising. The cover page of the book is so-so and could have been designed in more expressive manner synchronising with the story. However the writer has successfully portrayed all the incidents which happened or may happen in any given school so that the parents become attentive and aware about the safety of their wards.

The real take away from this book are few compelling quotes - strong enough to stir the readers' conscience:

"I want to breathe life. I've had enough of the desert. I want my share of oasis now."

"Women are always sure about two things : When do they look more beautiful and what does the man staring at her wants."

"Mathematics is a flattery loving muse. She expects that you spend lots of time with her, she will make you a king. If you ignore her, she will make you miserable."

"Truth is a blade. You shouldn't keep it between your lips."

"We teachers change the world everyday. Teachers are the heart and students are the blood of a school."

An error is to be corrected when the head of the police team asks to show him the spot where the raped girl was found but with a wrong name. 

My Take:

This book is an eyeopener for the parents and perhaps has been written to make them aware about the safety of their children as similar incidents have been and are being reported more often than not. I wish all the best to Gaurav Sharma for the success of the book. 


Rajeev Pundir

06/12/2020 

Monday, November 23, 2020

एक प्याला कॉफी : कविता संग्रह : लेखिका : रंजना प्रकाश

इश्क़ में अल्फ़ाज़ों की 

ज़रूरत क्या है,

बात बनती ही तब है 

जब कही ना जाये ........

ये पंक्तियाँ रंजना जी के नए कविता संग्रह से उद्दृत कर रहा हूँ...जो नितांत सत्य है और  स्त्री और पुरुष के आदि काल से चले आ रहे संबंध के बीच ये मौन गंगा की तरह पावन ही सतत बह रहा है। कहते भी हैं कि सत्य का स्वरूप सिर्फ मौन में ही समझा जा सकता है - क्योंकि जैसे ही हम सत्य को शब्दों का परिवेश देने लगते हैं वैसे ही असत्य अपने पैर पसारने लगता है। 

इश्क़ में यादों की

 मंज़िल तो बता दो यारों,

खबर तो हो के सफर 

और कितना बाकी है...

मित्रों आपको भी पता है कि इश्क़ एक मदहोशी का नाम है। जो इसमें पड़ जाता है उसे दीन दुनिया का कोई ध्यान नहीं रहता। परंतु लोग कह नहीं पाते कि आखिर ये मदहोशी इश्क़ के कारण ही है या कोई और नशा है...लेकिन एक सिद्दहस्त लेखिका ने कितनी आसानी से कितनी गहरी बात को उजागर कर दिया है... 




प्यार में रूबरू न हुए,

तो कोई बात नहीं, 

सिर्फ अहसास ही काफी है,

सांस लेने के लिए...

मुझे इन पंक्तियों में एक प्रेमी दिखा, एक प्रेमिका दिखी और एक तरफा प्रेम दिखा जिसको एक दार्शनिक की पोशाक पहनाकर रंजना जी ने आपके कानों में  सहजता से गुनगुना दिया...बहुत ही उम्दा और खूबसूरती के साथ। 


शाख से गिरते सूखे,

पत्तों से बचकर चलना, 

पाँव न रखना लोगों,

यहीं कहीं इस टूटे दिल के 

कतरे गिरे थे कभी...

इन पंक्तियों में अद्भुत दर्द का एहसास है। वो दर्द जो अपने किसी विशेष का दिया होता है। जब कोई इस प्रकार से दिल तोड़ता है कि चूर चूर होकर बिखर जाता है...

पूरी किताब जिसका शीर्षक भी बहुत अनोखा है "एक प्याला कॉफी" इसी तरह की अनुभूतियों, उद्गारों, अहसासों, और भावनाओं से सराबोर है जो आपको भी अपनी धीमी धीमी फुहारों से पाठक को भिगोने लगती है। पाठक कभी दर्द से भर जाता है और गमगीन हो जाता है, कभी पढ़ते पढ़ते उसके होठों पर एक मखमली मुस्कान तैर जाती है, कभी उसका अस्तित्व गंभीरता से भर उठता है तो कभी आँख बंद कर वो अपने प्रेमी के साथ बिताए खुशनुमा क्षणों को याद करके उनमें डूब जाता है...क्योंकि ये पुस्तक पुरुष और प्रकृति के प्रेम, बिछोह, वेदना, तड़प, टीस, और बहुत से रंगों से परिपूर्ण है।



रंजना जी एक अद्भुत रचनाकार और कलमकार हैं...जिनके भीतर का संगीत उनकी लेखनी से प्रवाहित होता रहता है कभी लघु कथाओं में, कभी उपन्यास के रूप में और अधिकतर उनकी कविताओं में। उनकी लेखन शैली बहुत ही सुंदर, सभी अलंकारों से युक्त, प्रकृति से तालमेल बढ़ते हुए आगे बढ़ती है जो पाठक के लिए आसानी से समझी जाने वाली और रोमांचक है...वो अपनी कृतियों में कठिन शब्दों का प्रयोग न करते हुए धारदार वाक्यों को गढ़ने में माहिर हैं। "एक प्याला कॉफी" उनकी नयी कविताओं की पुस्तक है जिसका मुखपृष्ठ बहुत सुंदर और आकर्षक है। पुस्तक में जो भी शब्दों की त्रुटियाँ हैं मेरी प्रार्थना है उनको अगले संस्करण में दूर किया जाना चाहिए...जिससे पाठन का आनंद दुगना हो जाएगा।

