Tuesday, July 17, 2018

ऐसी वैसी औरत - कहानी संग्रह - लेखिका अंकिता जैन - एक समीक्षा

प्रस्तावना :
फेसबुक एक ऐसा माध्यम है जहाँ अधिकतर कूड़ा और कबाड़ ही भरा रहता है I मगर कभी कभी किस्मत से उस कबाड़ के ठीक बीच से हमें कुछ बेशकीमती मोती भी चुनने को मिल जाते हैं I ऐसा ही एक मोती मुझे मिला फुन्नु सिंह की पोस्ट से जिसका नाम है - ऐसी वैसी औरत I ये एक कहानी संग्रह है जिसको लिखा है अंकिता जैन ने और प्रकाशित किया है दिल्ली से हिन्द युग्म ने I आप इस कहानी संग्रह को पढ़कर हिंदी की बेहतरीन कहानियों का आनंद ले सकते हैं बशर्ते आप कुछ सम्वेदनशील हों और कुछ मानसिक आघात सहने को तैयार हों I

कहानियाँ :
इस कहानी संग्रह में कुल दस कहानियां हैं जो बहुत ही शानदार भाषा में लिखी गयी हैं I कहानियों के मुख्य पात्र  स्त्रियाँ हैं जो समाज के भिन्न भिन्न वर्गों से आती हैं I शरू में आपकी मुलाक़ात मालिन भौजी से होती है जो एक ग़रीब तबके से है और परितक्यता होने के बावज़ूद एक जुझारू, बिंदास और रंगीन प्रवृति की है I दूसरी औरत रज्जो फिर से एक परितक्यता है मगर भीरु है जिसे अपने प्रेम को त्याग कर किसी दूसरे व्यक्ति से शादी करनी पड़ती है मगर जब उसका पति उसको छोड़ देता है तो वो घर लौट आती है अपने भाइयों के पास I आगे कुछ प्रत्याशित और कुछ अप्रत्याशित घटता है जो पढ़ने लायक है I आगे आपकी मुलाक़ात समाज में फैली वैश्यावृत्ति और उसके तानेबाने को खोलती बहुत ही मर्मस्पर्शी कहानी से होती है I अगली कहानी में लेखिका ने एक लेस्बियन (सम लैंगिक) लड़की के दर्द को रेखांकित किया है जिसका अहसास आपको भी हो जायेगा I जैसे ही आप आगे बढ़ते हैं आपको मिलती है मीरा जो बहुत ग़रीब है, जिसका पति एक शराबी है और घरों में काम करती है I उसकी बेलौस मुस्कुराहट के पीछे उसके दर्द छटपटा रहे हैं बाहर निकलने को, जिन्हें वो हरदम दबाये रहती है और एक दिन ऐसा कुछ घटता है जो आप सोच भी सकते हैं और नहीं भी I अब एक ऐसी लड़की का प्रवेश होता है जो झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वाली है मगर उसकी आँखों में आसमान में उड़ने की ललक है, झिलमिलाते सितारे हैं और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने के सपने हैं I उसकी शादी भी उसके प्रेमी से होती है I मगर नियति उसे कहीं और ही ले जाती है I आगे आप ऐसी स्त्री से रूबरू होते हैं जो अपर मिडिल क्लास से है नाम है काकू I अकेली रहती हैं मगर सब कुछ होते हुए भी उनके पास कुछ नहीं है, सिर्फ़ ग़मों के सिवाए I अगली कहानी एक अपाहिज लड़की ज़ुबीं की है जिसकी 'सम्पूर्ण स्त्री' होने की इच्छा उससे वो करवा देती है जिसकी कल्पना सिर्फ़ लेखक ही कर सकता है - हांलांकि इस जीवन में यथार्थ और कल्पना में बहुत महीन रेखा है जो दिखाई भी देती है और नहीं भी I आगे आपको एक 'ऐसी' औरत की कहानी पढ़ने को मिलती है जिसको वास्तव में 'वैसी' औरत की श्रेणी में रखा जा सकता है I और अंतिम कहानी - भंवर - जो भाई बहन के रिश्तों एक ऐसे कोण से खंगालती है कि आप हतप्रभ हो जायेंगे I


समीक्षा :

