Wednesday, December 6, 2017

साक्षात्कार: मुदित बंसल - एक बहु मुखी प्रतिभा से एक शाम एक रोमांचक मुलाक़ात I

"जो लोग ये कह रहे है कि फिल्मे नायक की वजह से चलती है ,लेखक की वजह से नही उनको यह पता होना बेहद जरूरी है कि एक लेखक ही एक मात्र वो है जो किसी कहानी का पिता और माँ दोनों होता है ।" ये कहना है एक प्रतिभाशाली युवा कलाकार, लेखक, कवि और फ़िल्म समीक्षक का I जानिये बहुमुखी प्रतिभावान मुदित बंसल के बारे में जो अपनी बात बेबाक रूप से कहने के लिए मशहूर हैं :

मुदित जी, मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है I सबसे पहले आप पाठकों को अपना संक्षिप्त परिचय दें I

नमस्कार स , मैं मुदित बंसल, मेरा जन्म मेरठ के क़स्बे सकौती में हुआ, मेरे परिवार में मेरे पिता माता और बड़े भाई हैं एवं इंटरमीडिएट तक मेरी शिक्षा हिंदी मीडियम में हुई उसके बाद मैंने कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया ।

कला में आपकी रूचि बचपन से ही रही है I बचपन में आपने कला के किस क्षेत्र को अपने अंदर अनुभव किया और कैसे विकसित किया ?

जी हाँ मुझे बचपन से ही रंगों से बहुत प्यार रहा है I अक्सर मुझे चित्र बनाना और उनमें रंग भरना आज भी बहुत पसंद है, आज भी मेरे पास मेरे बचपन के रंग रखे हुए हैं और कला के दूसरे क्षेत्र की बात करू तो  6/7 क्लास के दौरान ही मुझे मेरा पहला पुरस्कार एक फिल्म सम्बन्धित प्रश्न पर ही मिला था जिसके कारण ही शायद मैं फिल्म समीक्षा लिखने लगा हूँ और रही बात कला के अन्य शौक की तो मेरी माँ को भी कला मे बेहद रुचि रही है शायद उनके ही कुछ गुण मुझ में समाये हो ।


आपने कंप्यूटर साइंस में बी टेक किया है फिर भी रंगमंच को आपने अपना कैरियर बनाया I क्यों ?

सर,  मैंने बी टेक के दौरान महसूस किया कि मैं एक जगह स्थिर नहीं रह सकता, मेरा कम्पटीशन किसी से नहीं बल्कि खुद से ही है ...मुझे भी वही करना चाहिये जिससे दिल को संतुष्टि मिले और हाँ सर मेरी चाहत है कि लोग मुझे मेरे आर्ट वर्क से ही जाने ।

रंगमंच की विधा दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में एक आभिजात्य वर्ग की पसंद बनकर रह गयी है I आप मेरठ से हैं और मेरठ जैसे मध्यम श्रेणी के शहरों में रंगमंच का क्या भविष्य है ?

बहुत अच्छा प्रश्न है सर ,रंगमंच की विधा एक क्लास वर्ग तक ही सीमित रह गयी है अगर बात अपने मेरठ शहर की करू  तो अधिकतर लोग इस विधा से अंजान ही है जिसके कई कारण हो सकते है पर दिलचस्प बात ये है कि कुछ क्लास वर्ग के लोग इस दिशा में चाहत रखने के बावजूद  मेरठ जैसे शहर में कहीं न कहीं मजबूरन खो ही जाते हैं ।

क्या आपको लगता है कि निम्न मध्य वर्गीय लोग, जो अधिकतर सिनेमा ही देखना पसंद करते हैं, वो कभी रंगमंच की तरफ़ आकर्षित होंगें? और इसके लिए हमें क्या करना होगा ?

जी मैं यहाँ निम्न मध्य वर्गीय में एक शब्द जोड़ना चाहूंगा 'एक तबका' जिसमे निम्न वर्ग के साथ साथ उच्च वर्ग /पढ़े लिखे दर्शक भी शामिल है वो सभी रंग मंच तो क्या, आर्ट सिनेमा /पैरेलल सिनेमा तक नहीं देखना चाहते, हाँ वो देखते है तो बस कमर्शियल सिनेमा जिस कारण हमारे सिनेमा के स्तर में गिरावट जारी है I रही बात उनके रंगमंच की ओर आकर्षित होने की तो इसके लिये हमें ही रंग मंच की परिभाषा को बदल कर थोड़ा सा कमर्शियल भी करना होगा शायद तभी वो तबका इस ओर भी झुके ।




आप रंगमंच से जुड़े हुए हैं और एक फ़िल्म समीक्षक भी हैं, आपकी नज़रों में किसका पलड़ा भरी है – कला के हिसाब से और पेशे के हिसाब से दोनों में क्या फ़र्क है ?

