Saturday, July 28, 2018

समीक्षा : "अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार" लेखिका विजयश्री तनवीर

प्रस्तावना :

लेखिका विजयश्री तनवीर का पहला कहानी संग्रह 'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' जो अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ है, मैंने पढ़ा और जो कुछ भी मैं इस संग्रह से ग्रहण कर पाया हूँ, आप सब के सामने प्रस्तुत करता हूँ । इसे प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म प्रकाशन ने । कुल 120 पन्नों की ये किताब अपनी नौ कहानियों में कई रोचक किरदार, कई राज़ और बहुत सी भाव - भंगिमाएं समाये हुए है जिन्हें पढ़ते हुए आप ख़ुद भाव -विभोर हो उठेंगे ।

कहानियां :
पहली कहानी 'पहले प्यार की दूसरी पारी' एक ऐसे व्यक्ति की है जो अपने पहले प्यार से आठ साल के लम्बे अंतराल के बाद मिलता है और जो बातें उन दोनों के बीच होती हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है कि उन दोनों ने ही अपनी-अपनी स्थिति को स्वीकार तो कर लिया है मगर कहीं-न-कहीं उस प्यार की कसक बाक़ी तो है - जब औरत कहती है, "मैं तो तुम्हारी मजबूरियों और प्राथमिकताओं को याद करती हूँ ।" क्या उसने ये बात अपनी ख़ुशी से कही थी या ये एक व्यंग था, पढ़ने पर मालूम हो जाएगा ।
दूसरी कहानी 'भेड़िया' एक आदमी के अपराधबोध पर आधारित है जो उसके मन में इस क़दर समा गया है कि उसे हर तरफ़ एक खूंखार भेड़िया दिखाई देता है जो उसे खा जाने पर उतारू है । "मौत वो सबसे बुरी चीज़ नहीं जो हमारे साथ हो सकती है, बिना मौत भी हम कई बार मरते हैं ।" ये वाक्य कहानी की धुरी है ।
अब आपकी मुलाक़ात होती है अनुपमा से जिसके किरदार की तर्ज़ पर इस संग्रह और तीसरी कहानी का नाम  'अनुपमा गांगुली का चौथा प्यार' रखा गया है । ये कहानी  एक औरत को एक व्यक्ति के नैसर्गिक रूप में प्रस्तुत करती है । अपनी कमसिन उम्र से लेकर अब तक उसके मन में कितने लोगों ने प्रेम की चिंगारी लगाई, इसको उसी के माध्यम से लेखिका ने उघाड़ कर आपके सामने रख दिया है । लोकल ट्रेन में यात्रा के माध्यम से उसके जीवन में कितने संघर्ष और कष्ट हैं उनसे भी रु-ब-रु होते हुए आप कहानी के अंत तक की रोमांचक यात्रा करते हैं । "कैसे अचानक ही हमारे प्रेम का विस्थापन किसी दूसरे पर हो जाता है," यही इस गुदगुदाने वाली कहानी का केंद्र बिंदु और फलसफ़ा है ।
अगली कहानी सुकेश प्रधान और शैफाली की है - 'समंदर से लौटती नदी' सुकेश एक आर्टिस्ट है और शैफाली उसकी फैन जो उसकी पड़ोसन के रूप में उसके जीवन में जबरन घुस आती है और फिर हालत उनको वो सबकुछ करने का मौका देते हैं जो 'शायद' नहीं होने चाहिए । ये एक ऐसी कहानी है जो क़दम क़दम पर आपको सावधान भी करती है क्योंकि जो सुकेश के साथ हुआ वो किसी भी पुरुष के साथ कभी भी हो सकता है । "सचमुच उन्हें शैफाली चाहिए थी । उनके कैनवास को, उनके कलाकार मन को, उनके अंदर के चिर अतृप्त पुरुष  को ।" क्या पुरुष वाकई अतृप्त होते हैं ? क्या किसी की आसक्ति को प्रेम कह सकते हैं ? इन सवालों के उत्तर ढूंढती एक कहानी I
आइये पांचवीं कहानी में चलते हैं । कहानी का नाम है 'एक उदास शाम के अंत में' । किस प्रकार से एक औरत अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए एक व्यक्ति की भावनाओं से खेलती है, इस कहानी में लेखिका ने बखूबी दर्शाया है । "मिरेकल्स हैपन धीर, आई गाट द वर्ल्ड !" क्या था वो 'वर्ल्ड' ये जानने के लिए पढ़िए इस किस्से  को जो आपको भी उदासी से भर देगा ।
आगे मेरी मुलाक़ात हुई एक 'खिड़की' से जो अपने में कई सारे राज़ समेटे हुए है जिनको जानने के लिए अँधेरी घुप्प रात में आपको इस खिड़की पर खड़े रह कर कुछ देर तक अपना समय ज़ाया करना होगा । जैसे जैसे राज़ खुलते जायेंगे वैसे वैसे आपके मन में एक अनचाहा डर घर करता जाएगा । हमारे समाज में लुका छिपी चलने वाले खेल आपको सोचने पर मज़बूर कर देंगे । "फोर्टी क्रॉस्ड, डेडली अमेजिंग I" जब आपकी बीस साल की लड़की ये कहे तो आप भी चौंक पड़ते हैं । रियली अमेजिंग स्टोरी !
"ये वाहियात औरतें जाने कैसे किसी भी खाँचें में अपने -आपको फिट कर लेतीं हैं ।" आखिर वो ऐसा सोचने पर क्यूँ मजबूर हुई ? क्या हुआ था उसकी ज़िन्दगी में कि औरतों से उसे एक प्रकार की चिढ़ होने लगी थी । क्यों उसको अपने पति से कहना पड़ा - "मैं आपकी कहानी का कोई किरदार नहीं !" एक व्यक्ति के व्यक्तित्व (शायद दोहरे) को खंगालती ये एक अदभुत कहानी है - "खजुराहो" ।
पन्ना पलटते ही आपकी मुलाक़ात एक डॉक्टर की क्लिनिक पर बैठी दो औरतों से होती है जिनके वार्तालाप में आप भी दिलचस्पी लेने लगते हैं जब पहले वाली दूसरी से कहती है - "भरोसा करना अच्छा है, न करना और भी अच्छा ।" किसी को अथाह प्रेम करने के बावजूद भी हम क्यूँ किसी पर भरोसा नहीं कर पाते और कुछ तो है कि हमें अपने फैसले ही नहीं अपने रिश्ते भी बदलने पड़ते हैं - ये कहानी 'चिड़िया उड़' आपको सोचने पर मजबूर कर देगी ।
आगे के कुछ पन्ने 'विस्तृत रिश्तों की संक्षिप्त कहानियाँ' में कुछ खट्टी कुछ मीठी लघु कहानियों  को समेटे हुए हैं, जिनमें से कुछ निहायत ही सुंदर बन पड़ी हैं । आप महसूस कर सकते हैं उस खूबसूरत अहसास को जब एक लड़का अपनी प्रेमिका से कहता है कि अगले जन्म में वो उसका बेटा बनना चाहेगा । मेरे ख्याल से इससे बेहतरीन ख्याल नहीं हो सकता !


