Thursday, February 20, 2020

सिंदूर खेला : कहानी संग्रह - रंजना प्रकाश

परिचय:
श्रीमती रंजना प्रकाश की ये चौथी पुस्तक है। इससे पहले यादें (कविता संग्रह) अनावरण, प्रारब्ध और प्रेम ( उपन्यास ) प्रकाशित हो चुकी हैं जिनको पाठकों ने बहुत सराहा और पसंद किया। एविन्सपब पब्लिकेशन, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ द्वारा इस पुस्तक को प्रकाशित किया गया है। मुझे उम्मीद है कि इस पुस्तक को भी पाठकों का भरपूर प्यार मिलेगा।
समीक्षा :
कहानियों का सृजन करना कोई आसान काम नहीं है, लेकिन उससे भी कठिन है उन्हें पढ़कर उन पर अपनी प्रतिक्रिया देना। फिर भी लेखक कितना भी सिद्धहस्त हो, जैसे कि रंजना जी हैं, सबको इस बात को जानने की उत्सुकता रहती है कि उसके पाठकों की उसकी नयी रचना के प्रति क्या प्रतिक्रिया रही, क्या लोगों के मन को कहीं छू पायी, क्या जो बात लेखक पाठकों तक अपनी लेखनी के माध्यम से कहना चाहता है वो कह पाया या नहीं और कहीं कोई उसके लेखन में कमी तो नहीं रह गयी ताकि आगे सुधार कर सके। इस कहानी संग्रह में कुल 15 कहानियाँ है और पढ़ने के बाद मैं कह सकता हूँ कि रंजना जी अपने उद्देश्य में सफल रही हैं ।
पहली कहानी 'वापसी' है जो नई पीढ़ी को एक स्पष्ट संदेश देती है कि वर्षों से चली आ रही परम्पराएँ भी तोड़ी जा सकती हैं यदि उनसे लाभ के बदले हानि हो रही हो। दूसरी कहानी 'दूसरी औरत' सब कुछ सह कर भी उन्हीं परम्पराओं को निभाने की शिक्षा देती है जो कि पहली कहानी के एकदम विपरीत है। लेकिन कहानी पढ़कर आपको दोनों कहानियों के सन्दर्भ में अंतर स्पष्ट हो जाता है कि अपनी जगह दोनों सही हैं। तीसरी कहानी 'माज़ी' है जो बताती है कि सच्चा प्रेम करने वाले ज़रूरी तो नहीं कि जीवन में शादी कर पाएँ। इस कहानी में एक ऐसा मोड़ आता है जब पूर्व में रही प्रेमिका का सामना अपने प्रेमी और उसकी पत्नी से हो जाता है और उसका ये कहना कि आज से वो उसे अपनी ननद समझे, पाठक को हतप्रभ कर देता है। किसी चरित्र में अचानक ये बदलाव रंजना जी ही कर सकती हैं। जहां पाठकों को ये कुछ अटपटा लगेगा, वहीं अगर दूसरे कोण से देखें तो अपने और अपने प्रेमी के परिवार की खुशी के  लिए उस लड़की के द्वारा ये रूपान्तरण एक साहसिक कदम है। अब आगे बढ़ते हैं तो चौथी कहानी 'तूफान' से सामना होता है जो एक ऐसे तूफान से रूबरू कराती है जो कभी न कभी हम सबकी ज़िंदगी मे आता है और अगर हम चौकन्ने न हों तो ये हमारे घर को, हमारे रिश्तों को बर्बाद भी कर सकता है। पांचवी कहानी फिर से हमें हमेशा चौकन्ने रहने की सीख दे जाती है कि यदि कोई अचानक हम पर मेहरबान हो जाता है तो उसका बहुत बड़ा स्वार्थ है और वो हमारा ग़लत फायदा भी उठा सकता है।
"मेरे हृदय की धीमी-धीमी राख़ में दबी हुई आग जो विकराल रूप धारण कर चुकी है इससे किसी और को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। संभवतः मेरी अंतर ज्वाला ताउम्र आखिरी सांस तक मुझे तपाती रहेगी।" ये पंक्तियां छठी कहानी के अंत से ली गईं हैं जिसका नाम है 'अनावृत मन'। किस प्रकार से पहला प्रेम दुखदाई हो कर पूरे जीवन को सालता रहता है और वो टीस दिल ही दिल में हमेशा चुभती रहती है इसका वर्णन लेखिका ने बखूबी कर दिया है। अगली कहानी 'फॅमिली फ्रेंड' भी बढ़िया कहानी है जब पुराने प्रेमी जीवन को उसी रूप में स्वीकार कर लेते हैं जैसे वो आता है - बिना किसी विरोध के। 'प्रिटी लेडी' आठवें नंबर पर है। इस कहानी के माध्यम से लेखिका ने एक स्त्री के मन की गहरी परतों को परत दर परत खोला है - कि किसी भी उम्र में उसके सोये हुए अरमानों को जगाया जा सकता है - बशर्ते कि जगाने वाला हुनरमंद हो । मुझे ये कहानी बहुत सुंदर लगी। कमोबेश अगली कहानी 'मसखरा' भी उसी तरह की कहानी है की जो हंसोड़ और मज़ाकिया लगता है उसके  व्यक्तित्व में भी एक गहराई होती है जिसे हम समझ नहीं पाते। दसवीं कहानी 'सिंदूर खेला' है जो इस कहानी संग्रह का टाइटिल भी है। दुखों से लड़ते लड़ते व्यक्ति किस प्रकार से एक साहसी व्यक्ति में परवर्तित होकर अत्यंत संवेदनशील हो जाता है और अंजाने लोगों की मदद करके उनको गहरे अवसाद से उबार कर जीवन जीने की कला सिखा देता है। इसी बहाव मे अगली कहानी 'प्रतुल स्टिल आई लव यू' है जिसका आधार भी वही मानवीय संवेदनाएं हैं जो अपने दुख से उपजती हैं और हमें अंजान लोगों की सहायता करने पर मजबूर कर देती हैं और जब हम उसमें सफल हो जाते हैं तो हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। एक माँ के वात्सल्य को समझना हो तो इस कहानी को पढ़ना होगा - 'और दीप जल उठे'। इसी कड़ी में अगली कहानी है 'अम्मा' जो हमारे समाज द्वारा प्रताड़ित एक स्त्री की दिल को छू लेने वाली कहानी है। एक भाभी अपने देवर को कितना प्यार दे सकती है वो भी एक माँ के रूप में, इसको अपने खूबसूरत शब्दों में लेखिका ने सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया है 'खुशबू का रेगिस्तान' में। अंतिम कहानी 'प्रतिशोध' एक स्त्री के द्वारा लिए गए साहसिक निर्णय की गाथा है जो अद्भुत है।

