Tuesday, January 22, 2019

समीक्षा : नीली आंखें : लेखक राकेश शंकर भारती

मित्रों,
पिछले दिनों हिन्दी की कई किताबें पढ़ीं। बहुत निराशा हुई । तभी राकेश शंकर भारती से फेसबुक पर मुलाक़ात हुई और उन्होंने मुझे उनके द्वारा लिखी गयी किताब "नीली आँखें" पढ़ने का आग्रह किया। पहली नज़र में मुझे ये किताब भी वैसी ही लगी जिन्हें पढ़कर मैं ऊब चुका हूँ जिनमें नई हिन्दी के नाम पर सिर्फ गंदा सेक्स ( काम नहीं ) गंदी भाषा में  ही पाठकों को परोसा जा रहा है । इसलिए मैंने उनको मना कर दिया । लेकिन उन्होंने मुझे इसकी कहानियों की भूमिका बताई कि ये कहानियाँ यूक्रेन के समाज की कहानियाँ हैं क्योंकि वो वहीं पर रहते हैं। एक जिज्ञासु होने के कारण मुझे यूक्रेन के समाज में पनपने वाली कहानियों ने आकर्षित किया और मैं इस किताब को पढ़ने के लिए तैयार हो गया । मैंने ये किताब वर्ल्ड बुक फ़ेयर नई दिल्ली से ख़रीद ली। पढ़ने के बाद मेरी सोच  इस किताब के प्रति काफी बदल गयी। इस किताब को नवयुग प्रकाशन ने दिल्ली से प्रकाशित किया है।

इस किताब में कुल मिलाकर दस कहानियाँ हैं। इस किताब को पढ़ने के बाद दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं - पहली ये कि जिस व्यक्ति के अंदर लेखक विद्यमान होता है, जगह, देश, काल, भाषा, पहनावा, संस्कृति उसके लिए कोई मायने नहीं रखते और वो अपने लिए लिखने का मसाला खोज ही लेता है। उसके अंदर का लेखक बेचैन रहता है कुछ नया पाने के लिए, कुछ नया सूंघने के लिए, कुछ नया लिखने के लिए। राकेश शंकर भारती बधाई के पात्र हैं कि उनहोंने यूक्रेन के समाज कि विशेषताओं और विषमताओं दोनों को बखूबी समझा और कहानियाँ लिख डालीं। दूसरे, ये कि समाज कोई भी हो, धर्म कोई भी हो, देश कोई भी हो, भाषा कोई भी हो, आदमी और औरत की नैसर्गिक प्रकृति वही है, प्रवृत्ति वही है, एक दूसरे को पाने की, प्रेम करने की चाह वही है। न आदमी बदला है, न औरत।



इन कहानियों में प्रेम है, फ़रेब है, उनसे उपजे सुख और दुख हैं। ये कहानियाँ आपको पात्रों के प्रति संवेदना से भर देती हैं और कभी कभी इतना आश्चर्यचकित कर देती हैं कि आप भाव विभोर हो उठते हैं। कैसा लगा होगा जब एक लड़की को उसका बाप मिलता है जब वो अपनी आखिरी सांस ले रहा होता है, जिसने उसकी माँ को एक दूसरी औरत के लिए तभी छोड़ दिया था जब वो बिना शादी किए ही गर्भवती हो गयी थी। और कैसा लगा होगा एक पत्नी को जब वो और उस आदमी की प्रेमिका दोनों एक ही दिन एक ही हॉस्पिटल में प्रसव के लिए आती हैं, दोस्त भी बन जाती हैं और एक ही कमरे में एड्मिट हो जाती हैं। ऐसी ही एक कहानी में एक औरत को उसका बहुत पुराना प्रेमी एक ट्रेन में मिल जाता है। और भी कहानियाँ हैं जिन्हें पढ़कर आपको एक अलग समाज की नाड़ी किस प्रकार से चलती है उसका आभास हो जाएगा।

ये कहानियाँ हिन्दी में लिखी गयी हैं जिनमें उर्दू भाषा के शब्दों का काफ़ी प्रयोग हुआ है, और कहीं कहीं थोड़ा अश्लील भी हो गयी हैं मगर इनमें गंदा और भोंडापन नहीं है। जो भी है तर्कसंगत है। हाँ, राकेश जी को अपनी भाषा पर ध्यान देना होगा क्योंकि कहीं कहीं भाषा में कमी अखरती है क्योंकि विदेश में रहने के कारण शायद भाषा में उतनी परिपक्वता नहीं आई है जितनी मूलरूप से आवश्यक है,  और हर कहानी में अलग परिपेक्ष्य को अपनाना होगा ताकि कहानियों में नयापन झलक सके।

मैं राकेश शंकर भारती जी को इस कहानी संग्रह के लिए अपनी शुभकामनाएं देता हूँ। और इच्छा करता हूँ कि आप ऐसे ही लिखते रहें। सभी से अनुरोध है कि एकबार इस कहानी संग्रह को अवश्य पढ़ें।

राजीव पुंडीर
जनवरी 22, 20192 

2 comments:

  1. सर, आभार व्यक्त करता हूँ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत सुन्दर राकेश जी

      Delete