Thursday, January 31, 2019

समीक्षा : अनावरण उपन्यास लेखिका रंजना प्रकाश

प्रस्तावना :

लेखिका रंजना प्रकाश से मैं जब से जुड़ा हूँ, उनकी लेखन शैली ने मुझे काफ़ी प्रभावित किया है। फेसबुक पर अक्सर उनकी कविताओं का लोग बहुत आनंद  उठाते हैं जिनमें से एक मैं भी हूँ। उनके साथ "ज़िंदगी : कभी धूप, कभी छांव" कविता कहानी संग्रह में भी मुझे उनके साथ काम करने का मौका मिला और मैंने उनके लेखन और व्यक्तित्व की गहराई को जाना और समझा। इसके बाद उन्होंने मुझे अपने उपन्यास "अनावरण" के बारे में बताया और मुझसे आग्रह किया कि मैं उसका सम्पादन करूँ। पहले मुझे काफ़ी झिझक हुई, परंतु ये सोचकर कि इस बहाने उनसे कुछ सीखने को मिलेगा, मैं सहर्ष तैयार हो गया। अब उपन्यास आपके सामने है । पढ़िये और कहानी और भाषा का आनंद उठाईये। इस उपन्यास को आथर्स इंक इंडिया ने रोहतक से प्रकाशित किया है।

कहानी :
पूरा उपन्यास एक प्रेम कहानी है जो दो मुख्य पात्रों - तपन और शुभी के चारों और घूमती है। कहानी के दोनों पात्र अंतर्मुखी हैं जिसके कारण दोनों अपने भावों को एक दूसरे को व्यक्त करने में असमर्थ हैं। और यही असमर्थता उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन कर उनके आड़े आती रहती है। इसी की वजह से उनके जीवन में एक ऐसी उथल पुथल होती है कि दोनों ही मृत्यु के कगार तक पहुँच जाते हैं। बाद में यही कमजोरी उन दोनों की ताकत बनकर उनका हथियार बन जाती है और उनके जीवन को परिणीति तक पहुंचाती है।
कहानी बहुत सुंदर बन पड़ी है। पूरी कहानी को जानने के लिए पढ़ें - अनावरण


भाषा:
एक कवियित्री होने के कारण रंजना जी ने इस उपन्यास में भी उसी काव्यात्मक लय, ताल, और निर्मलता को बरकरार रखा है। उपन्यास की भाषा बहुत ही अलंकृत, सरल, तरल और मानव के ह्रदय में पनपने वाले भावों से युक्त है। एकदम स्वच्छ भाषा शैली में कही गयी ये कहानी पाठक के मन को मोह लेने में पूर्णतया सक्षम है। रंजना जी ने यथा योग्य अलंकारों और विशेषणों के प्रयोग से इस कहानी को, जो कभी कभी उदासी से भर देती है, एक खुशनुमा संजीदगी से भर दिया है। दूसरे कहानी का स्थान रुद्र प्रयाग है जहां ऊंचे हिमाच्छादित पर्वत हैं, इधर-उधर विचरते दूधिया सफ़ेद बादलों के टुकड़े हैं, शीतल हवा के झोंके हैं, सुंदर पक्षियों का कलरव है, घने वृक्षों की छाँव है, स्वामी जी का आश्रम है और कलकल बहती गंगा माँ है जो आपको हमेशा तरोताज़ा बनाए रखते हैं।


समीक्षा :
ये समीक्षा मैं एक सामान्य पाठक की प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, न कि संपादक की नज़र से।
कहानी दो प्रेमियों की है जो खुलकर प्रेम का इज़हार नहीं कर पाते। पढ़ते पढ़ते लगता है कि कोई पुराने जमाने की फिल्म देख रहे हों। इस उपन्यास का इस समय आना लगता है कुछ देरी से हुआ क्योंकि ये ज़माना तुरत-फुरत प्रेम के इज़हार का है, परिणीति चाहे कुछ भी हो। इसलिए ये उपन्यास आज की नई पीढ़ी को कुछ अटपटा सा लग सकता है। वैसे आज भी पुराने ज़माने के पाठकों की कोई कमी नहीं है और मुझे लगता है कि ये उपन्यास सभी लोगों द्वारा स्वीकार किया जाएगा चाहे जिस भी उम्र के हों क्योंकि एक उपन्यास की सफलता सिर्फ उसकी उसकी कहानी ही नहीं परंतु एक उत्तम भाषा शैली और कहानी कहने के अंदाज़ पर भी निर्भर करता है जो यहाँ लाजवाब बन पड़ा है। दूसरे, मेरे विचार से इस कहानी को और विस्तार दिया जा सकता था जिसकी कमी पाठक को महसूस होती है। किसी भी कहानी में पाठक की रोचकता बनाए रखने के लिए उसमें कुछ अंतराल के बाद नई घटनाएँ और थोड़े चकित करने वाले मोड़ अपेक्षित होते हैं जिनकी इस उपन्यास में थोड़ी कमी है। लेकिन कहानी की अस्मिता को ध्यान में न रखते हुए उसमें ज़बरदस्ती ठेले गए वृतांत भी पूरे कथानक को कृत्रिमता की ओर धकेल देते हैं, जो कि रंजना जी ने बिलकुल नहीं होने दिया और कहानी को शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर दिया है। इसके लिए मैं रंजना जी को साधुवाद देना चाहूँगा।

मैं रंजना प्रकाश को इस बेहतरीन उपन्यास के लिए ह्रदय से बधाई देता हूँ और उनसे इसी प्रकार लिखते रहने की आशा करता हूँ। उनके आगे आने वाले उपन्यासों की प्रतीक्षा रहेगी।
अनावरण को प्राप्त करने के लिए लिंक :
https://www.amazon.in/Anawaran-Ranjana-Prakash/dp/9385137875/ref=sr_1_fkmr0_1?ie=UTF8&qid=1548939636&sr=8-1-fkmr0&keywords=anavaran+by+ranjana+prakash

राजीव पुंडीर
30 Jan 2019

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