जी इस प्रश्न का जवाब देना मेरे लिये बेहद कठिन है , कला और पेशे के हिसाब से दोनों ही अपनी जगह स्टीक हैं ,पर ख़ुद को मैं एक फिल्म समीक्षक के नजरिये से देखूं तो दूर दूर तक आपके पाठक वर्ग बन जाते है जिस कारण ही मुझे देश के हरेक कोने से लोगों का प्यार मिल रहा है I लेकिन  रंग मंच एक ऐसा माध्यम है जिसमें आप एक सीमित दायरे में रहकर खुद को निखार पाते है, और पेशे के दृष्टिकोण से देखे तो आजकल तो दोनों में भरपूर मात्रा में अच्छा स्कोप है ।

रंगमच का एक व्यक्ति जब फ़िल्म को देखता है और उसकी समीक्षा करता है, आपको नहीं लगता कि उसका दृष्टिकोण कहीं न कहीं उसकी समीक्षा को प्रभावित कर सकता है I स्पष्ट भाषा में कहें तो भेदभाव पूर्ण भी हो सकता है ? आप इसमें किस तरह से सामंजस्य बिठाते हैं ?

जब हम रंगमंच की दुनिया में होते है तो एक ख्व़ाब में डूबे हुए होते है लेकिन जब समीक्षा होती है तो उस ख्व़ाब के सच हो जाने की हक़ीक़त को लिखना/ बयान करना होता है । स्पष्ट तौर पर कहूँ तो सर आजकल काफी क्रिटिक्स पेड रिव्यु भी करते है जिसमें भेदभाव की भावना अलग ही झलकती है  पर बात मैं स्वयं की करूँ तो मुझे पैरेलल सिनेमा बहुत पसन्द है और मैं आर्ट/ पैरेलल को अपनी सूची में एक प्रेमी के तौर पर सर्वोच्च स्थान पर ही रखता हूँ अब इसको भेदभाव की नजर से देखें या कला के माध्यम से ,ये सामने वाले पर निर्भर करता है ।

आपने साहित्य लेखन में कब क़दम रखा और ये आपके कार्य में कितना सहयोगी है ?

जी बीटेक के दिनों की बात है हम कुछ चुनिंदा दोस्तों ने फेसबुक पर एक ग्रुप बनाया था जिसमें अक्सर हम शौकियाना तौर पर फिल्मों के डायलॉग्स/ समीक्षा लिखते थे, उस वक़्त कतई ये अंदाजा नहीं था कि ये पैशन ही एक दिन प्रोफेशन बन जायेगा और मेरे यहां तक पहुचने का श्रेय मैं  उस ग्रुप के हरेक सदस्य को देता हूँ I खैर इंजीनियरिंग पूरी करने के बाद मेरी कई रचनायें एक काव्य संग्रह में प्रकाशित होना और उसके बाद साहित्य में आगमन 'युवा टैलेंट अवार्ड' की प्राप्ति ने मेरे अंदर एक नयी ऊर्जा का संचार किया और अब निरंतर लिरिक्स लिखना मेरे लिये काफी चुनौतीपूर्ण एवं महत्वपूर्ण भी हो गया है ।


आप फिल्म निर्देशन में भी अपना दख़ल रखते हैं I कुछ लोग कहते हैं कि निर्देशन और  अभिनय दोनों अलग-अलग विधाएं हैं I क्या आप इससे सहमत हैं ? कृपया समझाएं I

जी सर मैंने सहायक निर्देशक का थोड़ा काम किया है जिसमें मैंने निर्देशन से सम्बंधित कई बारीक़ चीज़ो को जाना है , निर्देशन और अभिनय की बात हो तो मैं निर्देशन को अभिनय से ऊपर का दर्जा देना चाहूँगा ।


देखने में आ रहा है कि फिल्म क्षेत्र कुछ लोगों का ही अधिकार क्षेत्र होकर रह गया है और नए लोगों के लिए, विशेषरूप  से नए लेखकों के लिए इसमें कोई स्थान नहीं है I कुछ बड़े कलाकार ये कह भी चुके हैं कि फ़िल्में नायक की वज़ह से चलती हैं, लेखकों की वज़ह से नहीं I आपका इस विषय में क्या कहना है ?