मैं रंजना प्रकाश जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और आशा करता हूँ कि उनकी लेखनी हिन्दी साहित्य को इसी प्रकार सींचती हुए आगे बढ़ती रहे। 


राजीव पुंडीर

24 Nov 2020

Thursday, February 20, 2020

सिंदूर खेला : कहानी संग्रह - रंजना प्रकाश

परिचय:
श्रीमती रंजना प्रकाश की ये चौथी पुस्तक है। इससे पहले यादें (कविता संग्रह) अनावरण, प्रारब्ध और प्रेम ( उपन्यास ) प्रकाशित हो चुकी हैं जिनको पाठकों ने बहुत सराहा और पसंद किया। एविन्सपब पब्लिकेशन, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा इस पुस्तक को प्रकाशित किया गया है। मुझे उम्मीद है कि इस पुस्तक को भी पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा।
समीक्षा :
कहानियों का सृजन करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन उससे भी कठिन है उन्हें पढ़कर उन पर अपनी प्रतिक्रिया देना। फिर भी लेखक कितना भी सिद्धहस्त हो, जैसे कि रंजना जी हैं, सबको इस बात को जानने की उत्सुकता रहती है कि उसके पाठकों की उसकी नयी रचना के प्रति क्या प्रतिक्रिया रही, क्या लोगों के मन को कहीं छू पायी, क्या जो बात लेखक पाठकों तक अपनी लेखनी के माध्यम से कहना चाहता है वो कह पाया या नहीं और कहीं कोई उसके लेखन में कमी तो नहीं रह गयी ताकि आगे सुधार कर सके। इस कहानी संग्रह में कुल 15 कहानियाँ है और पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूँ कि रंजना जी अपने उद्देश्य में सफल रही हैं ।
पहली कहानी 'वापसी' है जो नई पीढ़ी को एक स्पष्ट संदेश देती है कि वर्षों से चली आ रही परम्पराएँ भी तोड़ी जा सकती हैं यदि उनसे लाभ के बदले हानि हो रही हो। दूसरी कहानी 'दूसरी औरत' सब कुछ सह कर भी उन्हीं परम्पराओं को निभाने की शिक्षा देती है जो कि पहली कहानी के एकदम विपरीत है। लेकिन कहानी पढ़कर आपको दोनों कहानियों के सन्दर्भ में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि अपनी जगह दोनों सही हैं। तीसरी कहानी 'माज़ी' है जो बताती है कि सच्चा प्रेम करने वाले ज़रूरी तो नहीं कि जीवन में शादी कर पाएँ। इस कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है जब पूर्व में रही प्रेमिका का सामना अपने प्रेमी और उसकी पत्नी से हो जाता है और उसका ये कहना कि आज से वो उसे अपनी ननद समझे, पाठक को हतप्रभ कर देता है। किसी चरित्र में अचानक ये बदलाव रंजना जी ही कर सकती हैं। जहां पाठकों को ये कुछ अटपटा लगेगा, वहीं अगर दूसरे कोण से देखें तो अपने और अपने प्रेमी के परिवार की खुशी के  लिए उस लड़की के द्वारा ये रूपान्तरण एक साहसिक कदम है। अब आगे बढ़ते हैं तो चौथी कहानी 'तूफान' से सामना होता है जो एक ऐसे तूफान से रूबरू कराती है जो कभी न कभी हम सबकी ज़िंदगी मे आता है और अगर हम चौकन्ने न हों तो ये हमारे घर को, हमारे रिश्तों को बर्बाद भी कर सकता है। पांचवी कहानी फिर से हमें हमेशा चौकन्ने रहने की सीख दे जाती है कि यदि कोई अचानक हम पर मेहरबान हो जाता है तो उसका बहुत बड़ा स्वार्थ है और वो हमारा ग़लत फायदा भी उठा सकता है।
"मेरे हृदय की धीमी-धीमी राख़ में दबी हुई आग जो विकराल रूप धारण कर चुकी है इससे किसी और को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः मेरी अंतर ज्वाला ताउम्र आखिरी सांस तक मुझे तपाती रहेगी।" ये पंक्तियां छठी कहानी के अंत से ली गईं हैं जिसका नाम है 'अनावृत मन'। किस प्रकार से पहला प्रेम दुखदाई हो कर पूरे जीवन को सालता रहता है और वो टीस दिल ही दिल में हमेशा चुभती रहती है इसका वर्णन लेखिका ने बखूबी कर दिया है। अगली कहानी 'फॅमिली फ्रेंड' भी बढ़िया कहानी है जब पुराने प्रेमी जीवन को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं जैसे वो आता है - बिना किसी विरोध के। 'प्रिटी लेडी' आठवें नंबर पर है। इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने एक स्त्री के मन की गहरी परतों को परत दर परत खोला है - कि किसी भी उम्र में उसके सोये हुए अरमानों को जगाया जा सकता है - बशर्ते कि जगाने वाला हुनरमंद हो । मुझे ये कहानी बहुत सुंदर लगी। कमोबेश अगली कहानी 'मसखरा' भी उसी तरह की कहानी है की जो हंसोड़ और मज़ाकिया लगता है उसके  व्यक्तित्व में भी एक गहराई होती है जिसे हम समझ नहीं पाते। दसवीं कहानी 'सिंदूर खेला' है जो इस कहानी संग्रह का टाइटिल भी है। दुखों से लड़ते लड़ते व्यक्ति किस प्रकार से एक साहसी व्यक्ति में परवर्तित होकर अत्यंत संवेदनशील हो जाता है और अंजाने लोगों की मदद करके उनको गहरे अवसाद से उबार कर जीवन जीने की कला सिखा देता है। इसी बहाव मे अगली कहानी 'प्रतुल स्टिल आई लव यू' है जिसका आधार भी वही मानवीय संवेदनाएं हैं जो अपने दुख से उपजती हैं और हमें अंजान लोगों की सहायता करने पर मजबूर कर देती हैं और जब हम उसमें सफल हो जाते हैं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। एक माँ के वात्सल्य को समझना हो तो इस कहानी को पढ़ना होगा - 'और दीप जल उठे'। इसी कड़ी में अगली कहानी है 'अम्मा' जो हमारे समाज द्वारा प्रताड़ित एक स्त्री की दिल को छू लेने वाली कहानी है। एक भाभी अपने देवर को कितना प्यार दे सकती है वो भी एक माँ के रूप में, इसको अपने खूबसूरत शब्दों में लेखिका ने सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है 'खुशबू का रेगिस्तान' में। अंतिम कहानी 'प्रतिशोध' एक स्त्री के द्वारा लिए गए साहसिक निर्णय की गाथा है जो अद्भुत है।