समीक्षा :
एक समीक्षक के लिए इससे मुश्किल कोई काम नहीं कि किसी लेखक के लिखे हुए पर कोई टिपण्णी करे । बचपन से ही मैं कहानियां पढ़ता आया हूँ, और तभी से आदमी और औरत के बीच के सम्बन्ध मेरे लिए आकर्षण का विषय रहे हैं । शायद पुरुष के लिए एक स्त्री और एक स्त्री के लिए पुरुष एक सनातन रहस्य है जिसको खोजते खोजते लेखिका विजयश्री तनवीर भी 'अनुपमा गांगुली के चौथे प्यार' तक पहुँच गयी हैं । और इस खोज भरी  यात्रा में जो कुछ मिला उसे अपनी कहानियों में समेट कर आपके सामने एक संग्रह के रूप में प्रस्तुत कर दिया है ।
मित्रों, इस किताब में कुछ ख़ास है वो ये कि जो दूसरी किताबों नहीं मिलेगा और वो है कहानी लिखने का अनोखा अंदाज़ । कहानी लिखने की दो प्रमुख विधाएं हैं । एक है प्रत्यक्ष - जिसमें किरदार सीधे संवाद करते हैं और कहानी को आगे बढ़ाते हैं । दूसरा है अप्रत्यक्ष - इसमें कोई एक किरदार अपने को तीसरे व्यक्ति के रूप में ढाल कर अपनी ही ज़िन्दगी में होने वाली उथल-पुथल, उसमें आने वाले लोग और उन लोगों ने कैसे उसके जीवन को प्रभावित किया इसकी विवेचना करता है । इस पूरी प्रक्रिया में उसके  मन का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है जो उसकी विवेचना के धरातल का काम करता है। इसीलिए लेखिका ने इन कहानियों को मन की कहानियां कहा है ।