बिलकुल सही कहा सर, जो लोग ये कह रहे है कि फिल्में नायक की वजह से चलती हैं, लेखक की वजह से नहीं उनको यह पता होना बेहद जरूरी है कि एक लेखक ही एक मात्र वो है जो किसी कहानी का पिता और माँ दोनों होता है । आजकल तो सर एक ट्रेंड काफी चल रहा है 'घोस्ट राइटिंग' जिसका सीधा सा मतलब  है नाम किसी का और काम किसी का ...खैर जैसे इंसान को औलाद के सामने झुकना ही पड़ता है उसी तरह से कोई बड़ा कलाकार एक लेखक पर ही अपनी टीस निकालता है।

फिल्म नगरी, जिसे बॉलीवुड के नाम से जाना जाता है , में हम देखते हैं कि एक व्यक्ति ही सब कुछ करना चाहता है – डायरेक्टर से लेकर, लेखक, गीतकार और संगीतकार सब कुछ I ऐसा क्यों और ये फिल्मों को किस दिशा में लेकर जाएगा ?

बेहद स्टीक प्रश्न या कहूँ आपने कहा है एक कड़वा सच ।
जी यहाँ अधिकतर लोगो का ध्येय हो चला है कि हिट होना है बस हिट होना है, चाहे कला को किसी भी रूप में वो परोसे उन्हें ये फर्क नहीं पड़ता कि समाज में इसका क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा वैसे सर इसके लिये हम ही स्वयं जिम्मेदार है I अधिकांशतः हमारा समाज आजकल वो सब चीजें स्वीकार करने लगा है जिसको हमारी संस्कृति इज़ाज़त नहीं देती या कहें हमें एक एडल्टहुड / वल्गर की आदत हो गयी है जिसका हालियां उदाहरण कुछ बेतुकी फिल्मो का हिट होना रहा है । और कुछ लोग इसका ही फ़ायदा उठा रहे हैं जो भविष्य में घातक हो सकता है I

आपके अंदर एक लेखक, कवि, कलाकार और गीतकार भी मौज़ूद है, अपने भाव प्रकट करने के लिए आप किस माध्यम को प्राथमिकता देते हैं और क्यों?

जी sir ☺️☺️ मैं अपने आप को कवि नहीं मानता ☺️
हाँ ..मैं अपने भाव एक गीतकार के रूप में व्यक्त करना पसंद करता हूँ जिसको अक्सर मैं इंस्ट्रुमेंटल सुनते वक़्त लिखता हूँ ।


हाल ही में फ़िल्म ‘पद्मावती’ को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ गयी है I फ़िल्म का भारी विरोध हो रहा है I क्या एक कमर्शियल फ़िल्म बनाने के लिए इतिहास और उसके पात्रों के चरित्रों से छेड़छाड़ करके मनघढ़ंत चटपटी कहानियां दर्शकों के सामने परोसना सही है ?

जी सर, जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते है ठीक उसी तर्ज़ पर पद्मावती को लेकर विरोधाभास जारी है । जहां हम एक तरफ इमेजिनेशन की बात कर रहे है तो दूसरी तरफ पौराणिक इतिहास का जिक्र । यहाँ तक भी कहा जा रहा है ये मलिक मुहम्मद जायसी जी की कविता का एक काल्पनिक पात्र है जिसके सापेक्ष अभी शोध चल रहा है , पर सर मेरे हिसाब से तो जिस किरदार में एक शौर्यगाथा लिखी हो या वो एक प्रेरणादायीं किरदार हो तो उसके चरित्र के साथ छेड़छाड़ करके कमर्शियल परोसना सही नहीं है I सर मैंने कहा ना इसके लिये हम सब स्वयं जिम्मेदार है क्योंकि हमारा एक तबका आर्ट सिनेमा को तरज़ीह न देकर  इसी तरह के कमर्शियल सिनेमा में जकड़ा हुआ है ।




‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर लोग कुछ भी करने लगते हैं I इसकी आड़ लेकर देशद्रोही नारे लगाना और दूसरे की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना एक फैशन बन गया है I इस विषय में एक युवा कलाकार और लेखक होने के नाते आपका क्या मंतव्य है ?

