Monday, March 25, 2019

साक्षात्कार श्रीमती रंजना प्रकाश



1॰ रंजना जी, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है । कृपया पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दीजिए । 


मैं केवल हाउस मेकर, गर्व से कह सकती हूं एक सुगृहणी हूं। मैने परिवार के सभी उत्तरदायित्व पूर्ण समर्पण और निष्ठा से निभाए। पहले काम काज करते हुए लिखती थी, पढ़ती थी
अब बस लिखती और पढ़ती हूं यही छोटा सा परिचय है मेरा ।

2॰ आपने लिखना कब और कैसे शुरू किया ?

शायद  होश संभालते ही। पहले चोरीछुपे  तुकबन्दी, फिर जाने कब लेखन में तब्दील हो गया । कैसे का क्या जवाब दूं...चूंकि एक सिंगर होने के नाते, बालपन से गीत, ग़ज़ल से अटूट नाता हो गया तो गाते गाते गीतों की रचना करने लगी ।

3॰ आपकी अभिव्यक्ति का माध्यम कहानी है या कविता ? आप किसको प्राथमिकता देती है ?

निश्चित ही कविताएं मुझे ज्यादा रुचिकर लगती हैं। वैसे तो किसी भी विधा का लेखन अभिव्यक्ति का माध्यम ही है, परन्तु  मेरे लेखकीय जीवन में कविता का सर्वप्रथम आगमन हुआ, इसलिए कविता मेरी प्रिय विधा है।

4॰ अधिकतर देखने में आया है कि सभी लेखक, लेखिकाएं  अपनी रचनाओं में अपने ख़ुद के जीवन में घटित घटनाओं को ही आधार बनाकर कहानियां और कविताएं लिखते हैं। क्या आपकी रचनाएं भी आपके जीवन का प्रतिंबिंब  हैं? 

हूं ,,,,ये थोड़ा जटिल प्रश्न है ,,,,पर मैं ईमानदारी से जवाब दूंगी । ये सच है लेखक अपने बारे में लिखता है, मैं भी लिखती हूं ,,,पर ये अधूरा सच है । मैं केवल अपने बारे में नहीं लिखती । जहां तक गद्य का सवाल है उसमें मैं कम मेरे अपने ज्यादा हैं ,, हां  ,,कविताएं अधिकतर मेरी नितांत अपनी  गाथा कहती नज़र आएंगी ।यद्यपि उसमेँ भी समाज, आसपास की समस्याएं मिलेगी पर कहने में संकोच नहीं है कि मेरी कविताओं में मैं , वो और ईश्वर  विद्यमान है । आप मेरी कविताओं में स्पष्ट  छाप छायावाद की पाएंगे । मैं महादेवी वर्मा जी से  शुरू से ही प्रभावित रही हूं,,,,तो कुछ असर उनका तो है मेरे लेखन में ऐसा कई लोगों ने कहा है , हालाकि मैं उनकी चरण रज भी नहीं हूं ।

5॰ आजकल फेसबुक आदि मंचो पर बहुत अधिक लेखक और लेखिकाएं देखने को मिल रहे हैं । क्या ये मंच आपको पर्याप्त लगते हैं अपने आप को लेखक के रूप में स्थापित करने के लिए ?

हां ,,,,देख रही हूं, इन दिनों जैसे बाढ़ आ गई है लेखकों की । ठीक है सशक्त माध्यम है एक अच्छा प्लेटफार्म भी है फ़ेसबुक ,,,पर ये ही काफी नहीं है ,,ये प्रथम सोपान हो सकता है लेकिन ये मंजिल नहीं है। सफ़र इससे आगे और जटिल है । लेखन का आगाज़ ये हो सकता है अंजाम नहीं ,,, मेरा सभी से विनम्र निवेदन है कि इसे ही लक्ष्य न बनाएं :
ये रास्ता है हम है राही
मुकाम तो ये है नहीं
दूर तलक जाना है ,,,,





6॰ आप किस रूप में  अपनी किताब को देखना पसंद करेंगी सॉफ्ट कॉपी या हार्ड कॉपी  और क्यों ?

निश्चित ही पुस्तक  हार्ड कॉपी में ही भाती है मुझे । दुनिया कितनी भी आगे हो जाए, ये ई-बुक  नहीं पढ़ सकती मैं क्योंकि नई ताजा पुस्तक के प्रथम पृष्ठ को  स्पर्श करते ही जो सुखानुभूती होती है वो अकथनीय है । मुझे यूं लगता है जैसे किसी नवजात  शिशु की कोमल उंगलियों का प्रथम स्पर्श, नवल विकसित पुष्प का प्रथम दर्शन, जैसे किसी नन्ही नवेली उषा की उजली प्रथम किरण का स्पंदन ,,,क्या कहूं जवाब लंबा हो जाएगा ,, हां ये तय हो गया इस पर भी कविता लिखूंगी ,,अभी अभी विचार आने लगे है ,जल्द ही एक नई कविता की आहट सुन पा रही हूं ।सुंदर सवाल लाए हैं आप।
पिछले दिनों ही चार लाइन लिखी है  फ़ेसबुक में पोस्ट की थी ,,,
    काग़ज़ पे लिखना
    काग़ज़ को पढ़ना
    इससे बेहतर ,,,,
    कुछ  भी नहीं ,,
एक कतरा भी काग़ज़ का मै बरबाद नहीं कर सकती ,,,


7. आपके जीवन में पैसा अधिक महत्वपूर्ण है या प्रसिद्धि ?

