Friday, January 26, 2018

समीक्षा : सफ़र रेशमी सपनों का - द्वारा वर्षा गुप्ता रैन

प्रस्तावना:
किसी लेखक की भावनाएं जब संगीतमय हो जाती हैं तो कविता का जन्म होता है I जैसे संगीत में सात सुर होते हैं, ठीक वैसे ही कवितायें भी भिन्न-भिन्न लय और ताल के साथ क़दमताल करते हुए लेखक के ह्रदय से निकल कर कागज़ पर उतर जाती हैं I ऐसी ही ढेर सारी छोटी-बड़ी, हंसती, गाती और कभी चीखकर आर्तनाद करती कविताओं का एक संग्रह है - सफ़र रेशमी सपनों का जिसे वर्षा गुप्ता 'रैन' ने बड़ी शिद्दत से लिखा है I

यह एक व्यापक कविता-संग्रह है और वर्षा जी ने इसको दस खण्डों में विभक्त किया है :
दुनिया चाँद सितारों की
सपनों भरा सफ़र
बिना मात्रा की कवितायें
माँ
औरत - शांति या शक्ति
ज़िन्दगी क्या है
कलम और कविता
प्यार एक अहसास
ग़रीबी
सीख ज़िन्दगी की

ये संग्रह लिखते वक़्त वर्षा जी सफ़र निश्चित रूप से बहुत लम्बा रह होगा :
"बात बड़ी महंगी पड़ी, निभी नहीं ये सस्ते में I
मंजिल पर पहुँच कर बतलाऊंगी,
क्या-क्या हुआ था रस्ते में II"

वर्षा जी ने एक नया प्रयोग किया जो ध्यान देने योग्य है - बिना मात्रा की कवितायें :
"कनक सम बदन, रजत सम मन
अधर लगत जब हंसत
लटकन पहन चल मटक मटक..."
भटक मत बहक मत चल फ़लक तक चल II"


माँ के लिए :
सजदे में सर झुकता है तो याद आती है तेरी I
तेरे स्नेह के क़र्ज़ में डूबी है हर सांस मेरी II

पिता के लिए भी :
कुछ दायरे बंदिशें नहीं बंधन हैं
पिता का साया जैसे वृक्ष चन्दन है II

लिखते-लिखते वर्षा जी सच्चे प्यार पर पहुँच जाती है, देखिये :
"बारिश की बूंदों में जो चेहरे के आंसूं पहचाने, वही सच्चा प्यार है I"

लेखिका को पता है कि प्यार में बिछड़ना तो होगा ही इसीलिए समझाती हैं :
वापस न आऊँ तो गम न करना
अपनी यादों के घेरे कम न करना II
मेरा प्यार हमेशा तेरे साथ है
दिल से जुदाई को क़ुबूल न करना II

ये एक सुखद आश्चर्य है कि वर्षा जी ने जीवन के हर पहलू पर लिखा है जिसमे चाँद-तारे, सुख दुःख, माँ-बाप, भाई-बहन, प्रेमी-प्रेमिका, प्रेम-अप्रेम, मिलन-जुदाई सभी विषय समाहित हैं. एक समग्र, संवेदनशील, चिर-चिंतातुर लेखक ही ये असाधारण काम कर सकता है जो वर्षा जी ने बखूबी कर दिखाया है I मैं इसके लिए वर्षा जी को ह्रदय से बधाई और शुभकामानाएं देता हूँ कि वो सतत इसी प्रकार अपनी लेखनी से रंग भरती रहें I


हिचकियाँ :
एक लेखक के लिए संवेदनशील होना और भावनाओं को अपने लेखन और कविताओं में उतारने की कला रखना बहुत ज़रूरी है जो वर्षा जी में शत-प्रतिशत विद्यमान है लेकिन इसी के साथ-साथ भाषा का पूर्ण ज्ञान जो कुछ अलग हट के हो और उचित और विशिष्ट शब्दों का चयन जो आपकी लेखनी में धार और विशेषता प्रदान करे, बहुत ज़रूरी है I मैं वर्षा जी से कहना चाहूँगा की आप अपने लेखन को खूब परिमार्जित करें फिर दूसरा संग्रह लेकर आयें जिससे समकालीन कवियों में आपको यथोचित स्थान मिल सके, जिसके आप हक़दार हैं I इसके अतिरिक्त इस कविता-संग्रह को दोबारा संपादित करें क्योंकि इसमें बहुत सारी अशुद्धियाँ रह गयीं हैं जिससे पाठक का पढ़ने का आनन्द और तारतम्य टूट जाता है I

आपके आगामी संग्रह की प्रतीक्षा रहेगी I शुभकामनाएं I


रेटिंग : 3/5

राजीव पुंडीर
25 Jan 2018




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