'अभिव्यक्ति की आज़ादी' ये शब्द पिछले दो सालों से कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहा है ,रही बात धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचाने की, यह ट्रेंड निरंतर अग्रसर है ,यह प्रथा तो हम प्राचीन काल से ही देखते आ रहे है जैसे समुन्द्र मंथन के समय देवों और राक्षसों के मध्य जो विरोधाभास उत्पन्न हुआ था वो बदस्तूर आज भी जारी है भले ही उसका रूप कोई भी हो जो कि सरासर ग़लत है I


कला और साहित्य के क्षेत्र में आने वाली नयी पीढ़ी, जो आपके समकालीन है, को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे जिससे वो ठीक तरीके से अपने व्यक्तित्व का विकास और साहित्य में उचित योगदान कर सकें  ?


जी, आजकल हम एक ही भेड़ चाल में चल रहे है अगर मैं अपने समाज की बात करूं तो हम ऐसी सोसाइटी में जी रहे है जहां हर किसी का एक ही तकिया कलाम है - एक अच्छी डिग्री पर नौकरी को ही सलाम है I यह बात मैं किसी के ऊपर नही ख़ुद पर लेता हूँ ,यहां पर एक आर्टिस्ट को उड़ने के लिये उसको आसमान देना तो दूर बल्कि उसके पंख नोचने के लिये  लोग तत्पर रहते है (पर जिक्र करना चाहूंगा मैं अपने कॉलेज के कुछ ख़ास दोस्तों का जो अक्सर मुझे कुछ नया करने के लिये हमेशा प्रेरित करते रहते है ) वैसे सर जो युवा इस क्षेत्र में आना चाहते है मैं उन्हें यही कहना चाहूंगा कि सबसे पहले खुद से ही बात करियेगा ...की आपको कौन सा आसमान चाहिये और जितनी ज्यादा रेस्पेक्ट आप आर्ट की करोगे उतना ही अच्छा आप आर्टिस्ट बनोगे और रही बात व्यक्तित्व के विकास की तो दूसरों को सम्मान देना हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है ।

आप देश के ऐसे पहले फिल्म समीक्षक है जो तीन अख़बार के लिये फिल्म समीक्षा लिखते है ,ऐसा जानकर कैसा लगता है आपको ?
 जी इतना तो मैंने ख़्वाबों में भी नही देखा था, मुझे सबसे ज़्यादा तो ख़ुशी तब मिलती है जब अंजान पाठक मेरे लिये  शुभकामनाएं सन्देश भेजते है और उन्हें मेरे पेरेंट्स प्राप्त करते  है ।

पिछले कुछ दिनों से डायलॉग्स के चलते आप युवाओं में काफी चर्चित हो रहे है, क्या ये डायलॉग्स आपकी निजी जिंदगी से प्रभावित है ? अगर नही तो क्या आपने अपनी निजी जिंदगी को भी लिखा है ? 

जी मैं आभार व्यक्त करता हूँ सभी पाठक वर्ग का..सभी युवाओं का जो मेरे डायलॉग्स को पसंद कर रहे है । सर अगर  निजी जिंदगी की बात करे तो हरेक इंसान के आगे विषम परिस्तिथियाँ आती हैं ,मैं भी उस दौर से गुज़रा हूँ, मैंने अपनी कहानी को 'मैं लिखता हूं' सीरीज में व्यक्त किया है जिसको कई साहित्यिक ग्रुप में सराहाना मिल चुकी है और जल्द ही एक पब्लिकेशन हाउस ने उसको प्रकाशित करने का फैसला भी किया है ।

आप अपने आने वाले उपन्यास और कहानी संग्रह के बारे में पाठकों को कुछ बताएं कि किस विषय पर आधारित हैं और क्यों ?

जी अभी तक मेरे 6 काव्य संग्रह प्रकाशित हुए है जिसमें मैंने सह लेखक की भूमिका में गीत लिखे हैं I बात आगामी किताबो की करूँ तो  एक फिक्शन स्क्रिप्ट 'PANKH - A Story of Love, Passion & Solitude ' है जिसकी रिलीज़ में स्पांसरशिप की वजह से देरी हो रही है और एक अनाम किताब और है जिसकी जानकारी अभी सार्वजानिक नही की गयी है ।


आपको इतनी कम उम्र में इतने सारे अवार्ड्स मिल चुके हैं, इसके लिए बहुत बहुत बधाईयां I मेरी शुभकामनाएं हमेशा आपके साथ रहेंगी I

 जी बहुत बहुत धन्यवाद । शुक्रगुजार हूँ रब का जो मुझे सभी लोगों का स्नेह,प्यार ,आशीर्वाद भरपूर मात्रा में मिल रहा है ।
अवार्ड्स मिलने से ख़ुशी तो बहुत होती है पर साथ ही आगे कुछ नया करने के लिये जिमेदारी का एहसास जन्म ले लेता है ।


अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद् I

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