ये कहानियाँ आदमी और औरत के प्राकृतिक भाव, संवेदनाएं, गुण और दोष जैसे प्रेम, आकर्षण, आसक्ति, स्वार्थ, तृप्ति, अतृप्ति, शारीरिक और मानसिक आवश्यकताएं आदि पर केन्द्रित हैं जिनका सही और गलत होने का अनुमान और अंतिम निर्णय करने की ज़िम्मेदारी को पाठक के ऊपर छोड़ दिया गया है । इन कहानियों में लेखिका ने पुरुष और स्त्री दोनों को सामान रूप से कटघरे में खड़ा कर दिया है - किसी एक कहानी में अगर पुरुष स्वार्थी दिखाई पड़ता है तो दूसरी कहानी में स्त्री । प्रेम का आवरण ओढ़कर कहीं अगर पुरुष अपनी हवस को तृप्त करता है, तो अगली कहानी में स्त्री भी वही सबकुछ करती दिखाई पड़ती है । इस प्रकार निष्पक्ष रूप से किरदारों को गढ़ने के लिए मैं लेखिका को बधाई देता हूँ क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुरुषों को कामी , कठोर, भाव शून्य और स्वार्थी माना जाता है जबकि स्त्री अभी भी अबला ही है । हांलांकि ऐसा बिलकुल नहीं है, ज़माना बदल चुका है  - स्त्री भी उतनी ही कामी, कठोर और स्वार्थी हो चली है जितना के पुरुष । इन सब चीज़ों को लेखिका ने अपनी कहानियों और किरदारों के माध्यम से बखूबी अपनी लच्छेदार भाषा में आपके सामने पेश कर दिया है I

हिचकियाँ :

इस कहानी संग्रह की तमाम कहानियां स्त्री और पुरुष के विवाहेतर संबंधों के इर्दगिर्द घूमती हैं । एक ही विषय पर लिखी गयी और एक ही संग्रह में पिरोहित कहानियां कहीं न कहीं एकरसता उत्पन्न करती हैं और पाठक, जो हर कहानी में कुछ नया ढूँढता है, उसको निराश कर सकती हैं । मेरे हिसाब से एक कहानी संग्रह में भिन्न भिन्न विषयों पर कहानी का चयन होना चाहिए क्योंकि एक ही  विषय के ऊपर सिर्फ कहानी की रूपरेखा बदल जाने से कहानियों में नयापन उस हिसाब से नहीं आता जो एक पाठक चाहता है । दूसरे, आदमी और औरत के कुछ अन्तरंग क्षणों को लिखते हुए भाषा और शब्दों का चयन कुछ ऐसा हो गया है जिसे कुछ लोग अश्लील की श्रेणी में रख सकते हैं । मेरे विचार से इस पर नियंत्रण किया जा सकता था ।

पुन:अवलोकन :

निष्पक्ष भाव से अगर कहूँ तो लेखिका विजयश्री  तनवीर के अंदर चरित्रों के मन के भीतर घुस कर उनके भावों और संवेदनाओं को बाहर लाने की और अपनी लेखनी से कागज़ पर उतारने की ग़ज़ब की प्रतिभा है । वो एक विशिष्ट भाषा शैली और अप्रत्यक्ष लेखन की मल्लिका हैं । उनकी इस प्रतिभा को देखकर मैं कह सकता हूँ कि वो वर्तमान की नहीं वरन भविष्य की लेखिका हैं । मैं उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता हूँ । ये कहानी संग्रह उनकी साहित्यिक यात्रा में एक मील का पत्थर साबित होगा और उनकी आगे यात्रा, जो बहुत लम्बी है, उसको सुगम बनाएगा । उसके लिए शुभकामनाएं ।

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर
29 July 2018










1 comment:

  1. ‘‘ आधी दुनिया के मन में प्यार और सेक्स की चाहत का कैनवास कैसा है वो विजय श्री तनवीर की ‘‘अनुपमा गांगुली का चैथा‘‘ प्यार की कहानियों में देखने को मिलता है। हर कहानी में देह की प्यारी गंध है। इसमें नये मिजाज़ की नौ कहानियां है। इस किताब का नाम ‘‘पहले प्रेम की दूसरी पारी‘‘ भी रखा जा सकता था। इसलिए कि हर कहानी में प्यार की दूसरी पारी का अक्स है।

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