ये सवाल आपने मुझसे पिछले  साक्षात्कार में भी पूछा था । मेरा जवाब आज भी वही है ।फिर दोहराती हूं, दोनों ही नहीं । मुझे लेखन से जो तुष्टि और राहत मिलती है वो  सुख मेरे लिए सर्वोपरि है । प्रसिद्धि ,पैसा जब आना होगा तो आयेगा इनके पाने से पूर्व को संतोष रूपी धन प्राप्त हो जाता है, मैं मालामाल हो जाती हूं । दूसरी  सम्पदा है मेरे लिए मेरे पाठकों की प्रतिक्रिया ,,ये अनमोल धन है अक्षय ।

8. एक लेखक के लिए क्या जरूरी है उसके अंदर का कलाकार , उसकी शैक्षणिक योग्यता  या फिर कुछ और ? 

निश्चित ही इन दोनों  की आवश्यकता तो होती है, पर इनके होते हुए भी हम कुछ नहीं कर सकते। यदि हम में लेखन के प्रति निष्ठा, लगन और पूर्ण समर्पण न हो । लिखने का जुनून बेहद ज़रूरी है । मैं स्टोर रूम, बॉक्स रूम, भीड़भाड़ में कहीं भी लिख लेती थी, टेबल कुर्सी मिले , न मिले ।आज भी सोते हुए भी कोई ख़्याल आता है तो आधी रात, तत्काल उठ कर लिखती हूं ,तभी नींद आती है । ये बिल्कुल सच है कि ये लगन ही हमें लेखक बनाती है । ऐसा  मेरा मानना है।

9. आपका आगे क्या लिखने का इरादा है  ?

क्या कहूं ,,,,लिखती ही रहती हूं कभी लेख ,, कभी कहानी या फिर गीत या ग़ज़ल । दो उपन्यास पूरे हो चुके हैं,,,दोनों  - अनावरण - और सिंदूरखेला  प्रकाशित हो चुके है. कविता संग्रह यादें है। आज कल बड़ी कठिन प्रक्रिया हो गई है । तीसरे उपन्यास पर अभी काम चल रहा है ।अब तो यही काम है मेरा सो लिखती रहती हूं ।
स + हित = साहित्य कहलाता है । कामना यही है जो हितकर हो वही लिखती रहूं ,जब तक  सामर्थ्य है,,,बाकी तो हर इच्छा भगवान की ।
॰10. नए उभरते कवियों और लेखकों के लिए आपका क्या सन्देश है  जिससे वो साहित्य में ठीक से अपना योगदान दे सकें ?

सामयिक सवाल है आपका ,,लेखकों ,,कवियों की भीड़ है इन दिनों । ये भी सच है कि बहुत लोग अच्छा भी लिख रहे है । परंतु  अधिकतर लोग शार्ट कट अपनाने का प्रयास करते हैं ,, लेखन ही क्या जीवन में ही शार्ट कट से बचना चाहिए ,,जल्दबाजी शतप्रतिशत  रिज़ल्ट नहीं दे सकती । श्रेष्ठता के लिए लंबी राह श्रेयस्कर है । खूब पढें , सुचिंतन , मनन  करें , सूक्षमाविलोकी बनें ,,ध्यान रहे नकल से परहेज़ करें ,,नैसर्गिकता में जो सौंदर्य है वो कहीं नहीं ।
अंत में मेरी ही दो  पंक्तियां  कहना चाहूंगी ।

तमाम लंबी उम्र का अफसाना
चन्द  लमहों  में बताऊं  कैसे ,,,,,

कोई भी साक्षात्कार  कभी  पूर्णता को नहीं प्राप्त हो सकता ।

धन्यवाद ,,,नमस्कार ,,,



***

Sunday, March 24, 2019

The Day Before I Died (Matroyshka) : By Ashi Kalim

Introduction :
Some stories, specially from our recent past aka modern history are so mysterious and intriguing that they compel us to find the truth and to go deep into them. This is a natural human nature. Perhaps, driven by the same, Ashi Kalim, the writer has tried to look into the life of a mysterious character of the daughter of Stalin named Svetlana through this novel. This book is published by Notion Press and available at Amazon.in

The Story:
Kunvar Brajesh Kumar Singh, a young man from India, fascinated by communism, goes to Russia to learn the tenets of communism under Stalin, the dictator of Russia. There he happens to meet his daughter Svetlana who Stalin calls his doll, also an active member of communist party. Attracted by his grand personality, Svetlana is attracted to him and eventually they fall for each other - perhaps in love, as both of them were not sure what they felt for each other in initial days.The story travels from Russia to India and finally concludes in USA in getting asylum for Svetlana. To know more about the fate of their love and all this maze like story, go through this interesting book.


Review:

Ashi Kalim, the author, took a challenge by choosing a story based on the love an Indian boy who is rather innocent in comparison of his love interest Svetlana; the daughter of a dictator known for his cruelty. In this endeavour the author did meticulous research, visited the related places, interviewed the people connected and gathered enough material and evidence. Keeping in view of the potential of the author, and the material she collected, this story could have been expanded more spreading it on at least 190 pages instead of only 90 pages. A novel is reduced to a novella. Perhaps, the author got so excited to publish a book on this subject that she penned it in haste as the story, in spite of running in a smooth flow, takes a tumultuous jumping route and ends up quickly missing many links, crossing gaps and overflowing at other places. The writer should work more on story and plot development of a novel of which she has an acumen but not applied.
The other compartment of improvement is its editing because if a reader finds a blunder in the very first line of any novel or a story, it puts a question mark on his/her ability to write. So without discounting the ability of writer, I sincerely advise the author, not only to re-edit it but to re-write the whole lot of manuscript filling all the gaps and joining all the missing links to make it a compelling read. Right now it is taken just as an extended story.

The writer Ash Kalim has a big potential of penning more books and I wish all the best for her future projects.

Ratings : 2.5/5

Rajeev Pundir
25/03/2019