रंजना प्रकाश की कहानियां, कविताएं और उपन्यास मानव मन की भावनाओं, प्रेम, कष्टों, और संवेदनाओं का सागर होते हैं जिसमें रह रह कर कभी प्रेम की, कभी दुख की, कभी किसी पात्र की ईर्ष्या, कभी क्रोध तो कभी हार्दिक सहानुभूति की लहरें उठती रहती हैं। इनका लेखन प्रेम और प्रकृति की धुरी के चारों ओर नृत्य करता प्रतीत होता है। लेखन में भारतीय संस्कृति, भाषा में एक सुंदर प्रवाह और शालीनता हमेशा बनी रहती है जो समाज को एक दिशा और संदेश देते हैं। इनको पढ़कर आने वाली नयी पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है। देखने में आ रहा है कि आजकल नई हिन्दी के नाम पर नए लेखक हर तरह की असभ्य भाषा को पाठकों के सामने परोस रहे हैं। ऐसे में रंजना जी की लेखनी में मुझे हिन्दी के साहित्य को सहेजने सवाँरने के लिए एक आशा कि किरण दिखाई देती है। मेरी सभी से प्रार्थना है कि ये अद्भुत कहानी संग्रह ज़रूर पढ़ें।

किताब का मुखपृष्ठ उसके शीर्षक से मेल नहीं खाता है। प्रथम दृष्ट्या लगता है कि ये कोई धार्मिक या फिर दर्शन शास्त्र की किताब है। लगता है कि प्रकाशक ने इस किताब को बिना पढ़े ही इसका कवर डिजाइन करवा दिया है। ऐसे में प्रकाशकों को चाहिए कि लेखक की सलाह ज़रूर लें। दूसरे, किताब में टाइपिंग करते समय कुछ शब्दों की अशुद्धियाँ रह गयी हैं, आशा है अगले संस्करण में इनको दूर कर दिया जाएगा। कहानियों में कुछ पत्रों के नाम बार-बार दोहराते हैं, जो पाठक के मन में उलझन जैसा कुछ पैदा करते हैं। हांलांकी लेखिका ने पहले ही इस तरफ इशारा तो किया है कि कुछ नाम उनको बेहद पसंद हैं लेकिन पाठक को एक कहानी से दूसरी कहानी पर जाते समय उलझन न हो, इस बात का ख्याल भी करना चाहिए।

कुल मिलाकर कहानियाँ बहुत सुंदर और किताब बहुत बढ़िया है। मैं रंजना जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस समीक्षा को यहीं विराम देता हूँ।

राजीव पुंडीर
20/02/2020