रंजना प्रकाश की कहानियां, कविताएं और उपन्यास मानव मन की भावनाओं, प्रेम, कष्टों, और संवेदनाओं का सागर होते हैं जिसमें रह रह कर कभी प्रेम की, कभी दुख की, कभी किसी पात्र की ईर्ष्या, कभी क्रोध तो कभी हार्दिक सहानुभूति की लहरें उठती रहती हैं। इनका लेखन प्रेम और प्रकृति की धुरी के चारों ओर नृत्य करता प्रतीत होता है। लेखन में भारतीय संस्कृति, भाषा में एक सुंदर प्रवाह और शालीनता हमेशा बनी रहती है जो समाज को एक दिशा और संदेश देते हैं। इनको पढ़कर आने वाली नयी पीढ़ी बहुत कुछ सीख सकती है। देखने में आ रहा है कि आजकल नई हिन्दी के नाम पर नए लेखक हर तरह की असभ्य भाषा को पाठकों के सामने परोस रहे हैं। ऐसे में रंजना जी की लेखनी में मुझे हिन्दी के साहित्य को सहेजने सवाँरने के लिए एक आशा कि किरण दिखाई देती है। मेरी सभी से प्रार्थना है कि ये अद्भुत कहानी संग्रह ज़रूर पढ़ें।

किताब का मुखपृष्ठ उसके शीर्षक से मेल नहीं खाता है। प्रथम दृष्ट्या लगता है कि ये कोई धार्मिक या फिर दर्शन शास्त्र की किताब है। लगता है कि प्रकाशक ने इस किताब को बिना पढ़े ही इसका कवर डिजाइन करवा दिया है। ऐसे में प्रकाशकों को चाहिए कि लेखक की सलाह ज़रूर लें। दूसरे, किताब में टाइपिंग करते समय कुछ शब्दों की अशुद्धियाँ रह गयी हैं, आशा है अगले संस्करण में इनको दूर कर दिया जाएगा। कहानियों में कुछ पत्रों के नाम बार-बार दोहराते हैं, जो पाठक के मन में उलझन जैसा कुछ पैदा करते हैं। हांलांकी लेखिका ने पहले ही इस तरफ इशारा तो किया है कि कुछ नाम उनको बेहद पसंद हैं लेकिन पाठक को एक कहानी से दूसरी कहानी पर जाते समय उलझन न हो, इस बात का ख्याल भी करना चाहिए।

कुल मिलाकर कहानियाँ बहुत सुंदर और किताब बहुत बढ़िया है। मैं रंजना जी के उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ और इस समीक्षा को यहीं विराम देता हूँ।

राजीव पुंडीर
20/02/2020