क़रीब 28 साल पहले एक फिल्म आई थी "द बैंडिट क्वीन" जो मशहूर दस्यु सुंदरी फूलन देवी के जीवन पर आधारित थी I जैसे ही फिल्म शुरू होती है, परदे पर फूलन अपने डाकू के वेश में अपनी बन्दूक कंधे पर लगाए प्रकट होती है और दर्शकों की तरफ देख कर बोलती है - बहनचोद ! उसकी आँखों में गुस्सा और नफ़रत का सैलाब है जो किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं वरन पूरे समाज के प्रति है - और ये गाली भी उसने पूरे समाज को दी है किसी एक को नहीं I गाली सुनते ही पूरे हॉल में सन्नाटा छा जाता है, लगता है किसी ने एकाएक ज़ोरदार तमाचा सबके मुंह पर जड़ दिया हो कि मेरी इस दुर्दशा के लिए आप सब लोग भी जिम्मेदार हैं !
अंकिता जैन भी कुछ इसी अंदाज़ में आपको इस किताब को पढ़ने से पहले सावधान कर देती हैं अपने "दो शब्दों" में - "इस किताब की कहानियों में जिन औरतों को मुख्य चरित्र में रखा गया है, वे ऐसे चरित्र हैं, जिन्हें समाज में गू समझा  जाता है I ऐसी गन्दगी समझा जाता है, जिस पर मिटटी डालकर उसे छुपा दिया जाता है  - तब तक के लिए जब तक कि उसे साफ़ करने वाला जमादार न आ जाए; और यदि नौबत ख़ुद साफ़ करने की आ जाए तो साफ़ करने वाले को रगड़-रगड़कर नहाना पड़े I"
अपनी बात को बिना लाग-लपेट के इस प्रकार बेबाक तरीके से प्रस्तुत करने के लिए मैं अंकिता जी आपको बधाई देता हूँ क्योंकि ऐसा कहने की हिम्मत सबके पास नहीं है I

अब आते है मुख्य बिंदु पर I हम जिस समाज में और जिस जगह रहते हैं वहां हमारे चारों ओर जीवन से आती अलग- अलग रंगों की कहानियां और चरित्र बिखरे पड़े हैं I सत्व, रज और तम से ओतप्रोत ये प्रकृति हमारे सम्मुख क़रीब-क़रीब वही कहानियां और वही किरदार बार-बार प्रस्तुत करती रहती है और लेखक लेखिकाएं उन्हीं को अपनी लेखनी के रंग से अलग-अलग रूप देकर समाज के सामने प्रस्तुत करते रहते हैं I उनके व्यक्तिगत विचार, भाषा शैली और प्रस्तुत करने का ढंग ही उनको कभी प्रेमचंद, कभी शिवानी, कभी कमलेश्वर, कभी मंटो और आजकल कभी रंजना प्रकाश और कभी अंकिता जैन बना देता है I इस कहानी संग्रह की विशेषता अंकिता जी का लेखन है जिसमें  उन्होंने यथोचित विशेषण और अलंकार प्रयोग किये हैं I जैसे जैसे पाठक पढ़ना शुरू करता है, उनकी सटीक भाषा शैली और कलम का जादू पाठक को अपनी गिरफ़्त में इस प्रकार जकड़ लेते हैं कि पाठक कब अंतिम पृष्ठ पर पहुँच गया, उसे पता ही नहीं चलता I मुझे भी ऐसा ही हुआ I लेखन में इतनी कशिश आजकल कम ही देखने को मिलती है I इसके लिए भी मैं अंकिता जी को बधाई देना चाहूँगा I

हिचकियाँ :

ये भी एक कटु सत्य है की कोई भी लेखक आजतक अपने पाठकों को शत प्रतिशत संतुष्ट नहीं कर पाया है I एक लेखक की हैसियत से मैं तो बिलकुल नहीं I एक पाठक की हैसियत से मुझे ये कहानी संग्रह एक लाजवाब किताब लगी - बस दो बातों को छोड़कर I पहली कहानी में मालिन भौजी एक आठवीं पास औरत है और अधेड़ उम्र भी, यानी क़रीब क़रीब अनपढ़ I उसे कवितायें लिखने का शौक़ भी है I मगर जो कवितायें वह लिखती है उनका स्तर बहुत ऊँचा है और उसके शैक्षिक और बौद्धिक स्तर से मेल नहीं खाता I दूसरे अंतिम कहानी 'भंवर' में अपनी शादी के समय लड़की जो निर्णय लेती है वो बहुत देर के बाद लिया गया प्रतीत होता है जिसे वो पहले भी ले सकती थी और तर्कसंगत इसलिए भी नहीं है क्योंकि अपने कष्टों के लिए कहीं न कहीं वो ख़ुद भी जिम्मेदार है I
इस किताब का मुखपृष्ठ उतना आकर्षक नहीं है जितना होना चाहिए था I इसे और बेहतर बनाया जा सकता था I

पुन: अवलोकन  : 
ये कहानी संग्रह हर तरह से एक उम्दा लेखन का प्रमाण है I इसलिए इस किताब को हिंदी साहित्य की उच्च श्रेणी में रखा जाएगा और वर्षों तक इस किताब को पढ़ा जाएगा क्योंकि  इसकी अद्भुत लेखन शैली और इसके चरित्र पाठकों के दिमाग़ पर ही नहीं दिलों पर भी छाने की क्षमता रखते हैं I मैं अंकिता जैन जी को ऐसे ही लिखते रहने के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ और उनकी प्रगति की कामना करता हुए उनकी सभी किताबें पढ़ने की इच्छा रखता हूँ I

रेटिंग : 4/5

राजीव पुंडीर

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